24 मार्च 2010

अबे यार! कल एक 'डे' सूना-सूना निकल गया ! ! !





गनपत- क्या यार! क्यों शान्त-शान्त से बैठे हो?

मुँहफट-
कुछ नहीं यार! कल एक डे निकल गया और हमें कानों-कान खबर भी नहीं हो सकी।

गनपत- कौन सा डे, बे? हम तो सारे के सारे डे, दिवस, त्यौहार अपनी डायरी में नोट किया घूमते रहते हैं। हमारी डायरी में तो कल के किसी डे-फे का कॉलम ही नहीं है।

मुँहफट- हाँ, बे, यही तो गड़बड़ हो गई, इस बार खाली-खाली निकला सारा दिन। न कोई गा्रहक आया, न लड़के आये और न लड़कियाँ। न ही कोई गिफ्ट या फिर गुलाब आदि लेने आया। समझ नहीं आता कि ये कौन सा डे था जो बिना हुडदंग काटे निकल गया।

गनपत- अबे! हमने सबेरे पढ़ा तो था कहीं कि आज किसी पार्क में किसी शहीदी दिवस जैसा कोई कार्यक्रम होना था। कोई सांस्कृतिक मार्च.................

मुँहफट ने बात काटी- ये सांस्कृतिक मार्च, माने?

गनपत- अबे यार, थोड़ी देर तो चुप रहा करो, मार्च माने महीने वाला मार्च नहीं, इसका मतलब है परेड, समझे। हाँ तो, इस परेड को शहर की गलियों से निकलते हुए एक जगह समाप्त होना था और अन्त में होना था कवि सम्मेलन।

मुँहफट- हाँ, तो ये है कल का दिन खाली निकलने का कारण। अबे, जब बुड्ढों का डे होगा तो काहे के फूल और काहे का गिफ्ट। खाली-पीली मगजमारी नहीं करने का, समझे।


गनपत- नहीं बे, इस दिन को कोई भगत सिंह सरदार जी हुए थे और साथ में उनके दो-तीन दोस्त भी थे। उनको फाँसी पर लटका दिया गया था।



मुँहफट- क्या कह रहे हो यार? फाँसी पर, ऐसा कौन सा जुर्म किये थे ये सब के सब? क्या धनंजय चटर्जी वाला केस था या फिर कोई और ही लफड़ा था?

गनपत- नहीं बे, फाँसी पर चढ़े थे अंग्रेजों से लड़ने के कारण। इस कारण इस दिन को शहीद दिवस के नाम से मनाते हैं।

मुँहफट- क्या यार! गजब की जानकारी देते हो किन्तु ये बताओ कि शहीद दिवस मनाने वालों को कुछ अकल बाँट कर आओ। अरे, हिन्दी में दिवस मनाओगे तो कहाँ से भीड़ जुटेगी। रखो कोई तड़कता सा, फड़कता सा अंग्रेजी नाम फिर देखो कैसी भीड़ बढ़ती है। देख लो उदाहरण, वेलेंटाइन डे, मदर्स डे, फ्लावर डे, फ्रेंड्स डे और भी बहुत से डे, सबके सब मनाये जाते हैं धूमधाम से कि नहीं?

गनपत- हाँ बे, ये तो है। और तो और देखो इस दिन को मनाने वालों का तरीका। कल शाम को हमने देखा कि दस बारह लोग तीन मूर्तियों के सामने खड़े होकर मोमबत्ती जलाये गीत गाने में लगे थे। पता नहीं कौन सा....सरफरोशी की तमन्ना....जैसा ही कुछ। सबके सब लाल कपड़ों में या फिर गले में लाल दुपट्टा सा डाले।

मुँहफट- ओये! कहीं ये किसी लाल गैंग के सदस्य तो नहीं, गुलाबी गैंग की तरह? या फिर नक्सलवादी?

गनपत- अबे नहीं, ये तो कोई संस्था है इप्टा-सिप्टा जैसे नाम वाली, ढोल-मंजीरे लेकर गाते-नाचते घूमते हैं, नाटक करते फिरते हैं, उनके लोग थे।

मुँहफट- कुछ भी कहो भइया, हमें तो लगता है कि ये तीनों किसी न किसी गैंग के सदस्य रहे होंगे। अब उनके साथी उनको याद करते हैं। चलो ठीक है, याद करो मगर कोई ढंग तो हो। याद करना है तो किसी रेस्टोरेंट में बैठ जाओ, पिज्जा खाओ, कोल्ड ड्रिंक पियो, मस्ती करो, झूमो, नाचो। शहीद जिसको होना था हो गया, फाँसी पर जिसको लटकना था लटक गया, अब रोने से क्या फायदा। कम से कम हम छोटे-छोटे दुकानदारों का तो भला करते जाओ।

गपनत- अब निराश न हो, इस दिवस को भी अपनी डायरी में नोट करलो। हम कोशिश करेंगे अपने बड़े व्यापारी भाइयों से मिल कर अगले साल से इस शहीदी दिवस को भी रंगारंग तरीके से सेलीब्रेट करवाने की। कार्ड-वार्ड बिकवाने का प्रयास करेंगे, फूलों, गुलदस्तों का आदान-प्रदान करवाना शुरू करेंगे। फिर देखना कैसे दो-तीन साल में हम इस दिवस को भी डे में बदल कर मार्केट में इसे भी हंगामेदार ढंग से मनवायेंगे।

मुँहफट- हाँ यार, ये तो किया ही जा सकता है। और फिर हमें अपने देशवासियों पर पूरा भरोसा है कि वे कुछ करें या न करें पर यदि ठान लें तो शहीद दिवस को भी रंगारंग तरीके से मना सकते हैं। चलो भइया करो प्रयास, हम तुम्हारे साथ हैं।

गनपत मुँहफट एक साथ- तो जोर से बोलो ‘हैप्पी शहीद डे।’ नहीं बे, शहीद का अच्छा सा अंग्रेजी शब्द निकालो बाजार में फिट होने जैसा। तब तक बोल ही लो जोर से ‘हैप्पी शहीद डे।’




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चित्र साभार गूगल छवियों से

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