03 मार्च 2010

अरे हिन्दुओ! मुस्लिमों की कट्टरता से ही सबक सीखो

आज ब्लाग संसार में विचरण करते-करते ब्लाग के महारथी और सामग्री से भरपूर पोस्ट देने वाले चिपलूनकर जी की पोस्ट को पढ़ा। लगा कि संसार में प्रत्येक जगह मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति तो अपनाई ही जा रही है उसके साथ ही मुस्लिमों द्वारा कट्टरपन की भी जो नीति अपनाई जाती है उसने भी लोगों को उनके प्रति तुष्टिकरण की नीति अपनाने को मजबूर किया है।

सुरेश जी ने अपनी पोस्ट के द्वारा बताया कि किस प्रकार मुसलमानों के द्वारा किसी भी शब्द को तोड़ मरोड़ कर उसमें इस्लाम का, कुरान का, मुहम्मद साहब का चित्रांकन कर लिया जाता है। इसके बाद उनके उपद्रव, हंगामों के द्वारा उस सम्बन्धित कम्पनी अथवा व्यक्ति को उस शब्द को, उत्पाद को हटाना होता है।

इसके साथ ही सुरेश जी ने दिखाया कि कैसे हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र चप्पल पर, पैंटी पर बने दिख रहे हैं और इस पर कोई भी कदम नहीं उठाया गया।

अभी तक बात थी सुरेश जी की, अब बात अपनी कि हिन्दुओं के पवित्र स्थलों, स्मारकों, देवी-देवताओं के अपमानजनक चित्रों के विरोध में कौन खड़ा होगा, हिन्दू ही। अब हिन्दुओं को अपने आपसी लड़ाई-झगड़ों से फुर्सत मिले तो वे देवी-देवताओं की ओर ध्यान दें।

मुस्लिमों के द्वारा जो भी कट्टरपन है वह उनके मजहब को लेकर है और हिन्दू में अपने ही धर्म के प्रति मखौल का वातावरण बनाये रखने का शौक होता है।

एक पल को यहाँ हिन्दू और मुसलमान का भेद भूलकर उत्पादों की ओर ध्यान दिया जाये तो पता चल जायेगा कि हकीकत क्या है? देखिए--

गणेश छाप तम्बाकू, श्याम बीड़ी, देवी-देवताओं के नाम पर आतीं तमाम सारी अगरबत्तियाँ, शादी-ब्याह के निमंत्रण पत्रों में छपे देवी-देवता, और भी बहुत से उत्पाद हैं जिन पर हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र बने होते हैं। ये हमारे लिए एक पल को गर्व की बात भले ही होती हो किन्तु इसका अन्त कितना अपमानजनक होता है क्या कभी सोचा है? ये सब के सब उपयोग के बाद नाली में तैरते दिखते हैं, पैरों तले कुचले जाते हैं, सड़कों के किनारे कूड़े के ढेर में पड़े होते हैं।

हमारे कहने का आशय यह है कि जब हम हिन्दू ही अपने देवी-देवताओं के प्रति सकारात्मक सोच नहीं रख पाते तो उन लोगों से कैसे आशा करें जिनका जन्म ही हिन्दू विरोधी आचरण के द्वारा हुआ है।

रही बात विरोध करने की तो जैसे राम मंदिर निर्माण के लिए अब मुस्लिमों से प्रार्थना की जा रही है वैसे ही अपने देवी-देवताओं की इज्जत बचाने के लिए भी उनसे प्रार्थना कर ली जाये कि जब वे अपने मजहब की रक्षा के लिए आन्दोलन करें तो हिन्दू देवी-देवताओं के अश्लील चित्रण के लिए भी संघर्ष कर लिया करें।

औरों को दोषारोपण करने से हम अपनी बुराइयों को नहीं छुपा सकते हैं, हमें स्वयं अपनी बुराइयों को मिटाना होगा। सवाल किन्तु वही है कि ऐसा करेंगा कौन और करने देगा कौन? याद रखिए यह वही देश है और यहाँ वही हिन्दू है जो एम0एफ0 हुसैन द्वारा देवी-देवताओं के अश्लील चित्रण को आधुनिक कलाकृति मानकर देखता और अपने ड्राइंग रूम में सजाता रहा है। हुसैन का विरोध तो दूर, उनका विरोध करने वालों को कला विरोधी करार देता रहा है। ऐसे देश में अपमान तो होना ही है, हिम्मत स्वयं जुटानी होगी।

इस तरह के मामलों में मुस्लिमों का विरोध देखकर तो हम हिन्दुओं को उनसे सबक लेना चाहिए और अपने किसी भी देवी-देवता के अपमान पर उसी तरह का कट्टरपन दिखलाना चाहिए। इससे न केवल मुस्लिम कलाकार बल्कि हिन्दू कलाकार भी हिन्दू देवी-देवताओं का, हमारे महापुरुषों का अपमान करने से बचेगा, डरेगा भी।

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इस पोस्ट का उद्देश्य चिपलूनकर जी की बात का विरोध करना नहीं वरन उन हिन्दुओं को आईना दिखाना है जो अपने ही देवी-देवताओं का अपमान करते हैं और बाद में स्थिति का रोना रोते हैं।

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