देश इस समय चुनावी
मोड में आ चुका है. वर्तमान लोकसभा के कार्यकाल को देखते हुए जल्द ही निर्वाचन आयोग
द्वारा आदर्श आचार संहिता लागू कर दी जाएगी. आचार संहिता में अनेकानेक तरह के कार्यों
पर प्रतिबन्ध लग जाता है. निर्वाचन आयोग अपनी तरफ से पूरी तरफ मुस्तैद रहता है कि आचार
संहिता के दौरान और चुनावों के समय भी किसी तरह का ऐसा कार्य न हो सके जिससे लोगों
में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के प्रति गलत सन्देश प्रसारित हो. इस बार आयोग द्वारा
आदर्श आचार संहिता लगने के पहले ही राजनैतिक दलों को स्पष्ट रूप से सचेत कर दिया
गया है कि उनकी बेवजह,
अनावश्यक बयानबाजी पर निगाह रखी जाएगी. आयोग द्वारा यह भी समझाया गया है कि ऐसा
करने वालों पर कार्यवाई की जाएगी. निर्वाचन आयोग की सक्रियता की यह एक मिसाल है
जबकि उसने आदर्श आचार संहिता लागू होने के पहले ही अपने मंतव्य को स्पष्ट कर दिया
है.
आयोग के सामने
चुनाव को निष्पक्ष करवाने के साथ-साथ अनेक प्रकार की चुनौतियाँ रहती हैं. उसके
सामने महज राजनैतिक व्यक्तियों की अनर्गल बयानबाजी को, भाषाई अशालीनता को रोकना ही प्रमुख
कदम नहीं है वरन अनेकानेक अवैध तरीकों से चुनावों को प्रभावित करने को रोकना भी एक
जबरदस्त चुनौती है. आयोग द्वारा इससे पहले भी चुनाव सुधारों सम्बन्धी पहल की जा
चुकी है. एक व्यक्ति के दो जगह से चुनाव लड़ने को प्रतिबंधित करने, दो हजार रुपये से अधिक के गुप्त चंदे पर रोक
लगने, उन्हीं राजनैतिक दलों को
आयकर में छूट दिए जाने का प्रस्ताव जो लोकसभा-विधानसभा में जीतते हों आदि विचारों के
द्वारा निर्वाचन आयोग ने अपनी स्वच्छ नीयत का सन्देश दिया है. किसी भी देश की लोकतान्त्रिक
व्यवस्था की सफलता के लिए वहाँ की निर्वाचन प्रणाली का स्वच्छ, निष्पक्ष, कम खर्चीला होना आवश्यक है. किसी भी लोकतंत्र की सफलता
इसमें निहित है कि वहाँ की निर्वाचन प्रणाली कैसी है? वहाँ के नागरिक सम्बंधित निर्वाचन को लेकर कितने आश्वस्त
हैं? निर्वाचन प्रणाली,
प्रक्रिया में कितनी सहजता, कितनी निष्पक्षता है?
भारतीय लोकतान्त्रिक
व्यवस्था में विगत कुछ दशकों से निर्वाचन प्रक्रिया सहज भी रही है तो कठिनता के दौर
से भी गुजरी है. निर्वाचन प्रक्रिया भयावहता के अपने चरम पर होकर वापस अपनी सहजता पर
लौट आई है. अब पूरे देश के चुनावों में, किसी प्रदेश के चुनावों में एकाधिक जगहों (पश्चिम बंगाल को छोड़कर) से ही हिंसात्मक
खबरों का आना होता है. एकाधिक जगहों से ही बूथ कैप्चरिंग किये जाने के प्रयासों की
खबरें सामने आती हैं. निर्वाचन को भयावह दौर से वापस सुखद दौर तक लाने का श्रेय बहुत
हद तक निर्वाचन आयोग की सख्ती को रहा है तो केंद्र सरकार द्वारा सुरक्षा बलों की उपलब्धता
को भी जाता है. इस सहजता के बाद भी लगातार चुनाव सुधार की चर्चा होती रहती है. राजनैतिक
परिदृश्य में सुधारों की बात होती रहती है. निर्वाचन की खर्चीली प्रक्रिया पर नियंत्रण
लगाये जाने की कवायद होती रहती है. चुनावों में प्रयुक्त होने वाले कालेधन और अनावश्यक
धन के उपयोग पर रोक लगाये जाने की नीति बनाये जाने पर जोर दिया जाता है.
प्रत्याशियों द्वारा
अनेक तरह के अवैध स्रोतों से चुनाव में खर्चा किया जाता है. अपने चुनावी खर्चों को
निर्वाचन आयोग की निर्धारित सीमा में दिखाकर परदे के पीछे से कहीं अधिक खर्च किया जाता
है. विगत चुनावों में उत्तर प्रदेश के एक अंचल में ‘कच्ची दारू कच्चा वोट, पक्की दारू पक्का वोट, दारू मुर्गा वोट सपोर्ट’ जैसे नारे खुलेआम लगने
का स्पष्ट संकेत था कि चुनावों में ऐसे खर्चों के द्वारा भी मतदाताओं को लुभाया जाता
रहा है. मतदाताओं को धनबल से अपनी तरफ करने के साथ-साथ मीडिया के द्वारा भी चुनाव को,
मतदाताओं को अपनी तरफ करने का प्रयास प्रत्याशियों
द्वारा किया जाता है. बड़े पैमाने पर इस तरह के मामले सामने आये हैं जिनमें कि ‘पेड
न्यूज़’ के रूप में खबरों का प्रकाशन-प्रसारण किया जाता है. बड़े-बड़े विज्ञापनों द्वारा
प्रत्याशियों के पक्ष में माहौल बनाये जाने का काम मीडिया के द्वारा किया जाता है.
धनबल से संपन्न प्रत्याशियों द्वारा अनेक तरह के आयोजनों के द्वारा, विभिन्न आयोजनों को धन उपलब्ध करवाने के द्वारा
भी निर्वाचन प्रक्रिया को अपने पक्ष में करने के उपक्रम किये जाते हैं. बड़े-बड़े होर्डिंग्स,
बैनर, बड़ी-बड़ी लग्जरी कारों के दौड़ने ने भी निर्वाचन प्रक्रिया
को खर्चीला बनाया है.
ऐसा नहीं है कि निर्वाचन
आयोग को ऐसी स्थितियों का भान नहीं है. आयोग द्वारा उठाये गए तमाम क़दमों का प्रभाव
है कि सजायाफ्ता लोगों को निर्वाचन से रोका जा सका है. आयोग के प्रयासों का सुफल है
कि आज हाशिये पर खड़े लोगों को मतदान का अधिकार मिल सका है, वे बिना किसी डर-भय के अपने मताधिकार का प्रयोग कर पा
रहे हैं. इसके बाद भी अभी बहुत से प्रयास किये जाने अपेक्षित हैं. धन के अपव्यय को
रोकने के लिए निर्वाचन आयोग को किसी भी तरह की प्रकाशित प्रचार सामग्री पर रोक लगानी
होगी. मतदाताओं को सिर्फ अपने बैलट पेपर का नमूना प्रकाशित करके वितरित करने की अनुमति
दी जानी चाहिए. इससे अनावश्यक तरीके से, अवैध तरीके से प्रचार सामग्री का छपवाया जाना रुक सकेगा. देखने में आता है कि प्रशासन
की आँखों में धूल झोंककर स्वीकृत गाड़ियों की आड़ में कई-कई गाड़ियों को प्रचार के लिए
लगा दिया जाता है. धनबल की यह स्थिति चुनावों की निष्पक्षता को प्रभावित करती है.
आयोग द्वारा प्रयास
ये होना चाहिए कि चुनाव जैसी लोकतान्त्रिक प्रक्रिया पर सिर्फ धनबलियों, बाहुबलियों का कब्ज़ा होकर न रह जाये. उसको ध्यान
रखना होगा कि चुनाव खर्च की बढ़ती सीमा से कहीं कोई चुनाव प्रक्रिया से वंचित तो नहीं
रह जा रहा है. आयोग का कार्य जहाँ निष्पक्ष चुनाव करवाना है वहीं उसका दायित्व ये भी
देखना होना चाहिए कि चुनाव मैदान में उतरने का इच्छुक व्यक्ति किसी तरह से धनबलियों
का शिकार न हो जाये. यद्यपि वर्तमान दौर अत्यंत विषमताओं से भरा हुआ है तथापि कुहासे
से बाहर आने का रास्ता बनाना ही पड़ेगा.
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