10 दिसंबर 2025

क्या समय सच में मौजूद नहीं है?

क्या समय सच में मौजूद नहीं है? विज्ञान इस रहस्य को समझने लगा है!

 

हम अपनी ज़िंदगी के हर पल को समय में नापते हैं सेकंड, मिनट, दिन, साल लेकिन आधुनिक विज्ञान और कई प्रमुख वैज्ञानिकों का दावा है कि ‘समय’ शायद वैसा नहीं है जैसा हम सोचते हैं। BBC और कई प्रमुख विज्ञान लेखों में भी यह चर्चा तेज़ हो गई है कि समय एक illusion यानि एक मानसिक अनुभूति हो सकती है। यह विचार जितना हैरान करता है,उतना ही विज्ञान इसे गंभीरता से लेना शुरू कर चुका है।

 

समय क्या है? हमारी समझ बनाम विज्ञान

हम सभी समय को एक बहती हुई नदी की तरह मानते हैं,जहाँ अतीत बीत चुका है,वर्तमान अभी है और भविष्य आने वाला है लेकिन जब वैज्ञानिक समय को गणित और भौतिकी के नियमों में डालते हैं तो यह मॉडल टूटने लगता है।

 

आइन्स्टीन की Relativity कहती है- समय स्थिर नहीं है। यह गति और गुरुत्वाकर्षण के अनुसार धीमा या तेज़ हो सकता है।

 

Quantum Physics कहती है- सबसे छोटे स्तर पर कणों की दुनिया में समय का बहाव दिखाई ही नहीं देता यानि समय वह नहीं है जो हमें रोजमर्रा में महसूस होता है।

 

समय शायद है ही नहीं

कई वैज्ञानिक लेख बताते हैं कि दुनिया को समझने के लिए हमें समय की जरूरत नहीं भी पड़ सकती। विज्ञान का तर्क यह है:

=> Physics की equations बिना ‘समय’ के भी काम करती हैं:- कुछ fundamental equations में “time” का कोई स्पष्ट role नहीं होता।

=> अतीत, वर्तमान और भविष्य शायद साथ-साथ मौजूद हैं:- इस विचार को Block Universe Theory कहा जाता है। इस थ्योरी में समय एक direction नहीं बल्कि एक landscape की तरह है जहाँ सारे पल एक साथ मौजूद हैं।

=> समय शायद एक अलग entity नहीं बल्कि घटनाओं के बीच का संबंध है यानी हम परिवर्तन देखते हैं और उसको मापने के लिए ‘समय’ नाम की कल्पना बना ली।

 



क्या समय सिर्फ एक illusion है?

कई वैज्ञानिक कहते हैं कि:

=> समय खुद मौजूद नहीं बल्कि मस्तिष्क (consciousness) घटनाओं को क्रम में अनुभव करता है, इसी क्रम का नाम हम “time flow” रखते हैं. अगर ऐसा है तो ‘अभी’, ‘कल’, ‘भविष्य’ ये सब हमारी perception पर निर्भर हैं। यह उस घड़ी की तरह है जो दीवार पर टंगी है लेकिन असल में टिक-टिक सिर्फ हमारे मन में चल रही है।

 

क्या होगा अगर समय सच में अस्तित्व में नहीं है?

यह विचार हमारी पूरी समझ बदल देता है-

=> जीवन और मृत्यु की परिभाषा बदलेगी- अगर समय linear नहीं है, तो ‘पहले-जन्म, बाद-मृत्यु’ वाला क्रम भी एक perception हो सकता है।

=> कारण और परिणाम (Cause & Effect) की धारणा बदल सकती है- हम मानते हैं कि A हुआ इसलिए B हुआ। लेकिन अगर समय स्थिर नहीं तो यह relation भी अलग तरीके से काम कर सकता है।

=> यूनिवर्स की असली संरचना समझने का नया रास्ता खुलेगा- Universe शायद events का एक web हो जिसमें समय सिर्फ एक direction नहीं बल्कि एक coordinate (निर्देशांक) जैसा हो।

 

भावी विज्ञान कहाँ जा रहा है?

वैज्ञानिकों का ध्यान अब इस बात पर है कि-

=> क्या समय वास्तव में एक ‘fundamental चीज़ है?

=> फिर यह तापमान और दबाव की तरह एक ‘उभरती हुई property है जो कुछ conditions पर ही दिखती है? कई शोध यह संकेत दे रहे हैं कि समय शायद मूलभूत (fundamental) नहीं है और यदि ऐसा है तो हमारी पूरी physics बिग बैंग, ब्लैक होल, क्वांटम दुनिया सबकी व्याख्या नए तरीके से करनी पड़ सकती है।

 

निष्कर्ष: समय शायद है या शायद नहीं

हम जो समय कहते हैं,वह शायद सिर्फ हमारा अनुभव हो, एक illusion, एक perception या केवल परिवर्तन मापने का तरीका। विज्ञान अभी अंतिम जवाब नहीं दे पाया है लेकिन BBC समेत कई वैज्ञानिक संस्थाएँ इस दिशा में स्पष्ट कह रही हैं ‘समय को लेकर हमारी सोच अधूरी है और असली तस्वीर हम अब समझना शुरू कर रहे हैं।’

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यह पोस्ट फेसबुक पर Factwala01 प्रोफाइल से ली गई है. 

06 दिसंबर 2025

हाथ पहले दिन भी खाली थे, हाथ आज भी खाली हैं

06 दिसम्बर राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण तो है ही, व्यक्तिगत स्तर पर हमारे लिए भी महत्त्वपूर्ण है. बाबरी ढाँचे के ध्वंस से इतर सन 2005 में इसी दिन गांधी महाविद्यालय, उरई में अध्यापन कार्य हेतु अपना पहला कदम रखा था.


आज बीस वर्ष की समाप्ति बाद अपनी इस यात्रा को देखते हैं तो इसमें न संतुष्टि नजर आती है, न उपलब्धि. ऐसा महसूस होता है कि जैसे एक बहुत लम्बा और महत्त्वपूर्ण समय निरर्थक गुजार दिया.


इन बीस वर्षों में अपने जीवन में बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे जो इस कार्यक्षेत्र से सम्बंधित भी रहे और नितांत पारिवारिक भी रहे. दोनों के साथ तालमेल बिठाने का प्रयास करते हुए आगे भले ही बढ़ते रहे मगर कहीं आगे पहुँच न पाए. गम्भीरता से जब अपना ही आकलन करते हैं तो एहसास होता है कि आज भी उसी स्थिति में खड़े हैं जहाँ 06 दिसम्बर 2005 को खड़े हुए थे. 


जिनको वेतन सम्बन्धी आँकड़ा उपलब्धि लगता होगा उनको ये बात हजम नहीं होगी. ये सही है कि नौकरी के पहले दिन और आज के वेतन में बहुत बड़ा अंतर आया है मगर धनोपार्जन को उपलब्धि नहीं कहा जा सकता है. विगत वर्षों में अनेकानेक कारणों से जिस तरह से कार्यक्षेत्र में विसंगतियों से जूझना हुआ है, खुद का सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य से दूर होना हुआ है, लेखन-साहित्य के क्षेत्र से जुड़े रहने के बाद भी अनमना सा रहा है उसने एक तरह की शून्यता ही पैदा की है.


बहरहाल, कहानी बहुत लम्बी और बड़ी है. सारांश महज इतना ही है कि इन बीस वर्षों की अध्यापन यात्रा में मिला कुछ नहीं और खोया बहुत कुछ है; पाया कुछ नहीं पर गँवाया बहुत कुछ है. हाथ पहले दिन भी खाली थे, हाथ आज भी खाली हैं.




03 दिसंबर 2025

दिव्यांगजनों में विश्वास जगाना होगा

03 दिसम्बर का आना हुआ और शासन-प्रशासन की तरफ से सभी जगह दिव्यांगजनों के लिए अंतरराष्ट्रीय विकलांग (दिव्यांग) दिवस को मनाया गया. इस दिवस को लेकर वैसी चहल-पहल नहीं दिखती जैसी कि अन्य दिवसों को लेकर दिखाई पड़ती है. अभी 01 दिसम्बर को ही एड्स दिवस पर जागरूकता के लिए रैलियाँ निकाली गईं, कई जगह गोष्ठियाँ, प्रदर्शनियाँ आयोजित की गईं थीं वैसा कुछ आज देखने को नहीं मिला. इसके पीछे एक मुख्य वजह जो हमें समझ आती है वो यह कि विकलांगता को लेकर समाज में अभी भी एक तरह की दया का भाव बना हुआ है. यदि इस दया के भाव को समाज के साथ-साथ पारिवारिक रूप में, सहयोगियों में, मित्रों में भी उपस्थित माना जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. ऐसा हम स्वयं व्यक्तिगत रूप से अनुभव करते हैं.  

 



बहरहाल, वर्ष 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा द्वारा निर्णय लिया गया कि सन 1981 को विकलांगजनों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रुप में मनाया जायेगा. इस दिवस का आरम्भ भले ही वर्ष 1981 से कर दिया गया हो मगर सन 1992 से संयुक्त राष्ट्र के द्वारा इसे अंतरराष्ट्रीय रीति-रिवीज़ के रुप में प्रचारित किया जा रहा है. इस दिवस के मनाये जाने का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर दिव्यांगजनों के लिये पुनरुद्धार, रोकथाम, प्रचार और बराबरी के मौकों पर जोर देने के लिये योजना बनाना है. विकलांगों के प्रति सामाजिक कलंक को मिटाने और उनके जीवन के तौर-तरीकों को और बेहतर बनाने के लिये उनके वास्तविक जीवन में बहुत सारी सहायता को लागू करने के द्वारा तथा उनको बढ़ावा देने के लिये साथ ही विकलांग लोगों के बारे में जागरुकता को बढ़ावा देने के लिये इसे सालाना मनाने के लिये इस दिन को खास महत्व दिया जाता है. इसके बाद से ही सन 1992 से इसे पूरी दुनिया में हर साल से लगातार मनाया जा रहा है.

 

इस दिवस को मनाये जाने के बाद भी, देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विकलांग शब्द को दिव्यांग में परिवर्तित कर देने के बाद भी ऐसे लोगों के प्रति समाज की सोच में बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ है. आज भी दिव्यांगजनों के प्रति विभेद देखने को मिलता है. समाज के बहुत से क्षेत्रों में उनके साथ आज भी दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है. कई बार उनको उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है. आप सब लोगों ने भी महसूस किया होगा और यदि अभी तक ऐसा कुछ आपकी आँखों के सामने से नहीं गुजरा है तो अपने शहर के ऐसे केन्द्रों में जाकर देखिये जहाँ विकलांग व्यक्ति रहते हों, आज भी वे लोग दया, सहानुभूति का पात्र बनते हैं. ऐसे लोग भले ही शिक्षित हों अथवा अशिक्षित, शहरी हो अथवा ग्रामीण, रोजगार में हो अथवा बेरोजगार सभी के साथ समाज की तरफ से एक दया का भाव देखने को मिलता है.




ऐसा होने के पीछे को हम व्यक्तिगत रूप से समाज से अधिक दोष विकलांगता से जूझ रहे लोगों का मानते हैं. कमोबेश बहुतायत विकलांग व्यक्ति समाज से दया, सहानुभूति ही चाहते हैं. कुछ वर्षों पूर्व इस क्षेत्र में कार्य करने की मंशा से विकलांग शक्ति (जिसे बाद में दिव्यांग शक्ति कर दिया गया) के नाम से एक अभियान शुरू किया. इसके माध्यम से ऐसे विकलांग व्यक्तियों को प्रोत्साहित करने का मन बनाया था जिनमें किसी न किसी तरह की प्रतिभा हो, कोई न कोई हुनर हो. सोचा था कि ऐसे लोगों के हुनर को समाज के सामने लाकर इनको भी आगे बढ़ने का रास्ता बनाया जाये. इस अभियान से ऐसे विकलांग व्यक्ति बहुत कम जुड़े जिनको अपनी प्रतिभा का, अपने हुनर का प्रतिफल चाहिए था. बहुतायत लोगों के लिए भत्ता, पेंशन, सरकारी अनुदान, लाभ आदि को प्राप्त करना उनका अभीष्ट था.

 

ये सही है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समाज में सभी विकलांग लोगों को शामिल करने की दिशा में काम करने को प्रेरित करना आज के दिन का उद्देश्य है. ऐसे में जहाँ दिव्यांगजनों के प्रति उपेक्षा का भाव दूर करना होगा वहीं खुद दिव्यांगजनों को अपने आपको मजबूर, कमजोर मानसिकता से ऊपर लाना होगा. दिव्यांगजनों के प्रति उपेक्षा का भाव रखने की स्थिति ये है कि ज्यादातर लोग ये नहीं जानते कि उनके घर के आसपास कितने लोग दिव्यांग हैं. लोगों को इसकी भी जानकारी नहीं कि समाज में दिव्यांगजनों को बराबर का अधिकार मिल रहा है या नहीं. ऐसे में दिव्यांगजनों की वास्तविक स्थिति के बारे में, दिव्यांगजनों के बारे में लोगों को जागरुक करने के साथ-साथ दिव्यांगजनों में विश्वास पैदा करने के लिए, दिव्यांगजनों को प्रोत्साहित करने के लिए भी इस दिवस को मनाना बहुत आवश्यक है.


28 नवंबर 2025

ई-कचरे का बढ़ता खतरा

जलवायुध्वनिमृदा प्रदूषणों के बीच अपना विकराल रूप धारण कर चुके इलेक्ट्रॉनिक कचरे की तरफ अभी समाज बहुत गम्भीर नहीं दिखता है. आम जनमानस समझने की कोशिश नहीं कर रहा कि इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट भी पर्यावरण के लिए, मानव के लिए खतरा बन गया है. इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट को सामान्य बोलचाल में ई-कचरा के रूप में जाना जाता है. प्रतिवर्ष बहुत बड़ी संख्या में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण टूटने, पुराने होने के कारण फेंक दिए जाते हैं, वह ई-कचरा ही है. उचित तरीके से इसका निपटान, पुनर्चक्रण नहीं होने से ये स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा बन जाते हैं. ई-कचरे में कम्प्यूटर, मोबाइल, घरेलू उपकरण, व्यावसायिक उपकरण, माइक्रोवेवरिमोट कंट्रोलबिजली के तारस्मार्ट लाइटस्मार्टवॉच आदि आते हैं.

 

सामाजिक रूप से यह बहुत बड़ी समस्या है क्योंकि समाज का जिस तेजी से डिजिटाइजेशन हो रहा है, उसी तेजी से ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है. आधुनिक तकनीक और मानव जीवन शैली में आने वाले बदलाव के कारण ऐसे उपकरणों का उपयोग दिन-प्रति-दिन बढ़ता जा रहा है जो विषैले, हानिकारक पदार्थों के जनक बनते हैं. ट्यूबलाइटसीएफएल जैसी रोज़मर्रा वाली वस्तुओं में पारे जैसे विषैले पदार्थ पाए जाते हैं जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं. ऐसा अनुमान है कि पूरी दुनिया में लगभग 488 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न हो रहा है. संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक ई-कचरा मॉनिटर के चौथे संस्करण में बताया गया कि दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक कचरे का उत्पादन दर्ज ई-कचरे के पुनर्चक्रण की तुलना में पाँच गुना तेजी से बढ़ रहा है. रिपोर्ट में बताया गया कि 2022 में रिकॉर्ड 62 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ जो 2010 की तुलना में 82 प्रतिशत अधिक है. इसके 2030 तक 32 प्रतिशत तक बढ़कर 82 मिलियन टन होने की सम्भावना है. विश्व स्तर पर रिकॉर्ड 62 बिलियन किलो ई-कचरा उत्पन्न हुआ जो प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष औसतन 7.8 किलो के बराबर है. 2022 में यूरोप ने प्रति व्यक्ति 17.6 किलो के हिसाब से सर्वाधिक ई-कचरा उत्पन्न किया.

 



ई-कचरे में मरकरीकैडमियम और क्रोमियम जैसे कई विषैले तत्त्व शामिल होते हैं. इनके निस्तारण के असुरक्षित तौर-तरीकों से मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है. इससे अनेक तरह की बीमारियाँ होने की आशंका रहती है. भूमि में दबाने से ई-कचरा मिट्टी और भूजल को दूषित करता है. जब मिट्टी भारी धातुओं से दूषित हो जाती है तो उस क्षेत्र की फसलें विषाक्त हो जाती हैंजो अनेक बीमारियों का कारण बन सकती हैं. भविष्य में कृषियोग्य भूमि को भी अनुपजाऊ हो सकती है. मिट्टी के दूषित होने के बाद ई-कचरे में शामिल पारालिथियमलेड, बेरियम आदि भूजल तक पहुँचती हैं. धीरे-धीरे तालाबोंनालोंनदियों, झीलों आदि का पानी अम्लीय और विषाक्त हो जाता है. यह स्थिति मानवों, जानवरोंपौधों आदि के लिए घातक हो सकती है. ई-कचरा में शामिल विषाक्त पदार्थों का नकारात्मक प्रभाव मस्तिष्कहृदययकृतगुर्दे आदि पर बहुत तेजी से दिखाई देता है. इसके साथ-साथ मनुष्य के तंत्रिका तंत्र और प्रजनन प्रणाली को भी यह प्रभावित कर सकता है.

 

ई-कचरा के निपटान की अपनी स्थितियाँ, अपनी चुनौतियाँ हैं. इस कारण सबसे ज्यादा जोर इसके पुनर्नवीनीकरण पर दिया जा रहा है. पुनर्नवीनीकरण के द्वारा प्लास्टिक, धातु, काँच आदि को अलग-अलग करके उसको पुनरुपयोग योग्य बनाया जाता है. वैश्विक स्तर पर अब 81 देश ऐसे हैं जिन्होंने ई-कचरे से संबंधित कोई नीतिकानून या विनियमन अपनाया है. इन 81 देशों में से 67 ने विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) सिद्धांत लागू किया है, 46 ने अपने नियमों में राष्ट्रीय ई-कचरा संग्रहण लक्ष्य निर्धारित किए हैं और 36 ने राष्ट्रीय स्तर पर ई-कचरा पुनर्चक्रण लक्ष्यों को अपनाया है. भारत भी ई-कचरे से संबंधित कोई नीतिकानून या विनियमन को अपनाने वाले देशों में शामिल है इसके बाद भी यहाँ ई-अपशिष्ट प्रबंधन से सम्बन्धित अनेक चुनौतियाँ हैं. सबसे बड़ी चुनौती जन भागीदारी का बहुत कम होना है. इसके पीछे उपभोक्ताओं की एक तरह की अनिच्छा है जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की रीसाइक्लिंग के लिये बनी रहती है. इसके अलावा हाल के वर्षों में एक और चुनौती इस रूप में सामने आई है कि देश में बहुत से घरों में ई-कचरे का निस्तारण बड़े पैमाने पर होने लगा है. यह स्थिति तब है जबकि भारत में ई-कचरे के प्रबंधन के लिये वर्ष 2011 से कानून लागू है जो यह अनिवार्य करता है कि अधिकृत विघटनकर्त्ता और पुनर्चक्रणकर्त्ता द्वारा ही ई-कचरा एकत्र किया जाए. इसके लिये वर्ष 2017 में ई-कचरा (प्रबंधन) नियम 2016 अधिनियमित किया गया है.

 

तकनीक, आधुनिक जीवनशैली, आवश्यकता आदि की आड़ लेकर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग भले ही अंधाधुंध तरीके से किया जाने लगा हो मगर यह स्वीकारना होगा ई-कचरा भविष्य के लिए खतरा बनता जा रहा है. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, गैजेट्स का जीवन बहुत लम्बा नहीं होता है और बहुतायत समाज का इन्हीं पर निर्भर होते जाना खतरे का सूचक है. आज की युवा पीढ़ी के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को सुविधा के लिए कम, पैशन के लिए ज्यादा उपयोग किया जा रहा है. ऐसे में उनके द्वारा उपकरणों को जल्दी-जल्दी बदल दिया जाता है. नवीन तकनीक के कारण भी बहुतेरे उपकरण आउटडेटेड हो जाते हैं. यह भी ई-कचरा की मात्रा को बढ़ाने का काम कर रहा है.

 

पर्यावरण की, मानव, जीवों की सुरक्षा की खातिर लोगों को केवल हवा, पानी, भूमि, पेड़-पौधों को बचाने के बारे में ही सजग नहीं होना है बल्कि ई-कचरा के प्रति भी सावधान होने की आवश्यकता है. बेहतर हो कि जीवनशैली को संयमित, नियंत्रित किया जाये. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का अत्यावश्यक होने पर ही उपयोग किया जाये. उनके निस्तारण के लिए औपचारिक क्षेत्र की सहायता ली जाये. सम्भव है कि मानव समाज कुछ हद तक आने वाले खतरे को टाल सके.