लॉन टेनिस तो आज भी उसी तरह से चल रहा है जैसा कि नब्बे के दशक में चला करता
था, इक्का-दुक्का मैचों की अधिकता हो गई हो तो कह नहीं सकते. लॉन टेनिस के साथ-साथ
एक क्रिकेट ही ऐसा खेल हुआ करता था, जिसे हम पूरी निष्ठा, ईमानदारी के साथ न केवल खेला
करते थे बल्कि उन दिनों में होने वाले मैचों के बारे में पर्याप्त जानकारी रखा
करते थे. यहाँ उन दिनों का तात्पर्य नब्बे के दशक से ही है. उस दौर में क्रिकेट के
प्रति ये दीवानगी थी कि शायद कभी पढ़ने के लिए सुबह पाँच बजे न उठे हों मगर क्रिकेट
खेलने के लिए इस समय जबरदस्त चैतन्य भाव रहता था. घर के सदस्य जाग न जाएँ इस कारण
से ‘पिन ड्रॉप साइलेंस’ वाली अवधारणा का पूरी शिद्दत से पालन
किया जाता था.
बहरहाल, क्रिकेट के
प्रति जिस कदर मुहब्बत थी, वो उसी अनुपात में घृणा में बदल
गई. ये घृणा क्रिकेट मैच देखने के सन्दर्भ में है. जिस समय हैन्सी क्रोनिये और
अन्य लोगों सहित मैच फिक्सिंग का मामला सामने आया, उसके बाद
से आज तक एक भी क्रिकेट मैच हमने नहीं देखा है. आज भले लोग कहते हैं कि सट्टाबाज़ी
करना आसान नहीं रह गया है, सब तरफ से खिलाडियों पर नजर रखी
जा रही है, टेक्नोलॉजी बदल गई है. हमारा आज भी पूरे विश्वास
के साथ मानना है कि जिस तरह से क्रिकेट खेलने का अंदाज बदला है, उसी तरह से सट्टे का भी अंदाज बदला है. जिस तकनीक ने क्रिकेट को बदल दिया
है तो वही तकनीक सट्टे को नहीं बदल सकती?
क्रिकेट की दीवानगी की तरह उस समय लॉन टेनिस के प्रति भी दीवानगी हुआ करती थी.
इस दीवानगी के लिए सिर्फ और सिर्फ दो-तीन खिलाडी ही जिम्मेवार हुआ करते थे. इनमें
एक खिलाडी स्टेफी ग्राफ, दूसरी खिलाडी गैबरीला सबातीनी, एक आंद्रे अगासी. उन दिनों,
जबकि हम हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे थे तब भी कोशिश होती थी कि इन खिलाड़ियों का
कोई मैच न छूटने पाए. उस समय एक कोई मैच स्टेफी ग्राफ का था, शायद कोई फाइनल मैच था. हॉस्टल का
टीवी ख़राब पड़ा हुआ था, इस कारण वहाँ मैच देख पाना संभव नहीं
था. आज के हजारों हजार चैनल के बीच यह आश्चर्य का विषय ही है मगर उन दिनों कुछ-कुछ
मैचों का प्रसारण हुआ करता था. फिलहाल, हॉस्टल के टीवी पर तो
स्टेफी ग्राफ के मैच के दर्शन होने न थे तो उसी शहर में रह रहे अपने चाचा जी के घर
पहुँच गए. बात की बात में चाची ने कुछ कहा तो हमने कहा कि हमारी परिचित का मैच है, वही देखने आये हैं. इसके बाद तो न केवल चाची जी बल्कि हम भी जबरदस्त
ठहाके लगा-लगा के दोहरे हो गए.
आज भी कभी-कभी समय निकाल कर लॉन टेनिस के मैच देख लेते हैं. नए-नए खिलाडियों
ने तो मैचों का अंदाज बदल रखा है मगर उस दौर के खिलाड़ियों का अपना ही क्रेज था.
संभव है कि आज की जबरदस्त फास्ट पीढ़ी को वे मैच कुछ स्लो समझ आएँ मगर हम तो
इंटरनेट की सहायता से कभी-कभी उन मैचों को देखकर रोमांचित हो लेते हैं. आखिर हमारी
परिचित के मैच जो होते हैं वे.
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