भारतीय नौसेना के सात
पूर्व अधिकारियों ने दिल्ली हवाई अड्डे को जब भारत माता की जय के नारों से
गुंजायमान कर दिया, तब
वह क्षण भारत के लिए वैश्विक कूटनीति और विदेश नीति में विजय का क्षण था. ये वही पूर्व
सैनिक थे जिनको क़तर की अदालत द्वारा मौत की सजा सुनाई गई थी. इन पूर्व नौसैनिक
अधिकारियों की मौत की सजा को भारत के कूटनीतिक हस्तक्षेप के बाद कतर ने माफ कर
दिया था. मौत की सजा माफ़ होने के बाद भी भारत ने प्रयासों में कमी न रखी. आखिरकार इन
पूर्व नौसैनिकों को कतर ने रिहा कर दिया. इस मामले में भारत सरकार की कूटनीति की
सराहना करनी होगी क्योंकि कुछ दिन पहले लोकसभा में एक सदस्य ने सरकार को कतर में बंद
सैनिकों को वापस लाने की चुनौती दी थी. भारत सरकार द्वारा बिना किसी शोर-शराबे और
प्रतिक्रिया के सकारात्मक रणनीति पर कार्य करते हुए अपने नागरिकों को रिहा करवा
लिया गया.
जेल से रिहा हुए ये
पूर्व नौसैनिक दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजीज एंड कंसल्टिंग सर्विसेज में काम करते थे. दोहा
स्थित यह निजी फर्म कतर के सशस्त्र बलों और सुरक्षा एजेंसियों को प्रशिक्षण और अन्य सेवाएँ प्रदान
करती है. यद्यपि क़तर सरकार द्वारा आरोपों का स्पष्ट रूप से खुलासा नहीं किया गया तथापि
ऐसा समझा जा रहा कि इनको कतर के पनडुब्बी प्रोग्राम के सम्बन्ध में इजरायल के लिए जासूसी
करने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था. भारत सरकार ने आरोपों को लेकर तो कुछ नहीं
कहा, लेकिन उसने अपने नागरिकों
के साथ उचित व्यवहार की करने पर जोर दिया था. इस रिहाई को मोदी सरकार की बदलती और प्रभावी
विदेश-नीति का प्रतीक भी कहा जा रहा है. इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से पश्चिम एशिया और खाड़ी देशों के साथ
सम्बन्ध सुधारने पर विशेष बल दिया गया. पहले की सरकारों में इस तरफ कम ध्यान दिया जाता
रहा. प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने अपना स्पष्ट रुख रखा था कि पश्चिम
एशिया और अरब देशों से संबंधों के मामले में नया अध्याय जोड़ा जा रहा है. भारत
सरकार के द्वारा नए भारत सम्बोधन को लगातार सच भी किया जा रहा है. इसके लिए बिना
किसी पूर्वाग्रह के केन्द्र सरकार द्वारा अपनाई जा रही कूटनीति और विदेशनीति को
देखना होगा. इन क्षेत्रों में भारत को लगातार सफलता मिल रही है. अफगानिस्तान, यूक्रेन
से भारतीय नागरिकों को भारत ने निकाला. यूक्रेन-संकट के दौरान पुतिन ने भारतीय विद्यार्थियों
को सेफ पैसेज देते हुए उनको निकलने में मदद की.
पूर्व नौसैनिकों
की सजा का मामला सिर्फ विदेश नीति तक ही सीमित नहीं रहा. दिसम्बर में दुबई में हुए
पर्यावरण सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कतर के राष्ट्रप्रमुख शेख तमीम
बिन हमाद की मुलाकात को सकारात्मक संदेश के रूप में देखा गया. इस मुलाकात के बाद
भारतीय नागरिकों की रिहाई का समाचार आना अपने आपमें एक सुखद सन्देश है. यह एक
प्रकार से क़तर के स्वभाव का भी परिचायक है. विदेशी मामलों के जानकार मानते हैं कि कतर
एक ऐसा देश है जो हमेशा मध्यस्थता करके दो देशों के विवादों को सुलझाने में सहायक
की भूमिका हेतु जाना जाता है. अभी हाल में इजराइल और हमास के बीच भी कतर ने
सकारात्मक भूमिका का निर्वहन करते हुए मध्यस्थता निभाई. भारत की बढती वैश्विक छवि
से क़तर अनजान नहीं है. ऐसे में भारतीय कूटनीति, विदेश नीति और दोनों देशों के मध्य
के राजनयिक, व्यापारिक
सम्बन्धों के चलते कतर को भारतीय कैदियों को राहत देनी पड़ी.
इस पूरे घटनाक्रम में
वर्ष 2014 की संधि और अभी हाल
ही में भारत और क़तर के मध्य हुए गैस सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण समझौते को भी नजरंदाज नहीं
किया जा सकता है. 2014 की संधि में दोनों देशों के मध्य यह स्वीकार किया गया था कि
अगर किसी कारण से दोनों देशों के नागरिकों को सजा मिलती है तो वे अपने देश में सजा
काट सकते हैं. ऐसे में एक सम्भावना इन पूर्व सैनिकों के भारत में सजा काटने की भी
बन रही थी मगर भारत सरकार ने इस मामले को कूटनीतिक नजरिए से उठाते हुए अमेरिका और तुर्किए
से भी चर्चा की थी. इन दोनों देशों के रिश्ते कतर और उसके राष्ट्राध्यक्ष से बेहतर
हैं. जिसके चलते इन नागरिकों की रिहाई सम्बन्धी निर्णय आना सहज हुआ. भारतीय
कूटनीति के साथ-साथ क़तर के साथ हुए गैस सम्बन्धी समझौते को भी इस मामले में
प्रभावकारी माना जा रहा है. इसी फरवरी में हुए इस समझौते के अनुसार भारत अगले बीस
वर्षों तक क़तर से लिक्विफाइड नैचुरल गैस (एलएनजी)
खरीदेगा. एलएनजी
आयात करने वाली भारत की सबसे बड़ी
कंपनी पेट्रोनेट एलएनजी लिमिटेड ने कतर की सरकारी कंपनी कतर एनर्जी के साथ ये समझौता
किया है. इसके अनुसार कतर प्रतिवर्ष 7.5 मिलियन टन गैस भारत को निर्यात करेगा.
कूटनीति हो, विदेश नीति हो या फिर क़तर के साथ
हमारे दोस्ताना सम्बन्ध कुल मिलाकर भारतीय नागरिक रिहा होकर स्वदेश लौट आये हैं. विश्व
राजनीति बहुत ही जटिल और संवेदनशील हो चुकी है. भारत ने दक्षिण एशिया से ऊपर उठकर वैश्विक
राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. विदेश के संकटग्रस्त देशों से भारतीय
नागरिकों की वापसी रही हो, कोरोनाकल में भारत द्वारा मदद
देना रहा हो, तालिबान और पश्चिमी देशों के मध्य बातचीत होना
रहा हो, सभी में भारतीय कूटनीति, विदेश
नीति महत्त्वपूर्ण भूमिका में नजर आई है. विगत वर्षों में भारतीय विदेश नीति नित नए
आयाम गढ़ती नजर आ रही है. यह वैश्विक परिदृश्य में भारतीय छवि की बढ़ती स्वीकार्यता
का सूचक है.
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