18 सितम्बर को भारतीय संसद के लिए एक ऐतिहासिक तिथि के
रूप में याद रखा जायेगा. जिस संसद भवन ने अपनी 96 वर्षों की यात्रा में बहुत से
ऐतिहासिक निर्णय होते देखे, बहुत से क्रांतिकारी परिवर्तन देखे, अनेक अप्रत्याशित
घटनाक्रमों की गवाही दी, उसकी वह यात्रा इस दिन थम गई. 18 जनवरी 1927 से
चली आ रही अनथक यात्रा को 18 सितंबर 2023 को विश्राम देकर नए संसद भवन को आने वाले समय के लिए तैयार कर लिया गया
है.
वर्ष
1911 में ब्रिटेन के तत्कालीन राजा जॉर्ज पंचम और महारानी ने
भारत आने पर देश की राजधानी कोलकाता से दिल्ली बनाए जाने की घोषणा की. इसके बाद
वहाँ संसद भवन, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, राजपथ, इंडिया गेट सहित अन्य हेरिटेज इमारतों को
बनाने की जिम्मेदारी दो आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर को दी गई. 1921
में संसद को बनाने का काम शुरू हुआ और 1927 में
यह भवन बनकर तैयार हुआ. छह एकड़ में बने इस भवन को शुरुआत में काउंसिल हाउस के नाम
से जाना जाता था. 1926 से 1931 तक भारत
के वायसराय रहे लॉर्ड इरविन द्वारा इसका उद्घाटन 18 जनवरी 1927
को किया गया. बाद में वर्ष 1956 में इसमें दो
फ्लोर और वर्ष 2006 में एक संग्रहालय भी बनाया गया. यह
संग्रहालय ढाई सौ सालों की समृद्ध लोकतांत्रिक विरासत को दिखाता है.
18 सितम्बर से 22 सितम्बर 2023 तक चलने वाले विशेष सत्र के
पहले दिन पुरानी संसद भवन की लम्बी यात्रा को याद किया गया. पाँच दिनों तक चलने वाले
विशेष सत्र के दूसरे दिन की कार्यवाही के नए भवन में आरम्भ होते ही वो पुराना संसद
भवन इतिहास बन जायेगा, जो 96 वर्षों की अवधि में घटित कई घटनाओं का गवाह रहा. विश्व के सबसे बड़े
लोकतंत्र की कार्यप्रणाली जिस संविधान के प्रावधानों द्वारा संचालित होती है, उस
संविधान का निर्माण इसी संसद भवन में हुआ था. 26 जनवरी
1950 में जब देश का संविधान लागू हुआ और राजेंद्र प्रसाद देश
के पहले राष्ट्रपति बने तो उस ऐतिहासिक पल का साक्षी ये पुराना संसद भवन बना था. देश
के संविधान को लागू किये जाने के बाद संसद भवन ने 18 जून 1951
को हुए पहले संवैधानिक संशोधन को भी देखा. इसमें धारा 15,
19, 85, 87, 174, 176, 341, 342, 372 और 376 को
संशोधित किया गया. अपनी इस यात्रा में संसद भवन ने कुल 105 संवैधानिक
संशोधनों को होते देखा.
संसद
भवन ने जहाँ सुखद पलों को अपने में सहेज रखा है वहीं उसके पहलू में दुखद घटनाओं ने
भी जगह ले रखी है. 25 जून 1975 को
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के द्वारा आपातकाल की घोषणा
किये जाने का निर्णय हो या फिर 1996 से 1998 की दो वर्षीय अवधि में चार प्रधानमंत्रियों का आना लोकतांत्रिक व्यवस्था
पर प्रश्नचिन्ह है. संवैधानिक व्यवस्था के इस बुरे दौर से गुजरते हुए संसद भवन ने
अपनी सुरक्षा, अपनी आन-बान-शान पर हमला होने का दर्द भी सहा है. देश की सुरक्षा
व्यवस्था पर उस समय सवाल उठे जबकि संसद भवन को ही आतंकियों ने अपना निशाना बनाया. 13
दिसम्बर 2001 को आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और
जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने लोकतंत्र के इस मंदिर पर हमला कर दिया. इस हमले में सुरक्षा
कर्मियों और दिल्ली पुलिस के जवानों सहित कुल नौ लोग शहीद हुए. यद्यपि हमले को
अंजाम देने आये सभी पाँचों आतंकवादियों को सुरक्षाबलों ने मौके पर ही मार गिराया
तथापि इस हमले ने एक गहरा जख्म तो दे ही दिया.
आतंकी
हमले की टीस लेकर खड़े पुराने संसद भवन ने इसके अलावा बहुत सारे ऐसे ऐतिहासिक पलों
को, घटनाक्रमों को घटित होते देखा है, जिनको देश की एकता, अखंडता, गौरव आदि के लिए
जाना जा सकता है. किसी समय जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं ने वहाँ के जनजीवन को
अस्त-व्यस्त करके रख दिया था. पाकिस्तान की तरफ से लगातार कश्मीर को कब्जाने के
कुत्सित प्रयासों के चलते और संवैधानिक प्रावधानों के चलते जम्मू-कश्मीर देश का
अभिन्न हिस्सा होने के बाद भी अलग-थलग सा दिखाई देता था. वर्तमान केन्द्र सरकार की
दृढ इच्छशक्ति का सुफल भी पुराने संसद भवन ने महसूस किया जबकि 5 अगस्त 2019 को केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर
पुनर्गठन अधिनियम 2019 पेश किया. इस अधिनियम के लागू हो जाने
के बाद से जम्मू-कश्मीर राज्य से सम्बंधित
संविधान का अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी हो गया है. इसी के साथ
अब देश में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो केन्द्रशासित प्रदेशों की उपस्थिति भी हो गई
है.
प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने 28 मई 2023 को नए संसद परिसर का उद्घाटन करते
समय आशा व्यक्त की थी कि नया भवन सशक्तीकरण, सपनों को
प्रज्वलित करने और उन्हें वास्तविकता में बदलने का उदगम स्थल बनेगा. ऐसा होना आज
समय की माँग है क्योंकि विगत कुछ वर्षों से जिस तरह से पुराने संसद भवन के दोनों
सदनों ने हंगामा, शोरगुल, आरोप-प्रत्यारोप, नारेबाजी, सदन सञ्चालन में व्यवधान,
असंवैधानिक कृत्यों को होते देखा है उससे न केवल संसद सदस्यों की साख में गिरावट
आई है बल्कि संवैधानिक व्यवस्था पर भी सवालिया निशान लगे हैं. पुराने संसद भवन ने पाँच
दिवसीय विशेष सत्र का पहला दिन अपने नाम करके नए संसद भवन को अपने उत्तराधिकारी के
रूप में शेष चार दिनों को सौंप दिया है. अब नया संसद भवन देश के विकास की कहानी का
साक्षी बनेगा और पुराना संसद भवन अतीत की गाथाओं को सुनाएगा. आशा है आज़ाद भारत में
भारतीयों द्वारा बनाये गए इस नए ससंद भवन में हमारा लोकतंत्र अपनी श्रेष्ठता को प्राप्त
करेगा. रिकॉर्ड समय में तैयार हुआ यह भवन न सिर्फ भारतीय मेधा का प्रतीक बना है बल्कि
नए भारत की छवि प्रदर्शित करेगा जो अपनी गहरी सांस्कृतिक जड़ों से आबद्ध है और उन पर
गर्व करता है. नई संसद में स्थापित चोल शासकों का राजदंड सेंगोल राजशक्ति की न्याय
के प्रति समर्पण का प्रतीक बनेगा और लोकतंत्र की इस कर्मभूमि को न्याय का मंदिर बनाएगा.
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