08 फ़रवरी 2022

परिस्थितियों से सीखने को तैयार नहीं इंसान

ऐसा लगता है कि इंसान की याददाश्त अल्पकालिक होती है. उसके कृत्य बताते हैं कि वह अपने अतीत से या फिर तात्कालिक रूप में घटित होने वाले घटनाक्रमों से भी बहुत कुछ सीखता हैं है. ऐसा इसलिए क्योंकि वह बहुत जल्द ही उन सारी स्थितियों को, घटनाओं को भूल जाता है जिनके द्वारा वह कुछ सीखने की बात कहता था. बहुत सारे इधर-उधर के उदाहरणों के बजाय विगत दो वर्षों में समाज में उथल-पुथल मचा देने वाले कोरोनाकाल की ही घटनाओं को देख लें तो समझ आता है कि इंसान की याददाश्त अल्पकालिक है. वैसे याददाश्त के कमजोर होने या अल्पकालिक होने के अलावा यह भी कहा जा सकता है कि इंसान अपने साथ होने वाली घटनाओं से भी कुछ नहीं सीखना चाहता है.


कोरोनाकाल में लॉकडाउन के समय में जिस तरह से व्यक्ति घरों में कैद हुए, जिस तरह से अल्प संसाधनों में दैनिक कार्य सम्पन्न होते रहे, जिस तरह से मनुष्य के संयमित और सीमित कृत्यों से प्रकृति में सकारात्मक बदलाव देखने को मिले थे उनको देखकर बहुतेरे मनुष्यों ने संकल्प सा ले लिया था कि वे इसी तरह से अपनी जीवन-चर्या को आगे बढ़ाएंगे. लॉकडाउन के समय में कुछ छूट दिए जाने के दौरान जिस तरह से सामाजिक, सांस्कृतिक, वैवाहिक कार्यक्रमों, आयोजनों में लोगों के आने को सीमित किया गया, उसके द्वारा भी बहुत से लोगों ने सीख लेने की बात कही. बहुत से लोगों को शादी-विवाह के आयोजनों में सीमित संख्या में लोगों के शामिल होने का शासन का, सरकार का निर्णय ऐसे आयोजनों में होने वाले अपव्यय को रोकने का यह सबसे अच्छा कदम लगा था. लोगों ने भविष्य के लिए इसी कदम को स्वतः उठाने की, उस पर अमल करने की मानसिकता दर्शायी थी.




लोगों की सभी तरह की धारणाएँ, तमाम तरह के संकल्प उसी समय धराशाही से होते दिखे जिस समय लॉकडाउन को पूरी तरह से हटा लिया गया. कोरोनाकाल के दौरान लगाये गए तमाम सारे प्रतिबंधों को खोल दिया गया तो इंसान अपने पुराने रंग-ढंग में नजर आने लगा. जो व्यक्ति लॉकडाउन में दूरी बनाये रखने की, मास्क पहनने की, कम संख्या में भीड़ जुटाने की बात करता दिखता था, वही खुलेआम भीड़ का हिस्सा बनने लगा, आयोजनों में बिना किसी सुरक्षात्मक कदमों के सहभागिता करने लगा, अपने आयोजनों में भीड़ का आमंत्रण करने लगा. वैवाहिक आयोजन रहे हों या फिर धार्मिक, सामाजिक कार्यक्रम हो या फिर राजनैतिक, बाजार हों या फिर कार्यालय सभी जगह भीड़ अपनी पूरी क्षमता से दिखाई देने लगी. अब ऐसा लगने लगा कि व्यक्तियों को न तो कोरोना का भय है और न ही कुछ महीनों पहले कोरोना से होने वाली मौतों से उसने कुछ सीखा है.


इन्हीं सबको देखकर लगता है कि इंसान अल्पकालिक स्मृति रखता है, जो सिर्फ उसी समय काम करती है जबकि वह उसी स्थिति से गुजर रहा होता है. 


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