02 मई 2020

गुलेल के रास्ते आया आँसुओं का ज़लज़ला

काफी देर तक समझाने के बाद भी उस लड़की के आँसू नहीं थम रहे थे. वे चार-पाँच लड़कियाँ गर्ल्स कॉमन रूम के एक कोने में खड़ीं आगे की कुछ योजना बनाने में लगी हुई थीं. उनके ग्रुप की एक दूसरी तेज-तर्रार लड़की बार-बार प्राचार्य से शिकायत करने पर जोर दे रही थी. हमारे एक मित्रवर, जो उन्हीं लड़कियों के साथ पढ़ा करते थे, लगातार समझाने की कोशिश कर रहे थे मगर न तो रोने वाली लड़की के आँसू रुक रहे थे और न ही वह तेज-तर्रार सी लड़की अपने हाव-भाव को नियंत्रित कर रही थी. 

हमारे मित्र वैसे तो बातें पुटकने में बहुत माहिर रहे हैं, आज भी हैं. ये तो संभव ही नहीं था कि वे कोई मामला, खासतौर से लड़कियों से सम्बंधित, सुलझाने जाएँ और वो सुलझे नहीं. बस ऐसे किसी भी मसले में शामिल होने पर वे अपनी इमेज का बहुत ख्याल रखते थे. जब उनको लगा कि बात, हालात उनके नियंत्रण से बाहर जा रहे हैं, स्थिति तनावपूर्ण होती जा रही है तो उन्होंने एक और दाँव फेंका.

वो बेर तुमको नहीं, इसे मारना था. तुमको तो ग़लती से लग गया. आँसू बहाती लड़की को समझाते हुए मित्रवर ने तेज-तर्रार लड़की की तरफ इशारा किया. उसका इतना कहना था कि उसके आँसू बहना रुक गए और दूसरी लड़की का शिकायत करने का सुझाव कहीं खो गया. अब उसने रोना शुरू कर दिया. तब तक हमारा भी वहाँ पहुँचना हो गया.

असल में जो काण्ड हुआ था, उसके बाद आती प्रलय, आँसुओं के ज़लज़ले को थामने के लिए ही अपने मित्र को भेजा गया था. उसे गए जब देर हो गई तो लगा कि मामला कहीं फँस रहा है. डर ये भी लगा कि कहीं अपनी इमेज बनाने के चक्कर में हमारे मित्र महोदय ज़लज़ले में सबकुछ न उलट-पुलट करवा दें. हमने देखा कि जो रोता हुआ चला था, वह अब शांत है और उसकी जगह कोई और आँसू बहाने में लगा है. हमने मित्र को देख इशारा किया तो उसने शांत रहने का इशारा किया.

जैसे ही उस तेज-तर्रार लड़की ने, जो अब रोने में लगी थी (रोते हुए बड़ी प्यारी लग रही थी. हम अपनी इमेज-फिमेज की चिंता नहीं करते थे, न तो ज़लज़ला आ ही जाने देते उस दिन) उसने जैसे ही हमें देखा तो बड़े गुस्से में बोली, ये सिखाते हो आप लोग अपने जूनियर को? तमीज नहीं कि किसके साथ कैसा व्यवहार करना है?

हमने उसे शांत रहने का इशारा किया मगर वो कहाँ मानने वाली. समझाते ही उसका स्वर और तेज हुआ. बोली, आज की सारी बात अपने भैया लोगों को बताएँगे. अब वे ही आकर निपटेंगे.

जैसे ही ये निपटने, निपटाने जैसे शब्द सुने तो हॉस्टल की पानी की टंकी में उबाल आ गया. समझाने-बात करने, मामला निपटाने के क्रम में मालूम चला कि उसके रिश्तेदारी में मिलाकर आठ-नौ भाई हैं. उससे हमने कहा, सुनो, भाइयों को पिटवाने का शौक हो तो बिलकुल बता देना. तुम्हारे आठ-नौ भाई हैं पर हम चालीस-पचास भाई हैं.

ये सोचकर कि बात न बिगड़े, मामला प्राचार्य तक न पहुँचे, उसे समझाया कि चुप हो जाओ. तुमको तो लगी भी नहीं. जिसे लगी है वह कुछ बोल नहीं रही. उस जूनियर को हम समझा देंगे.

इसके बाद शायद उसको समझ आया. उसने ख्यालों में अपने भाइयों की कुटाई भी देख-समझ ली होगी. आराम से आँसू पोंछ वह सबको लेकर गर्ल्स कॉमन रूम से बाहर निकल आई. हम अपने मित्र को दुखी दुखी सा देखते रहे. उसे लग रहा था कि उनके साथ पढ़ने वाली लड़कियों के सामने एक जूनियर की बदतमीजी ने उसकी इमेज को दाग लगा दिया.


++

असल में पूरा किस्सा उस दिन शुरू हुआ पानी की टंकी के पास गिरे बेरों से. उस दिन हम दोस्त पानी की टंकी के पास पड़ी खाली जगह पर बैठे हुए थे. वह जगह एक बेर के पेड़ के नीचे बनी थी. परीक्षा का समय नजदीक था. प्रैक्टिकल चल रहे थे, सो कक्षाएँ भी गिनी-चुनी लग रही थीं. कॉलेज में विद्यार्थियों का आना-जाना भी कुछ सीमित सा हो गया था. हॉस्टल वालों के पास कॉलेज जाना एक अनिवार्य कार्य हुआ करता था. ऐसा लगता था जैसे कॉलेज नहीं जाया जायेगा तो धरती पलट जाएगी, प्रलय हो जाएगी. उस दिन भी धरती को पलटने से बचाने के लिए, प्रलय को रोकने के लिए हॉस्टल की पलटन के कुछ सिपाही उसी जगह जमे हुए थे. हँसी-मजाक, शरारतों का दौर चल रहा था. बेर के पेड़ से टपकते कुछ बेरों का और कुछ गिराए गए बेरों का स्वाद लिया जा रहा था. इस हँसी-मजाक के बीच ही एकदम से हड़बड़ सी समझ आई.

जब तक समझ में बात आती, सामने लड़कियों के एक ग्रुप में से एक लड़की ने हमारी तरफ देखते हुए तीखी, तेज आवाज़ में चिल्लाते हुए कहा कि बैठे-बैठे बदतमीजी करवा रहे हो. उसका रोना साफ़ समझ आया. इससे पहले कि उनसे कुछ पूछते, वे सब वहाँ से तेजी से चल दीं. हमारे पास खड़े एक जूनियर ने बड़े ही तीरंदाजी वाले स्टाइल में हँसते हुए बताया कि उसने गुलेल से बेर मार दिया. उसके मुँह से कुछ और निकलता उसके पहले एक तेज कंटाप से उसे शांत कर दिया. बात को सँभालने के लिए अपने मित्र को भेजा क्योंकि वे लड़कियाँ उसके साथ पढ़ा करती थीं.

++


हम हॉस्टल वाले भाई खूब शैतानियाँ, शरारतें करते थे, खूब लड़ाई-दंगे जैसी स्थिति भी बनती थी मगर लड़कियों को परेशान करने, उनको छेड़ने जैसी किसी भी हरकत का समर्थन नहीं करते थे. यही कारण था कि उसी समय गलती का परिणाम एक तमाचे के रूप में उसे मिला. 

.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

6 टिप्‍पणियां:

  1. मज़ेदार किस्सा. स्कूल कॉलेज की शरारतें किस्ती मस्ती भरी होती थी.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सच में, तब मजाक का इतना बुरा भी न माना जाता था और दोस्ती चलती रहती थी।

      हटाएं
  2. दिलचस्प मजेदार किस्सा ,ये दौर मस्ती मजाक का है ।बढ़िया

    जवाब देंहटाएं
  3. खूबसूरत यादें
    ऐसी चुटीली घटनाएँ मुस्कराहटें फैला देती हैं
    प्रणाम

    जवाब देंहटाएं