21 अप्रैल 2020

बने विश्व विजेता कुत्तों के बिस्किट के नाम पर

आजकल सभी फुर्सत में हैं और उसी फुर्सत में वे सभी लोग एक-दूसरे से पूरी तबियत से जुड़ते जा रहे हैं जो दिल से जुड़े हुए हैं. इसी जोड़ लगाने में हमारे हॉस्टल के भाई बड़े काबिल हैं. ग्रुप के माध्यम से दिन भर किसी न किसी की मौज ली जाती है. इसमें छोटे, बड़े किसी को नहीं छोड़ा जाता है पर ध्यान यही रखा जाता है कि मौज के लिए की जा रही किसी भी बात से, मजाक से, घटना से किसी बड़े भाई का अपमान न हो. रिश्तों की आत्मीयता, गरिमा बनाये रखते हुए बीते दिनों की बातें याद करते हुए दिन भर किसी न किसी रूप में हँसी-ठठ्ठा चलता रहता है. 


इसी में कुछ ऐसी बातें भी याद आ जाती हैं जो कहीं कोने में दब-छिप गईं हैं. ऐसी ही एक घटना याद आ रही हॉस्टल के समय की जबकि हम लोगों का सामना गोल आकार के बिस्किट से हुआ था. शायद ये बहुत से लोगों को आश्चर्य लग रहा होगा मगर सच यही है. ये बात वर्ष 1992 की है. उस समय तक पारले के चौकोर बिस्किट से ही हमने अपना स्वाद बनाया हुआ था. संभव है कि उस समय और भी बिस्किट आते हों मगर हमारी किस्मत में वही पारले का बच्चा था. एक शाम हम कुछ मित्र अपनी नियमित दिनचर्या के हिसाब से चाय पीने के लिए निकले. सड़क किनारे कई ट्रक रुके खड़े हुए थे. आगरा-बॉम्बे रूठ वाली ये सड़क ट्रकों के आवागमन से भरी रहती थी.


ट्रक खड़े देखे तो शैतानी सूझ उठी. हॉस्टल की वानर सेना में कुछ एक ज्यादा ही सक्रिय थे, हमारे जैसे, बस इधर-उधर से चढ़ने की जुगाड़ बनाई गई. ये शायद ट्रक में रखे सामान की किस्मत थी कि उसे हम सबके हाथ से सुशोभित होना था, सो एक किनारे से ट्रक पर बंधा हुआ कारपेट खुला था. संभव है कि हमारे ही अन्य भाइयों ने अपनी कलाकारी हमसे पहले दिखा ली हो और उसी का परिणाम ये खुली जगह रही हो. बहरहाल, इन सब बातों पर विचार किये बिना उसी खुले जगह से हाथ घुसाते हुए मुँह घुसाने तक की जगह बनाई. अँधेरे में सफल तीर मारने की अद्भुत क्षमता की धनी हॉस्टल सेना ने ट्रक में रखे गत्ते में तीर मार ही दिया.

कुछ पैकेट पकड़ में आये. रंगीन, चिकने से पैकेट कुछ अलग तरह के लगे. जल्दी-जल्दी कोई पंद्रह बीस पैकेटों को बंद गत्ते से आज़ाद करवाने के साथ ही हम सब दौड़ते हुए वापस हॉस्टल आ गए. जंगल की आग की तरह ये खबर हॉस्टल में फ़ैल गई. हमारी तरह के दो-तीन अलग-अलग ग्रुपों ने भी ट्रक में चढ़कर हमारी ही तरह कई-कई पैकेटों को मुक्ति दिलवाई. आपके संदेह को दूर करते चलें. उन बेचारे पैकेटों को आज़ादी दिलाने में आसानी इस कारण रही क्योंकि ट्रक के ड्राईवर, क्लीनर आदि आसपास के होटल, ढाबों में पेट भरने में लगे थे. वे पेट भरने में लगे थे और हम लोग गत्ते खाली करने में लगे थे. लालच न करते हुए बस दो-तीन राउंड लगाकर कुछेक बचे-खुचे पैकेटों को भी आज़ादी दिलवाई और फिर ख़ामोशी से हॉस्टल में आकर बैठ गए.


कमरा बंद करके, बड़ी ही गोपनीयता से पैकेट खोला तो उसमें से कुछ और पैकेट मुक्ति पा गए. उनको फाड़कर देखा तो गोल बिस्किट पलंग पर दर्शनार्थ बिखर गए. बिस्किट के चिर-परिचित आकार से अलग तरह के बिस्किट निकलते ही मूड ऑफ हो गया. पहली बार गोल बिस्किट देखे तो लगा कि ये हम लोगों के लिए नहीं बल्कि कुत्तों के खाने वाले बिस्किट हैं. जितनी ख़ुशी और जोश के साथ पैकेट थामे हॉस्टल में विजयी मुद्रा में लौटे थे वह गायब हो गई. इसके बाद भी हार न मानी. पैकेट उठाकर पढ़ने की कोशिश की मगर विशुद्ध अंग्रेजी भाषा के चलते सबकुछ दिमाग के ऊपर निकल गया.

अब चूँकि हार मानना तो सीखा नहीं था सो ग्रुप के सीक्रेट को छिपाते हुए कुछ मित्रों को काम दिया गया कि कैसे भी हो कल ही इसका पता लगाया जाये कि ये बिस्किट आदमियों के लिए हैं या जानवरों के लिए. बस अगले दिन का टास्क तय हो गया. दोपहर तक इसमें सफलता भी मिल गई कि ये बिस्किट अभी नए-नए आये हैं और इंसानों के लिए ही हैं. सफलता की एक ख़ुशी पर शाम तक तुषारापात हो गया जब पता चला कि दूसरे ग्रुप के पास हम लोगों से ज्यादा पैकेट हैं. अब क्या किया जाए? जो ग्रुप पूरे हॉस्टल में, कॉलेज में सबसे उत्पाती, सबसे बवाली, सबसे जोशीला, सबसे खुरापाती, सबसे सक्रिय आदि-आदि माना जाता हो, उसी के पास पैकेट कम. ये भी अपने आपमें हार समझ आई. आखिर हमारे रहते कोई और क्यों जीते? वो भी हमारा ही प्रतिद्वंद्वी ग्रुप.

अब इसका भी तोड़ निकालना था क्योंकि हारना नहीं था. बस फिर योजना बनाई गई. अब ये नहीं पता कि हमारी तरह का संशय दूसरे ग्रुप के पास था कि नहीं क्योंकि वे बड़ी चैतन्यता से बिस्किट खाते हुए दिख रहे थे. यही हम लोगों की योजना थी. जिसे ही उनको बिस्किट खाते देखते, हम मित्र हँसकर उनकी मौज लेने लगते. ऐसा दो-तीन बार हुआ तो उन्होंने इसका कारण पूछा. तो उनको बताया कि अबे तुम सब कुत्तों के बिस्किट खा रहे हो. उनको जानकारी थी कि हम लोग भी वे पैकेट निकाल कर लाये हैं मगर हममें से किसी को उन्होंने खाते नहीं देखा. बिस्किट का गोल होना उनको भी अचरज में डाले होगा. हमारे पैकेटों के बारे में उनको बता दिया कि एक दोस्त के घर कुत्ते हैं, उसको दे दिए.

इस पूरी योजना में, उनको समझाने में इतना अधिक विश्वास झलक रहा था कि वे इसे सही मान गए. इसी में उनके बिस्किट के कई पैकेट हम लोगों के हत्थे चढ़ गए. अब हमारा ग्रुप सबसे अधिक पैकेटों के साथ विश्व विजय की अनुभूति कर रहा था. कुछ दिन बाद सभी ने मिलजुल कर उन बिस्किट का स्वाद लिया और उसी स्वाद में दूसरे ग्रुप को बेवकूफ बनाये जाने पर हम सब बहुत दिन तक मौज लेते रहे.  

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

5 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा हा हा हा हा गजब रहा ये तो । आप भी खूब खुराफाती रहे जी । कमाल की पोस्ट और कमाल की यादें

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  2. बचपन की ऐसी यादें बहुत मधुर होती हैं ःः

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  3. बचपन की ऐसी यादें बहुत मधुर होती हैं ःः

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  4. गुज़रे ज़माने के यह किस्से --- कभी भी अंदर तक गुदगुदा देते हैं !

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