जब
हर तरफ लॉकडाउन की चर्चा चल रही हो, जब हर किसी की जुबान पर कोरोना की बातें हों,
जब हरेक काम में लॉकडाउन, कोरोना ही नजर आये तो यह स्थिति दिमाग पर असर करती है.
लोग घर पर रहते-रहते एक जैसी स्थिति में आ चुके हैं या कहें कि संतृप्ति
(सेचुरेशन) की स्थिति में आ चुके हैं. लोगों की बातचीत में, चर्चाओं में बस
लॉकडाउन, कोरोना ही घुस गया है. इससे निकलने का प्रयास करना चाहिए नहीं तो स्थिति
अवसाद की भी बन सकती है.
बहरहाल,
आज पुराने दिनों की सैर करने का मन कर गया. टाइम मशीन तो है नहीं हमारे पास, हमारे
पास क्या, किसी के पास भी नहीं है सो बीते समय में नहीं जा सकते थे. फिर क्या किया
जा सकता था? टाइम मशीन भले ही न हो मगर तकनीक ने टाइम मशीन जैसी स्थिति सबके बीच
बना रखी है. जी हाँ, फोटो, वीडियो के द्वारा कोई भी बीते दिनों की सैर कर सकता है.
यहाँ आपकी याददाश्त अच्छी हो तो पुराने दिनों की फोटो देखते समय सबकुछ ज्यों का
त्यों आँखों के सामने से गुजरता रहता है. यदि ऐसा नहीं है तो कई बार खुद ही असमंजस
की स्थिति पैदा हो जाती है. हमने भी अपने, पिताजी के पुराने एल्बम निकाले. अपने
बचपन के उन दिनों की सैर कर आये, जिनके बारे में अपने घर के बड़ों से सुनते रहे
हैं.
एक
फोटो मिली उस समय की जबकि हम ढाई साल के रहे होंगे. छोटा भाई पाँच-छह माह का.
हमारे पारिवारिक नजदीकी नरेन्द्र चाचा ने फोटोग्राफी का काम शुरू किया. उन्होंने
हम दोनों भाइयों की कुछ फोटो निकालीं. उन्हीं में से एक फोटो आप सबके लिए.
हम खड़े हुए, छोटा भाई कुर्सी पर विराजमान |
ये
फोटो हमारे मामा जी ने निकाली, वर्ष रहा होगा 1980. वे उस
समय शायद बैंगलोर में रहते थे. मामी का घर उरई में ही है वहाँ सभी का समय-समय पर
आना होता रहा है. इसमें हम तीनों भाई अम्मा के साथ हैं.
अम्मा की गोद में सबसे छोटा भाई, अम्मा के दाहिने हम और बाँए हमसे छोटा भाई |
बाँए से हम और हमारा छोटा भाई |
पहले
हरेक घरों में कैमरे नहीं हुआ करते थे. ऐसे में किसी आयोजन विशेष पर या फिर किसी
त्यौहार आदि पर जबकि समूचा परिवार इकठ्ठा होता था तो फोटोग्राफर को बुलाकर
पारिवारिक फोटो खिंचवाने की परम्परा जैसी हुआ करती थी. घर में कैमरा होने के बाद
भी उस दीपावली स्टूडियो से कैमरा वाले को बुलाया गया. प्रतिवर्ष होली, दीपावली सभी
लोग इकठ्ठा हुआ करते थे, उस दीपावली भी हुए. सबका फोटो सेशन हुआ. हम बच्चों ने भी
बाबा-अइया के साथ फोटो निकलवाई. ये फोटो इस कारण विशेष है क्योंकि बाबा के साथ हम
लोगों की ये अंतिम फोटो रही. इसके बाद सितम्बर 1991 में बाबा
जी का देहांत हो गया. ये फोटो वर्ष 1990 की दीपावली की है.
बाबा-अइया के साथ हम सब भाई-बहिन |
और
भी बहुत सारी फोटो देखते रहे. देख-देख के उनकी दिनों में गोते लगाते रहे. आप सब भी
आइये हमारे साथ.
.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
वाह बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं