लॉकडाउन
के शुरू होते ही सभी जगह समाजसेवियों की भीड़ सी उमड़ आई है. दैनिक आवश्यकता की
वस्तुओं के अलावा सभी कुछ बंद होने के कारण बहुत से लोगों की आजीविका पर असर पड़ा
है. प्रतिदिन काम करने, कमाई करने वालों के सामने निश्चित ही खाने का संकट आया है.
ऐसे में जबकि लोगों का बाजार निकलना बंद है, रोजगार के साधन बंद हैं, आय के स्त्रोत
बंद हैं तब ऐसे लोगों के सामने निश्चित ही राशन की, भोजन की समस्या उत्पन्न होनी
ही थी. ऐसे विषम समय में सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले आगे आये. ऐसे सभी लोग साधुवाद
के पात्र हैं जिन्होंने घर में बने रहने से बेहतर बाहर निकल कर लोगों की सेवा,
सहायता करना समझा. प्रतिदिन ऐसे लोगों की टोलियाँ शहर की सड़कों पर निकल कर लोगों
की सहायता करने में लगी हुई हैं. जरूरतमंदों को राशन उपलब्ध करवा रही हैं. राशन
उपलब्ध करवाने का काम प्रशासन द्वारा भी किया जा रहा है. इसके साथ-साथ समाजसेवी भी
तन्मयता से इस कार्य में लगे हैं.
महामारी
के इस दौर में एक तरफ समाजसेवियों द्वारा सहायता की जा रही है वह सराहनीय है मगर
इसके साथ-साथ यह एक तरह की समस्या भी उत्पन्न कर रही है. बहुत से लोग बिना किसी तालमेल
के, बिना किसी सामंजस्य के, बिना किसी निर्देशन के काम करने में लगे हुए हैं. इससे
सहायता के साथ-साथ यह हो रहा है कि एक-एक परिवार को कई-कई बार सहायता मिल जा रही
है और कुछ परिवार ऐसे हैं जहाँ सहायता सामग्री पहुँच ही नहीं पा रही है. इससे
सम्बंधित अब तमाम वीडियो और फोटो सामने आने लगी हैं, जिसमें स्पष्ट रूप से दिख रहा
है कि सहायता सामग्री, भोजन सामग्री नालियों में, कूड़े के ढेर पर पड़ी हुई है.
कहीं-कहीं सामग्री के बाजार में बेचे जाने की खबरें भी सामने आई हैं. इसके अलावा
ऐसे भी परिवार पकड़ में आये हैं जिनके पास पर्याप्त भोजन सामग्री, राशन होने के बाद
भी वे सहायता सामग्री लेते जा रहे हैं.
यहाँ
देखा जाये तो दोनों पक्ष दोषी नजर आते हैं. एक तरफ सभी को ऐसा लगने लगा है जैसे
यदि इस समय सहायता के लिए बाहर न निकले तो उनके समाजसेवी होने पर खतरा आ जायेगा.
ऐसा लग रहा है जैसे देश में पहली बार ऐसा संकट आया है जबकि गरीब मुश्किल में है.
ऐसा लग रहा है जैसे सभी बस सहायता करने के, भोजन सामग्री देने के ही पक्ष में हैं.
इसी तरह जो वर्ग, परिवार मुश्किल में है वह भी अपनी लालसा को, तृष्णा को रोक नहीं
पा रहा है. वह एक जगह से सामग्री पाने के बाद भी खुद को दूसरी जगह से राशन लेने के
लिए खड़ा कर देता है. ऐसे में सामग्री का आधिक्य होना ही है. जहाँ एक तरफ
समाजसेवियों का आपसी समन्वय वितरण व्यवस्था में झोल पैदा कर रहा है वहीं दूसरी तरफ
जरूरतमंद सामग्री की अधिकता देखकर भविष्य के लिए जमाखोरी की तरफ बढ़ रहा है. यह स्थिति किसी के लिए भी सुखद नहीं है. इससे
सामग्री बर्बाद हो रही है, लोगों के पास आवश्यकता से अधिक सामग्री पहुँच रही है, सभी
जरूरतमंदों के पास सामग्री यथोचित रूप में नहीं पहुँच पा रही है.
ऐसे
में भले कह दिया जाये कि यहाँ प्रशसन को ध्यान रखना चाहिए था मगर सोचिये कि
प्रशासन कहाँ-कहाँ ध्यान दे? क्या एक शहर के सभी सामाजिक सेवियों की जिम्मेवारी
नहीं बनती थी कि वे आपस में समन्वय बनाकर राहत सामग्री का वितरण करते? क्या यह भी
उचित कदम नहीं होता कि प्रशासन की मदद करने के लिए सभी लोग एक जगह पर सारी सामग्री
का एकत्रण करके उसे सूचीबद्ध करके वितरण करते? क्या ऐसा गलत होता कि जिस व्यक्ति,
परिवार के पास एक बार सामग्री पहुँच जाती, उसके पास दोबारा न पहुँचे ऐसी कोई
व्यवस्था कर ली जाती, ऐसा चाहे आधार कार्ड के द्वारा होता या राशन कार्ड के
द्वारा? फ़िलहाल तो अभी समाजसेवियों की भीड़ सड़कों पर है और बहुत सी राहत सामग्री
नालियों, कूड़े के ढेरों पर मिल रही है. अभी भी संभलने की आवश्यकता है.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
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