वर्तमान सन्दर्भों में देश की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाये रखना अत्यंत
महत्त्वपूर्ण है. वैश्विक स्तर पर व्यापक उथल-पुथल मची हुई है. ऐसे में भले ही
चारों तरफ से शांति,
अहिंसा, भाईचारे की बातें सुनाई देती हों मगर इसके सापेक्ष
युद्ध की आवाजें, बमों के धमाके,
मिसाइलों के हमले भी सुनाई पड़ते हैं. विज्ञान, तकनीकी विकास
के साथ-साथ तमाम देशों ने अपनी सैन्य क्षमता को भी विकसित किया है, समय के साथ मजबूत किया है. हमारा देश भी लगातार अपनी सैन्य क्षमता को
मजबूत करता जा रहा है, अपने हथियारों को उन्नत बना रहा है. ऐसा
करने के पीछे की मानसिकता युद्ध करना नहीं बल्कि दक्षिण एशिया के साथ-साथ विश्व
पटल पर खुद को सक्षम सिद्ध करना है.
विगत वर्षों में हमारे देश ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में अनेक युद्धों के
साथ-साथ युद्ध जैसी अनेक स्थितियों का सामना किया है. इसके अलावा अपने पड़ोसी देशों
की विस्तारवाद की नीति,
वहाँ की अराजक स्थिति के चलते भी सैन्य क्षमता, हथियारों का
सशक्त एवं उन्नत किया जाना हमारे लिए एक तरह की मजबूरी भी है. युद्ध के वर्तमान
परिदृश्य में अब आमने-सामने की सैनिकों की लड़ाई से ज्यादा प्रचलन ड्रोन का है, मिसाइल का है. इसका जीता-जागता उदाहरण ऑपरेशन सिन्दूर के समय देखने को
मिला. हमारी सुपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस की भूमिका और उसकी सटीक क्षमता को सम्पूर्ण
विश्व ने इस दौरान देखा. ब्रह्मोस मिसाइल ने पाकिस्तान के एयरबेस, सैन्य ठिकानों और आतंकी अड्डों को सटीक निशाना
बनाकर तबाह करने में अहम भूमिका निभाई. यह भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमता और आत्मनिर्भरता
का प्रतीक बन गया, जिसने दुनिया
को भारत की सैन्य ताकत का प्रदर्शन किया.
ब्रह्मोस की चर्चा के बाद अब ध्वनि मिसाइल चर्चा में है. रक्षा अनुसन्धान एवं
विकास संगठन (डीआरडीओ) ने हाइपरसोनिक श्रेणी की मिसाइल टेक्नोलोजी पर कार्य करते
हुए ध्वनि मिसाइल को तैयार कर लिया है. ध्वनि के परीक्षण पश्चात् हमारा देश विश्व की
उन सैन्य शक्तियों में सम्मिलित हो जायेगा जो हाइपरसोनिक तकनीक से सुसज्जित हैं. इस
मिसाइल की सबसे बड़ी विशेषता इसकी रफ़्तार है. सुपरसोनिक मिसाइलों की तुलना में यह
मिसाइल अधिक तेजी से उड़ान भरने में सक्षम है. ऐसा अनुमान है कि ध्वनि हाइपरसोनिक
मिसाइल मैक 5 या 6 से अधिक गति से उड़ान भर सकेगी, जो लगभग 7400 किमी प्रति घंटा के बराबर है. इस
मिसाइल की एक और विशेषता इसका हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (एचजीवी) होना है जो बैलिस्टिक बूस्टर से
ऊँचाई पर पहुँच कर हवा में ग्लाइड करती है. हवा में ग्लाइड करते हुए लक्ष्य की ओर बढ़ने
के कारण यह राडार और मिसाइल रक्षा प्रणालियों से लगभग अदृश्य रहती है. हाइपरसोनिक मिसाइलें
अपनी गति और उड़ान पथ में गतिशीलता के कारण पारम्परिक मिसाइलों की तुलना में अधिक प्रभावकारी
होती हैं. यह कदम केवल तकनीकी सफलता ही नहीं है बल्कि देश की बदलती हुई सशक्त रणनीतिक
स्थिति का परिचायक भी है. अनुमान है कि इस माह के अंत तक ध्वनि हाइपरसोनिक मिसाइल
का परीक्षण कर लिया जायेगा. यदि पूर्वनिर्धारित ढंग से कार्ययोजना सफल रही तो वर्ष 2030 तक यह मिसाइल
भारतीय सेनाओं का हिस्सा बन जाएगी.
डीआरडीओ के हाइपरसोनिक डेमांसट्रेटर व्हीकल प्रोग्राम पर आधारित ध्वनि मिसाइल
की क्षमता के बारे में रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी रफ़्तार और हवा में
ग्लाइड करने के कारण दुनिया के बेहतर से बेहतर वायु रक्षा प्रणालियों द्वारा इसे
रोक पाना सम्भव नहीं होगा. अभी तक चीन की डीएफ-26 हाइपरसोनिक मिसाइल को विश्व की
अत्याधुनिक मिसाइलों में गिना जाता है मगर ध्वनि मिसाइल इसके मुकाबले कहीं ज्यादा
उन्नत है. डीएफ-26 को जहाँ स्थिर मार्ग और सीमित फुर्ती के लिए जाना जाता है वहीं
ध्वनि मिसाइल को जमीन,
हवा और समुद्र से प्रक्षेपित किया जा सकता है साथ ही यह उड़ान के दौरान दिशा बदलने
में सक्षम है. डीआरडीओ ने मिसाइल के एरोडायनमिक्स, थर्मल
मैनेजमेंट, गाइडेंस सिस्टम, स्क्रैमजेट
इंजन आदि को लेकर लगातार सफल परीक्षण किये हैं, जिससे ध्वनि
मिसाइल के तकनीकी रूप से सफल होने की सम्भावना बहुत अधिक है. इस परीक्षण के सफल
होने के बाद भारत रूस, अमेरिका और चीन के साथ उन देशों की
श्रेणी में शामिल हो जायेगा जिनके पास हाइपरसोनिक मिसाइल हैं.
हाइपरसोनिक मिसाइल ध्वनि की रेंज 6,000 से 10,000 किमी तक होगी,
जो अग्नि, ब्रह्मोस से
कहीं अधिक है. यह दक्षिण एशिया के सामरिक संतुलन को पूरी तरह बदल देगी. हिन्द महासागर
क्षेत्र में बढ़ते तनाव के चलते भी ध्वनि भारत की रणनीतिक भूमिका को निर्णायक स्तर
पर प्रभावित करेगी. ब्रह्मोस के बाद अब ध्वनि का आना इस कारण और भी महत्त्वपूर्ण
है क्योंकि देश के पास सामरिक महत्त्व वाली बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइल प्रणालियाँ
पहले से ही हैं. देश के एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम के द्वारा लगातार
विकसित होती मिसाइल प्रणालियों ने देश को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन
स्थापित करने योग्य तो बनाया ही है साथ ही सामरिक स्थिरता बनाये रखने के कारण
महाशक्ति के रूप में भी पहचान बनाने में सहायता प्रदान की है. पृथ्वी, आकाश, नाग, अग्नि, त्रिशूल, ब्रह्मोस आदि अनेक मिसाइलों के द्वारा
भारत ने अपनी भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना किया वहीं सम्भावित खतरों का मुकाबला
करने के लिए स्वयं को सक्षम बनाया. इन मिसाइलों के द्वारा भारत का उद्देश्य किसी
दूसरे देश पर आक्रमण करना नहीं बल्कि किसी भी तरह की युद्ध अथवा संघर्ष की स्थिति
में अपने आपको आक्रामक और रक्षात्मक रूप से मजबूत बनाना रहा है. ध्वनि मिसाइल देश की
रक्षा प्रौद्योगिकी में एक महत्वपूर्ण कदम है. इसके आने से न केवल भारतीय सेना की शक्ति
में वृद्धि होगी, बल्कि
यह देश की रक्षा नीति और सामरिक स्थिति को भी मजबूत करेगी.

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