मृत्यु अटल सत्य
है, जो सम्बंधित व्यक्ति
के परिजनों को दुःख-आँसू ही देती है लेकिन अहमदाबाद में 12 जून 2025 को हुई हवाई
जहाज दुर्घटना दुखद तो है ही, झकझोरने वाली भी है. इस
दुर्घटना से सम्बंधित चित्र, वीडियो,
दिवंगत हो गए लोगों के परिजनों के आँसू देखकर मन विचलित है. इनको देखकर
जीवन-मृत्यु को संचालित करने वाली शक्ति से इतनी ही प्रार्थना है कि इस दुर्घटना
जैसी मृत्यु किसी के जीवन में न लिखे. कारण यह नहीं कि यह दुर्घटना भयावह थी बल्कि
इसलिए क्योंकि इस दुर्घटना में हमेशा को चले जाने वाला व्यक्ति वास्तविक में हमेशा
को ही चला गया.
किसी भी व्यक्ति
की मृत्यु होने पर वह व्यक्ति सदा-सदा को चला जाता है, उसे फिर कभी वापस नहीं आना होता है.
इस दुर्घटना में भी मृतकों को कभी वापस नहीं आना है मगर उनके परिजनों के हिस्से
में भी न भुलाया जाने वाला दर्द सदा-सदा को आ गया है. उस पल की कल्पना करके ही
आँखें नम हो जा रहीं जबकि हँसकर परिवार वालों ने अपनों को विदा किया होगा. एक पल
को भी किसी को आभास भी नहीं हुआ होगा कि वे उनको अंतिम विदाई दे रहे हैं.
हँसते-मुस्कुराते विदा करते लोगों से फिर मिल पाना सम्भव न होगा, उनको कुछ पलों बाद पहचान पाना भी सम्भव न होगा.
सामान्य मृत्यु की
स्थिति में परिजन साथ होते हैं. आँखों में दुःख होने के साथ-साथ एक संतोष का भाव
होता है. अंतिम संस्कार को पावन कृत्य के रूप में स्वीकार्य मानने के पीछे संभवतः
यही कारण रहा होगा कि परिजन अपने जाने वाले सम्बंधित व्यक्ति को संतोषी भाव से
मुक्त करें, उसे अनंत
यात्रा के लिए प्रस्थान करने दें. इस हवाई जहाज दुर्घटना में किसी को भी एक पल के
लिए झूठे भी ख्याल नहीं आया होगा कि ये उसकी अंतिम यात्रा है. किसी के परिवार
वालों ने भी नहीं सोचा होगा कि वे अपने प्रिय को अंतिम यात्रा के लिए हँसते हुए
विदा कर रहे हैं. आँखों में कितने सपने होंगे. दिल में कितनी खुशियाँ होंगी.
भविष्य के लिए बहुत सारी आशाएँ सजा रखी होंगी. सबकुछ एक झटके में स्वाहा हो गया.
परिवार वाले दूर
जाते परिजन का हाथ थाम कर उससे कुछ कह न सके. हमेशा के लिए सबसे दूर जाता व्यक्ति
आँखों में संतोष लेकर नहीं जा सका. पता नहीं उस चले गए व्यक्ति की अपने ही किसी
परिजन से लम्बे समय से मुलाकात न हुई होगी. न जाने कितने परिजनों, मित्रों,
सहयोगियों से अगली यात्रा में आकर मिलने का वादा किया होगा. न जाने कितने परिजनों
ने अगली बार अपने घर आने का न्यौता दिया होगा. न जाने क्या-क्या, बहुत कुछ आपस में तय किया गया होगा, निर्धारित किया
गया होगा मगर नियति को कुछ और ही निर्धारित करना था. उसने सब एक झटके में निर्धारित
करके सबकी आँखों के सपने छीन लिए, परिवार की खुशियाँ मिटा
दीं, भविष्य की आशाओं पर पानी फेर दिया.
जाने वाला तो चला
ही गया, शेष रह गया
परिजनों के हिस्से में आया दुःख, आँसू,
खाली हाथ, अफ़सोस और ज़िन्दगी भर के लिए असहनीय कष्ट.
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