29 मई 2025

चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का उत्साह??

22 अप्रैल 2025 को प्रकाशित अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया की सबसे बड़ी चौथी अर्थव्यवस्था बन गया है. भारत ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी इस बड़ी छलांग को लगाते हुए जापान को पीछे छोड़ दिया है. आईएमएफ की रिपोर्ट के बाद इसकी पुष्टि करते हुए नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने बताया कि देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वर्तमान में चार ट्रिलियन डॉलर से अधिक का हो गया है. इसके चलते भारतीय अर्थव्यवस्था अब विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो गई ही. आईएमएफ की रिपोर्ट की पुष्टि करने के साथ-साथ उन्होंने बताया कि यदि देश की नीतियाँ ऐसे ही काम करती रहीं तो आने वाले कुछ वर्षों में हमारा देश जर्मनी को पीछे छोड़कर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है.

 



जीडीपी के आधार पर वर्ष 2023 के आँकड़ों में विश्व की प्रथम दस अर्थव्यवस्थाओं में देश की अर्थव्यवस्था पाँचवें स्थान पर थी. तब हमारे देश की अर्थव्यवस्था 3.56 ट्रिलियन डॉलर थी. तत्कालीन आँकड़ों के अनुसार भारत से आगे विश्व अर्थव्यवस्थाओं में चार देश अमेरिका (27.72 ट्रिलियन डॉलर), चीन (17.79 ट्रिलियन डॉलर), जर्मनी (4.52 ट्रिलियन डॉलर) और जापान (4.20 ट्रिलियन डॉलर) ही थे. इस वर्ष जारी की गई रिपोर्ट में आईएमएफ का कहना यह भी है कि वर्ष 2025 में भारत की विकास दर 6.2 प्रतिशत और वर्ष 2026 में 6.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक है. इन आँकड़ों का आईएमएफ की तरफ से जारी होने के कारण भी देश के आर्थिक क्षेत्र में तथा सत्ता पक्ष में उत्साह दिखाई दे रहा है.

 

वैश्विक स्तर पर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का प्रभाव न केवल देश की आंतरिक स्थिति पर बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी दिखाई देगा. ऐसी स्थिति के चलते अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनेक मंचों जैसे जी-20, विश्व बैंक, आईएमएफ आदि में भारतीय छवि का सकारात्मक स्वरूप नजर आएगा. इसके चलते विदेशी निवेश बढ़ने की भी सम्भावना है. विश्व स्तर की बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ वैसे भी भारतीय बाजार में अपने उत्पादों के लिए ग्राहकों को लगातार तलाशती रही हैं. अब उनको भारत में एक आकर्षक बाजार नजर आ रहा होगा. देखा जाये तो भारत दक्षिण एशिया में लम्बे समय से नेतृत्वकर्ता की भूमिका में रहा है और विगत कुछ वर्षों में उसके क्षेत्र और विश्वास में भी वृद्धि हुई है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनेकानेक मंचों पर, महाशक्ति समझे जाने वाले देशों में भारत की सकारात्मक एवं सशक्त छवि बनी है. देश की वर्तमान आर्थिक उपलब्धि के बाद उसके आर्थिक नेतृत्वकर्ता के रूप में भी आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त होता दिखता है. भारतीय अर्थव्यवस्था के चौथे स्थान पर आने के अपने-अपने सन्दर्भ तलाशे जा रहे हैं. इनको तलाशा भी जाना चाहिए, आखिर आम जनमानस को भी इसके सन्दर्भों से परिचित होने की आवश्यकता है. एक तरफ आर्थिक क्षेत्र में, सत्ता के गलियारों में उत्साह दिख रहा है, दूसरी तरफ आम नागरिक अभी भी शिक्षा, स्वास्थ्य, मँहगाई, बेरोजगारी, गरीबी आदि से जूझ रहा है.

 

देश के चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाने के बाद भी क्या भारतीय समाज की, सामान्य जन-जीवन की, भारतीय अर्थव्यवस्था की वास्तविकता से मुँह मोड़ा जा सकता है? अर्थव्यवस्था सम्बन्धी आँकड़ों को सामने लाने का कार्य मुख्य रूप से जीडीपी को आधार बनाकर किया जाता है. जीवन-शैली और आर्थिकी के सन्दर्भ में जीडीपी और जन-जीवन दो अलग-अलग स्थितियाँ हैं, दोनों के अलग-अलग स्वरूप हैं. जीडीपी से देश की अर्थव्यवस्था का आकार तो मापा जा सकता है किन्तु उसके द्वारा सामान्य जनजीवन के बारे में, आय और संपत्ति के वितरण के बारे में अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. इसे इस तरह समझा जा सकता है कि चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाने के बाद भी प्रति व्यक्ति आय के सन्दर्भ में देश वैश्विक स्तर पर 144वें स्थान पर आता है. यह विडम्बनापूर्ण ही है कि अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में भारत से आगे मात्र तीन देश हैं लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में 143 देश हमसे आगे हैं. यदि जापान के सन्दर्भ में ही आँकड़ों को देखें तो भारत में प्रति व्यक्ति आय तीन हजार डॉलर से कम है जबकि जापान की प्रति व्यक्ति आय 34 हजार डॉलर है. जीडीपी के सन्दर्भ में हम भले ही जापान से आगे निकल आये हों किन्तु प्रति व्यक्ति आय, जीवन प्रत्याशा, सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा, रोजगार, तकनीक आदि जैसे क्षेत्रों में जापान हमसे बहुत आगे है.

 

किसी भी देश के विकास में शिक्षा की गुणवता, नागरिकों का स्वास्थ्य, उनकी जीवन प्रत्याशा, जीवन-शैली, प्रति व्यक्ति आय आदि का बहुत बड़ा योगदान होता है. इनका सकारात्मक रूप और इसका स्तर किसी भी देश के सामाजिक जीवन में नवाचार को दर्शाता है. अपने देश की साक्षरता दर भले ही 75 प्रतिशत से अधिक की है लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल विकास में कमी बनी हुई है. ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति अत्यंत जटिल है. इसी तरह स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी सुखद नहीं कही जा सकती है. आय और सम्पत्ति के वितरण में भी व्यापक असमानता दिखाई देती है. देश के संसाधनों की बहुलता मुट्ठी भर लोगों के पास है और अधिसंख्यक नागरिकों के पास अत्यल्प संसाधन हैं. ऐसे में आँकड़ों के सन्दर्भ में, जीडीपी के आधार पर, वैश्विक स्थिति में वृद्धि होने को लेकर भले ही उत्साह दिखा लिया जाये मगर सामाजिक स्थिति के सन्दर्भ में, आम जनमानस के आधार पर आईएमएफ की इस रिपोर्ट पर अत्यधिक उत्साहित होने की, गर्वोन्नत होने की आवश्यकता नहीं है.

 

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