वैश्विक कूटनीतिक विमर्श
का एक बेहद महत्वपूर्ण मंच बन चुके रायसीना डायलॉग में भारत के विदेश मंत्री ने
खुलकर क्वाड की भूमिका पर चर्चा करते हुए पड़ोसी देश चीन की भारत-विरोधी कूटनीति पर
निशाना साधा. क्वाड एक चतुर्भुज समूह है, जो चार देशों भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया का सामूहिक संगठन है. विदेश मंत्री जयशंकर ने क्वाड के
अस्तित्व पर स्पष्ट रूप से कहा कि इसकी जरूरत इसलिए पड़ी ताकि कोई दूसरा हमारी पसंद
पर वीटो ना लगा सके. उन्होंने यह भी संदेश दिया कि आने वाले दिनों में यह संगठन और
विस्ताार करेगा, और अधिक मजबूत होगा. क्वाड का गठन वर्ष 2017 में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन
की लगातार बढ़ती आक्रामक गतिविधियों को देखते हुए भारत, अमेरिका,
जापान और ऑस्ट्रेलिया के विदेश सचिवों की बैठक में किया गया था. क्वाड को बनाये
जाने हेतु जापान ने पहल की थी. वर्ष 2007 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो
आबे ने इस हेतु कदम बढ़ाया था मगर तब ऑस्ट्रेलिया ने इस बारे में किसी तरह की रुचि
न दिखाते हुए अपना समर्थन नहीं दिया था. परिणामस्वरूप चार देशों का यह समूह
निर्मित नहीं हो सका था. कालांतर में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती गतिविधियों
को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया ने अपने विचार को बदलते हुए क्वाड निर्माण के प्रति अपना
समर्थन दिया. इस तरह से वर्ष 2017 में क्वाड अस्तित्व में आ गया.
देखा जाये तो
हिन्द-प्रशांत क्षेत्र विगत लगभग एक दशक की समयावधि में विकसित होने वाली एक अवधारणा
है. विगत कुछ समय से सम्पूर्ण विश्व ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के बारे में, उसकी
महत्ता, उसके माध्यम से
संपन्न होने वाले सामुद्रिक व्यापार आदि के बारे में जानना-समझना शुरू किया था.
समय के साथ-साथ इस क्षेत्र की लोकप्रियता और महत्ता में वृद्धि प्रमुख रूप से होती
रही है. यह क्षेत्र बहुत लम्बे समय से विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्रों
में गिना जाता रहा है. इसके साथ-साथ इस क्षेत्र के माध्यम से एकसूत्र में जुड़े चार
महाद्वीपों- एशिया, अफ्रीका,
ऑस्ट्रेलिया व अमेरिका से भी इसका
महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है. चार महाद्वीपों के जुड़े होने के कारण से इस क्षेत्र
में आर्थिक रूप से सक्रियता भी अन्य क्षेत्रों से अधिक बनी रहती है. इस क्षेत्र की
गतिशीलता को मात्र इसी से समझा जा सकता है कि सम्पूर्ण विश्व की साठ प्रतिशत जनसंख्या इसी क्षेत्र
में है. इस बहुल जनसंख्या वाले क्षेत्र के द्वारा वैश्विक आर्थिक उत्पादन का दो-तिहाई
भाग इस क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण वैश्विक आर्थिक केन्द्र के रूप में स्थापित करता है.
वैश्विक दृष्टि से अनेक महत्त्वपूर्ण एवं बड़ी आपूर्ति शृंखलाओं के कारण से इस
क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बहुत बड़े स्रोत के रूप में रहता है.
अपतटीय हाइड्रोकार्बन,
मीथेन हाइड्रेट्स, समुद्री खनिज जैसे विशाल समुद्री भंडार से
आच्छादित यह क्षेत्र सदैव से बड़ी-बड़ी आर्थिक महाशक्तियों के आकर्षण का केन्द्र रहा
है. हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भारत, अमेरिका, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसी बड़ी-बड़ी आर्थिक शक्तियाँ अपने
सामुद्रिक व्यापार का सञ्चालन करती हैं. इसमें भी सम्पूर्ण विश्व चीन की
विस्तारवादी मानसिकता से परिचित है. इस क्षेत्र के द्वारा व्यापार करने वाली
आर्थिक शक्तियाँ और अनेक सहयोगी देश इस क्षेत्र में चीन के अनावश्यक हस्तक्षेप को
रोकने, उसकी विस्तारवादी
नीति का मुकाबला करने के लिए भारत को मजबूत रूप में देखना चाहते हैं. इसके अलावा
उनके द्वारा एक सहयोगी संगठन की आवश्यकता भी लम्बे समय से महसूस की जा रही थी, जो चीन की आक्रामक गतिविधियों पर नियंत्रण लगा सके. क्वाड अपने मूल
स्वभाव सुरक्षा संवाद समूह के साथ-साथ हिन्द-प्रशांत क्षेत्र की अनेक चुनौतियों को
दूर करने के लिए भी लगातार सक्रिय बना हुआ है. इन चुनौतियों में मुख्य रूप से समुद्री
सुरक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर,
कनेक्टिविटी, साइबर सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई शामिल
है.
इस क्षेत्र में सुरक्षा
संरचना के लिये भी भारत के विशेष साझेदार देश- अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और इंडोनेशिया आपस में एकदूसरे को सहयोग देते
हुए चीन की अनावश्यक उपस्थिति को इस क्षेत्र में रोकना चाहते हैं. यद्यपि भारत की
तरफ से सदैव यही सन्देश दिया गया है कि क्वाड हिन्द प्रशांत क्षेत्र की अनेकानेक
समस्याओं को, चुनौतियों
को दूर करते हुए सभी के लिए सामुद्रिक व्यापार की सहजता,
सुरक्षा को महत्त्व दे रहा है तथापि चीन इसे अपने ऊपर लगाम लगाये जाने के रूप में
ही देखता है. चूँकि क्वाड में शामिल चारों देश- भारत,
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान लोकतांत्रिक
होने के कारण एकसमान प्रवृत्ति और आधारभूमि वाले हैं. सुरक्षा सम्बन्धी मामलों पर
इनकी लगभग एकसमान नीति भी है, जो सुरक्षा के साझा हितों का समर्थन करते हैं. इसके
साथ-साथ इनका समर्थन निर्बाध समुद्री व्यापार और सुरक्षा के सन्दर्भ में भी रहता
है. इसी कारण से इनका उद्देश्य हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को मुक्त, स्पष्ट और समृद्ध
रूप से विकसित, सुनिश्चित करना है. भारत भी इस क्षेत्र में शांति
और सुरक्षा तंत्र के लिये सहयोग करना चाहता है. समान समृद्धि और सुरक्षा के लिये
इन देशों को वार्ता के माध्यम से क्षेत्र के लिये एक सामान्य नियम-आधारित व्यवस्था
विकसित करने की आवश्यकता है.
हिन्द-प्रशांत क्षेत्र
में स्थिति कई देशों के साथ चीन का सीमा विवाद चल रहा है. ऐसे में क्वाड को लेकर शंका
जता रहे देशों व विशेषज्ञों को विदेश मंत्री जयशंकर द्वारा दिये गये सन्देश कि क्वाड अब बना रहेगा, क्वाड
का और विस्तार होगा तथा क्वाड अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार है, का
दूरगामी प्रभाव पड़ेगा. वैसे भी वर्तमान दौर को देखते हुए साफ है कि वैश्विक स्तर पर
और ज्यादा सहयोग की जरूरत है, सहयोग को ज्यादा लोकतांत्रिक बनाने की आवश्यकता है. निश्चित
ही भारत के स्पष्ट रुख से निकट भविष्य में ऐसा संभव भी होगा.
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