अनुच्छेद 370 को हटाने के सम्बन्ध में पाँच अगस्त 2019 की तरह ही 11 दिसम्बर
2023 का दिन ऐतिहासिक माना जायेगा. चार वर्ष पूर्व पाँच अगस्त को केन्द्र सरकार
द्वारा अनुच्छेद 370 और 35-ए को हटाने का साहसिक निर्णय लिया गया था. देश में एक
विभाजक रेखा खींचने वाले अनुच्छेद के हटाये जाने के बाद भी उसकी बहाली को लेकर
दिवास्वप्न देख रहे तमाम नेताओं द्वारा जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को लगातार
बरगलाया जा रहा था. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने निर्णय के द्वारा ऐसी
विभाजनकारी मानसिकता रखने वालों को आइना दिखाया गया है. इस निर्णय से सम्पूर्ण
घाटी में और वहाँ के लोगों को झूठी तसल्ली देने वाले नेताओं तक स्पष्ट सन्देश
पहुँच गया है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था, जिसे हटाने का निर्णय विधिसम्मत था.
पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस मामले पर सुनवाई की. सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र
सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. इसकी
कोई आंतरिक सम्प्रभुता नहीं है.
सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से देश की अखंडता, सम्प्रभुता को वास्तविक आयाम मिला
है. इससे विरोधियों द्वारा समाज में फैलाया जा रहा यह दुष्प्रचार गलत साबित हुआ कि
अनुच्छेद 370 हटाये जाने का निर्णय विघटनकारी है. इस निर्णय ने विगत सत्तर वर्षों
के एक ऐसे काँटे को सदा के लिए देश की देह से अलग कर दिया है जो सम्पूर्ण देश के
लिए नासूर बना हुआ था. देश की आज़ादी के समय काल-परिस्थितियों के वशीभूत कुछ इस तरह
का घटनाक्रम सामने आया कि राष्ट्रीय हितों को दरकिनार करके तुष्टिकरण को
प्राथमिकता दी गई. तत्कालीन परिस्थितियों के हाथों में यदि मजबूरीवश अनुच्छेद 370
को लागू करना भी पड़ा था तो भी यदि उस अस्थायी प्रावधान को समय रहते समाप्त कर दिया
जाता तो अपने स्वर्गिक सौन्दर्य के लिए विख्यात जम्म-कश्मीर को नारकीय यातनाओं को
न सहना पड़ता.
अनुच्छेद 370 के द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार प्रदान किये गए थे. यह भारतीय
संविधान का एक अस्थायी प्रावधान है. इस अस्थायी प्रावधान के द्वारा ऐसी व्यवस्था
की गई थी कि जम्मू-कश्मीर में केन्द्र सरकार को केवल रक्षा, विदेश एवं संचार के क्षेत्र में कानून बनाने का अधिकार
होगा. इसके अलावा किसी अन्य क्षेत्र, किसी अन्य विषय के बारे में कानून बनाने के
बाद वह जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण देश पर लागू होता था. उस कानून को जम्मू–कश्मीर
में लागू करने के लिए केन्द्र सरकार को जम्मू-कश्मीर राज्य सरकार से अनुमोदन लेना पड़ता
था. इसी तरह यहाँ के निवासियों को दोहरी नागरिकता (भारतीय एवं कश्मीरी) भी प्राप्त
थी. यहाँ की महिला से विवाह करने वाला पाकिस्तानी नागरिक यदि कश्मीर में आकर रहने
लगता है तो उसको स्वतः ही भारत की नागरिकता मिल जाती है. जम्मू-कश्मीर का अपना
राष्ट्रीय ध्वज होता था और तो और यहाँ का मुख्यमंत्री वही नागरिक बन सकता था जो
यहाँ का मूल निवासी होता था. ये स्थितियाँ एक देश में ही दो देश होने जैसी स्थिति
का आभास कराती रही हैं. अनुच्छेद 370 की तरह 35ए के द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष
राज्य का दर्जा प्राप्त था. इसके द्वारा यहाँ के नागरिकों को कुछ विशेष अधिकार
प्रदान किये गए थे. इसे 1954 में पारित किया गया था.
जम्मू-कश्मीर में अलग संविधान होने के कारण अभी तक एक देश में दो संविधान चलते
आये हैं. अनुच्छेद 370 और 35ए के समाप्त किये जाने के बाद जम्मू-कश्मीर भी भारत का
अभिन्न अंग बना. इसके बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग राज्यों के रूप में
मान्यता प्रदान की गई. निश्चित ही इससे यहाँ निवेश के रास्ते खुले और यहाँ के
युवकों को भी रोजगार के अवसर उपलब्ध हुए. केन्द्र सरकार द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी
के अनुसार अभी तक जम्मू-कश्मीर के बाहर के 34 लोगों ने केन्द्रशासित प्रदेश में सम्पत्ति
खरीदी है. वहीं जम्मू-कश्मीर में सऊदी अरब की तीन कम्पनियाँ भारी निवेश कर रही हैं. इसके
अलावा वहाँ 890 केन्द्रीय कानूनों को लागू किया गया है. इससे वहाँ की कानून व्यवस्था
और कई नियम देश के अन्य राज्यों की तरह हो गए हैं. केन्द्र सरकार द्वारा
जम्मू-कश्मीर को केन्द्रशासित राज्य का दर्जा दिए जाने के बाद यहाँ पर विकास के
लिए अनेक योजनाओं को लागू किया. सरकार की ओर से बजट आवंटन में यहाँ का विशेष ध्यान
रखा गया है. लगभग 28400 करोड़ रुपये औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए बजट
में उपलब्ध कराये गये. इसके साथ ही 2020-21 में उद्योगों के लिए 29030 हजार कैनाल लैंड
बैंक बनाए गए हैं. अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद सरकार के द्वारा जम्मू-कश्मीर में
ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट भी करवाई गई थी. इसमें 13,732 करोड़ रुपये के एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे.
ये स्थितियाँ निश्चित ही अब और तेजी से विकास की राह पकड़ेंगी जबकि सर्वोच्च
न्यायालय ने केन्द्र सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए वर्ष 2024 में जम्मू-कश्मीर
में चुनाव करवाने और जल्द से जल्द इसे स्वतंत्र राज्य घोषित करने का निर्देश दिया
है. निश्चित ही सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने एक भारत, श्रेष्ठ भारत की अवधारणा
को मजबूत ही किया है. देखा जाए तो सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय ने एक पुराने और
जटिल विवाद को सुलझाने का मार्ग प्रशस्त किया है. अब जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को समग्र
देश के साथ आगे बढ़ने को एक मजबूत रास्ता मिला है. उम्मीद यही की जा सकती है कि अब
पूर्वाग्रह, विवाद को
त्यागते हुए सभी पक्ष राज्य को शांतिपरक, सर्वश्रेष्ठ बनाने
की दिशा में अपना पूरा योगदान देंगे.
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