रूस-यूक्रेन
जंग के बीच इजरायल-हमास युद्ध ने संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका और उसकी
प्रासंगिकता पर सवाल उठाये हैं. ऐसा माना जा रहा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की
नाकामी की वजह से यूरोप और मध्य पूर्व के देशों में हिंसात्मक माहौल बना हुआ है. बौद्धिक
वर्ग के साथ-साथ सोशल मीडिया पर लोग अपने विचारों द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ को
नाकाम और अनुपयोगी बता रहे हैं. प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता दीका यासीन ने तो
संयुक्त राष्ट्र संघ को बंद करने की माँग तक कर डाली है. उनका कहना है कि जिस
संस्था ने इस दीर्घावधि में किसी विवाद को सुलझाया न हो उसे बने रहने का कोई
औचित्य समझ नहीं आता है. मानवाधिकार कार्यकर्ता का यह दावा प्रथम दृष्टया सही नजर
आता है. इजरायल-हमास
एकमात्र युद्ध नहीं है जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ रोक नहीं सका है बल्कि अनेक विवाद
ऐसे रहे जिनको संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा रोका नहीं जा सका है. इसमें इजरायल-हमास
संघर्ष के बीच चलता हुआ रूस और यूक्रेन का युद्ध है. लगभग दो वर्ष से चला आ रहा यह
युद्ध आज भी बेनतीजा है. यहाँ संयुक्त राष्ट्र संघ का कोई सशक्त एवं सकारात्मक
हस्तक्षेप देखने को नहीं मिला. इसके साथ-साथ वियतनाम
और अमेरिका का युद्ध, जो
संयुक्त राष्ट्र के गठन के दस वर्ष बाद ही शुरू हो गया था. लगभग दस वर्षों तक चले
इस युद्ध को भी संयुक्त राष्ट्र संघ रोकने में पूरी तरह विफल रहा था. सितम्बर 1980
को शुरू हुआ इराक
और ईरान के मध्य का युद्ध, जो लगभग आठ सालों तक चला; रवांडा का नरसंहार, जिसमें किसी
देश के आंतरिक युद्ध में लगभग आठ लाख लोग मारे गए थे, वहाँ भी संयुक्त राष्ट्र संघ पूरी तरह असफल
रहा था. हालाँकि इजरायल-हमास युद्ध के सन्दर्भ में संयुक्त
राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक बयान जारी करके इजरायल से विश्व कानून के
तहत ही कार्रवाई करने की अपील की है. उन्होंने कहा कि अभी जो स्थिति बनी हुई है, उससे गाजापट्टी के हालात और भी खराब होंगे किन्तु इसे संयुक्त राष्ट्र संघ
का कोई ठोस कदम नहीं कहा जा सकता है.
वर्तमान दौर में जिस
तरह से आपसी अहं बहुत ज्यादा बड़े होते जा रहे हैं, उसी की परिणीति है कि सम्पूर्ण
विश्व ने दो-दो विश्वयुद्धों को सहने के बाद भी युद्ध जैसी स्थितियों से अलग रखना
नहीं सीखा है. इसका दुष्परिणाम आज दो युद्धों और अनेक देशों के मध्य सीमा-विवाद के
रूप में दिख रहा है. संवाद और आपसी बातचीत के अभाव में संघर्षों का एक लम्बा
सिलसिला चल निकलता है. इसे सम्पूर्ण विश्व ने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान देखा था. विश्वयुद्ध तो समाप्त हो गया था लेकिन सम्पूर्ण
विश्व दो खेमों में बंट गया था. इनके बीच शीतयुद्ध जैसी स्थिति बनी हुई थी. भविष्य में विश्वयुद्ध जैसी कोई स्थिति न बने इसके लिए वैश्विक रूप
में एक संगठन की आवश्यकता महसूस की गई, जिसका उद्देश्य भविष्य में युद्धों को रोकना हो. परिणामस्वरूप
विश्वशांति और मानव कल्याण को ध्यान रखते हुए 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त
राष्ट्र संघ की स्थापना की गई. इसके चार्टर में संगठन का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय शांति और
सुरक्षा को बनाए रखना, मानवाधिकारों की रक्षा करना, मानवीय सहायता प्रदान करना,
सतत विकास को बढ़ावा देना और अंतरराष्ट्रीय कानूनों को बनाए रखना
शामिल किया गया.
अपनी स्थापना के 75 वर्ष से अधिक समय में संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानव
हितार्थ अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये मगर आज इसकी प्रासंगिकता पर सवाल खड़े हो
रहे हैं. इसका कारण बहुत सारे मुद्दों पर उसका अप्रासंगिक होना है. इन मुद्दों में
विशेष रूप से दो देशों में मध्य युद्ध जैसी स्थितियाँ, समुद्री सीमा विवाद, आतंकवाद, मानव तस्करी, साइबर
अपराध, जैविक हथियारों को बढ़ावा आदि हैं. इसके साथ-साथ
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा बहुत सारे देशों की विस्तारवादी नीतियों पर नियंत्रण न
लगा पाना भी उसकी विफलता माना जा रहा है. इस बिंदु पर आकर संयुक्त राष्ट्र संघ को
इसलिए भी विफल माना जा रहा है क्योंकि रूस का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का
स्थायी सदस्य होने के बाद भी वह अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते यूक्रेन से
युद्ध कर रहा है. रूस की तरह चीन भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी
सदस्य होने के बाद भी अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते दक्षिण एशिया, आसियान, मध्य एशिया आदि के भौगोलिक क्षेत्रों पर अपना दावा ठोंकता रहता है.
देखा जाये तो संयुक्त
राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की वीटो शक्ति पर नियंत्रण न कर पाना संयुक्त राष्ट्र संघ की
संरचनात्मक कमजोरियों में से एक है. इसी कमजोरी के कारण संयुक्त राष्ट्र महासभा का
महत्त्व कम हो जाता है. यही कारण है कि वर्तमान में 193 सदस्य देशों की संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा
पारित किये जाने वाले प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं हो पाते हैं. मानव जाति के कल्याण,
वैश्विक नीतियों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाले प्रस्तावों, फैसलों को
अंतिम माना जाना चाहिए मगर वास्तविकता में ऐसा नहीं हो पाता है. संयुक्त राष्ट्र
सुरक्षा परिषद् के सदस्य निजी लाभ के चलते वीटो शक्ति का उपयोग करते हैं, जिससे
संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य विफल हो जाता है. मानवता की सेवा के लिए संयुक्त
राष्ट्र संघ की एक अलग पहचान है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया को तीसरे
विश्व युद्ध की विभीषिका से बचाए रखना संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख उपलब्धि कही जा
सकती है. इसके बाद भी पिछले कुछ वर्षों में संयुक्त राष्ट्र संघ के घटते प्रभाव को
दुनिया ने देखा है. इसी कारण से लम्बे समय से संयुक्त राष्ट्र संघ के संरचनात्मक
ढाँचे में सुधार की आवश्यकता महसूस की जा रही है, समय-समय पर इसकी माँग भी उठ रही
है. समय के अनुसार संयुक्त राष्ट्र को अपनी पुरानी नीतियों में बदलाव और सुरक्षा
परिषद् में विस्तार की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है.
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