रूस-यूक्रेन युद्ध किसी
निर्णायक मोड़ पर पहुँचा नहीं था कि आतंकी संगठन हमास के विध्वंसकारी हमले के जवाब
में इजरायल की कार्यवाही से वहाँ भी युद्ध जैसी स्थिति बन गई. अमेरिका सहित नाटो
देशों द्वारा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन की मदद ने उसे मजबूती प्रदान की
हुई है. इस युद्ध के चलते विश्व स्तर पर जहाँ आर्थिक संकट छाया हुआ है वहीं परमाणु
हमले का डर भी सता रहा है. इसका कारण रूस द्वारा बेलारूस में परमाणु हथियारों की
तैनाती है. इस आशंका के बीच इजरायल-हमास के युद्धरुपी संघर्ष ने संकट बढ़ा दिया है.
इजरायल की जवाबी कार्यवाही के बाद दो धड़े स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे. एक पक्ष
खुलकर इजरायल के साथ है तो दूसरा पक्ष फिलिस्तीन के नाम पर हमास के साथ. इस युद्ध
में भी परमाणु हमले का भय बना हुआ है.
आशंकाओं के इस दौर में रूस के कदमों ने भय को और
बढ़ाया है. पिछले कुछ समय से उसकी गतिविधियाँ इशारा कर रही हैं कि उसके द्वारा
परमाणु शक्ति को प्रश्रय ही नहीं दिया जा रहा वरन उसमें वृद्धि भी की जा रही है.
ऐसा लगने का कारण यूक्रेन युद्ध के बीच रूस द्वारा परमाणु हमले का अभ्यास करना
है. इस अभ्यास में रूसी सेना ने यार्स अंतरमहाद्वीपीय परमाणु मिसाइल का परीक्षण
अपने देश के उत्तरी इलाके से किया. यह मिसाइल 150 किलोटन के दस परमाणु बम ले जा सकती है. इसकी
विशालता और विभीषिका का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हिरोशिमा परमाणु हमले
के दौरान अमेरिका ने मात्र पंद्रह किलोटन का परमाणु बम गिराया था लेकिन यार्स
मिसाइल के द्वारा परमाणु बमों को एक बार छोड़े जाने के बाद हिरोशिमा परमाणु हमले से
सौ गुना ज्यादा तबाही मच सकती है.
रूस के इस परमाणु अभ्यास की
हलचल अभी थमी भी नहीं थी कि उसके द्वारा परमाणुचलित पनडुब्बी इम्पीरेटर
अलेक्जेंडर-3 के द्वारा परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम बुलवा
बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण कर लिया गया. रूसी रक्षा मंत्रालय ने अपने बयान में
कहा कि पनडुब्बी से बैलिस्टिक मिसाइल दागना परीक्षण का अंतिम चरण है, जिसके बाद इसे नौसेना में शामिल करने का निर्णय लिया जाएगा. इस मिसाइल को रूस के उत्तरी तट के पास सागर में गहराई में छोड़ा किया गया.
इस दौरान इस मिसाइल के द्वारा हजारों किमी का सफर तय किया गया. बुलवा मिसाइल बारह मीटर
लंबी है, जिसकी मारक क्षमता लगभग 8000 किमी
है. यह मिसाइल अपने साथ छह परमाणु हथियार
ले जा सकती है. इसे रूसी नौसेना की बहुत बड़ी ताकत माना जा रहा है. इम्पीरेटर अलेक्जेंडर-3 परमाणु
पनडुब्बी में से एक है. यह एक बार में सोलह बुलवा मिसाइलों को और आधुनिक टॉरपीडो
को तैनात किया जा सकता है.
रूस-यूक्रेन युद्ध में लगातार परमाणु हमले की
आशंका व्यक्त की जाती रही है. अब जबकि रूस द्वारा परमाणु परीक्षण, परमाणु अभ्यास
एक ऐसे दौर में किया गया है जबकि वह व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि
(सीटीबीटी) से हट रहा है, तो परमाणु हमले की आशंका को बल मिलता है. अभी हाल ही में
रूस की संसद ने सीटीबीटी से बाहर निकलने के पक्ष में बिल पास किया है. इस संधि को
निष्क्रिय करने सम्बन्धी बिल संसद के ऊपरी सदन और निचले सदन में निर्विरोध पारित
हो गया. सीटीबीटी एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसे 1996 में लागू किया गया
था. इसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर किसी भी तरह के परमाणु हथियारों के परीक्षण पर
रोक लगाना है. रूस ने अपने आपको इससे बाहर रखने की वजह इस संधि का पूरी तरह से
लागू न होना बताया है. रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने इस सम्बन्ध में कहा कि सीटीबीटी के
समर्थन को रद्द करना अमेरिका के रुख को स्पष्ट करेगा, जिसने
संधि पर हस्ताक्षर तो किए हैं लेकिन अमेरिकी संसद ने इसका अनुमोदन नहीं किया है.
रूस पहले ही परमाणु हथियारों को बेलारूस में
तैनात कर चुका है. यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से ही वो परमाणु हथियारों के इस्तेमाल
की धमकी देता रहा है किन्तु यह तैनाती पहली ठोस कार्यवाही है. ये परमाणु हथियार
बेलारूस में यूक्रेन की सीमा के पास तैनात किए गए हैं. इसके अलावा ऐसे मिसाइल और
लड़ाकू विमान भी भेजे गए हैं जो 500 किलोमीटर की दूरी तक परमाणु हथियारों से हमला
कर सकते हैं. ऐसे में व्यापक चिंता ये है कि रूस की तरफ से यूक्रेन युद्ध की आड़
में नाटो सेनाओं को हतोत्साहित करने के लिए परमाणु हमला कर सकता है. भले ही इसके
लिए वह रणभूमि में इस्तेमाल किये जाने वाले छोटे सामरिक परमाणु हथियारों का उपयोग करे.
वैश्विक स्तर पर अनेक रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यूक्रेन की आड़ में रूस का
युद्ध नाटो सेनाओं के साथ चल रहा है. ऐसे में रूस की तरफ से ऐसा माहौल बनाया जा
सकता है कि नाटो सेनाएँ यूक्रेन से पीछे हट जाएँ. देखा जाये तो यह एक तरह की
परमाणु ब्लैकमेलिंग है.
रूस ‘स्टार्ट’ संधि में शामिल
नहीं हुआ है अर्थात अब वह परमाणु ठिकानों के निरीक्षण की अनुमति नहीं देगा. उत्तर
कोरिया, चीन की परमाणु नीति से भी वैश्विक स्तर पर चुनौती बढ़ी है. इन स्थितियों
में जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध का न रुकना, इजरायल-हमास युद्ध का तीव्र होना, रूस
द्वारा परमाणु हथियारों की तैनाती, उनका परीक्षण और तमाम संधियों से लगातार बाहर
होते जाना सुखद नहीं कहा जायेगा. रूस द्वारा परमाणु हमला करने की आशंका भले ही एक
आशंका रहे मगर वैश्विक स्तर पर सम्पूर्ण मानवता के लिए खतरा तो मंडरा ही रहा है. इसे
रोकने के लिए समवेत प्रयासों का होना अब अनिवार्य होता जा रहा है.
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