30 सितंबर 2023

मंजुल मयंक : एक ही दिन का आना-जाना

बुन्देलखण्ड सदैव से अपने रत्नों के लिए प्रसिद्ध रहा है. भले ही ये रत्न साहस, जौहर दिखाने वाले रहे हों या फिर कलम के रहे हों. ऐसे ही एक कलम के धनी रत्न मंजुल मयंक का आज, 30 सितम्बर को जन्मदिन पड़ता है. इसे संयोग ही कहा जायेगा कि इस अद्भुत गीतकार की पुण्यतिथि भी आज, 30 सितम्बर को पड़ती है.




एक से बढ़कर एक कर्णप्रिय, मधुर गीत रचने वाले मंजुल मयंक का जन्म 30 सितम्बर सन 1922 को हुआ था. उनका पूरा नाम गणेश प्रसाद खरे था, मंजुल मयंक उनका उपनाम था. कालांतर में वे इसी नाम से प्रसिद्ध हुए. उनके पिता का नाम श्री महावीर प्रसाद खरे और माता का नाम श्रीमती गोविन्द खरे था. मूलतः इलाहाबाद के रहने वाले महावीर प्रसाद जब नौकरी के लिए बुन्देलखण्ड के हमीरपुर में आये तो फिर यहीं के होकर रह गए. सन 1941 में जब मयंक जी अपनी नौकरी के सिलसिले में बाँदा पहुँचे तो यहाँ उन्हें बेढ़ब बनारसी, श्याम नारायण पाण्डेय, निराला और बच्चन आदि जैसे साहित्यकारों, कवियों को सुनने का अवसर मिला. यहीं पर उनके भीतर का कवि जागृत हुआ और उन्होंने अपनी पहली कविता सिंदूर बिन्दु की रचना की.


सन 1953 में मयंक जी बाँदा से वापस लौट आये और मौदहा आकर शिक्षा क्षेत्र से जुड़ गए. यहीं पर उनका पहला काव्य-संग्रह ‘रूपरागिनी’ प्रकाशित हुआ. तीन वर्ष तक यहाँ सेवा देने के पश्चात् वे सन 1956 में हमीरपुर लौट आये. ‘जनता ही अजन्ता है’ काव्य-संग्रह और ‘तन मन की भाँवरें’ उपन्यास उन्होंने यहीं प्रकाशित करवाए. 30 सितम्बर 2007 को मयंक जी अपने मधुर गीत, अपनी कलम की अमानत बुन्देलखण्ड की धरती पर छोड़कर सदैव के लिए दूर चले गए.


आज उनकी जन्मतिथि और पुण्यतिथि पर उनको सादर नमन  






 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें