14 जुलाई 2023 को दोपहर बाद प्रक्षेपित किया गया चंद्रयान-3 चंद्रमा की कक्षा में पहुँच चुका है. सब कुछ सही रहा तो चंद्रमा की सतह पर 23 अगस्त को इसकी सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी. इसके लिए इसकी गति को लगातार कम किया जायेगा. चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण चंद्रयान की वर्तमान गति, जो लगभग चालीस हजार किमी प्रति घंटा है, को कम करते हुए 3600 किमी प्रति घंटे पर लाया जाएगा. इसके लिए इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा चंद्रयान की गति की विपरीत दिशा में थ्रस्ट फायर किये जायेंगे. चंद्रयान-3 को चंद्रमा पर जिस स्थान पर लैंड कराये जाने की योजना है वह स्थान लगभग उसी तरह का है जैसा कि चंद्रयान-2 की लैंडिंग का था. यदि चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर उतरने में कामयाब रहा यह मिशन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला मिशन बन जाएगा.
इस
मिशन की विशेष बात यह है कि चंद्रयान-3 चंद्रमा की दक्षिणी सतह पर उतरेगा. चंद्रमा
का दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र वहाँ का दुर्गम क्षेत्र है, जहाँ के अनेक भागों में सूरज
की रोशनी बिल्कुल नहीं पहुँचती है. पूरी तरह से अँधेरे में रहने के कारण यहाँ का
तापमान दो सौ डिग्री सेल्सियस भी से नीचे चला जाता है. रोशनी का न होना और अत्यंत
निम्न तापमान के कारण इस क्षेत्र में उपकरणों के संचालन में कठिनाई होती है. इसके
अलावा यह क्षेत्र बड़े-बड़े गड्ढों वाला है, इस कारण भी यहाँ सॉफ्ट लैंडिंग एक
चुनौती होती है. अभी तक चंद्रमा पर उतरने वाले पिछले सभी अंतरिक्ष यान भूमध्यरेखीय
क्षेत्र में उतरे हैं. भूमध्य रेखा से कोई भी अंतरिक्ष यान सबसे दूर गया यान चीन
का चांग-ई-4 था जो 45 डिग्री अक्षांश
के पास उतरा था. चंद्रमा के भूमध्यरेखा क्षेत्र के पास
किसी भी यान का उतरना आसान और सुरक्षित है. यहाँ की सतह चिकनी है, ढलान न के बराबर हैं और यहाँ पर पहाड़ियाँ, गड्ढे भी नहीं हैं. इसके
साथ-साथ सूर्य की रौशनी भी पर्याप्त मात्रा में इस क्षेत्र में उपलब्ध रहती है.
भारतीय
वैज्ञानिकों द्वारा चंद्रयान-3 के पहले भी दो मिशन के द्वारा चंद्रमा के रहस्यों
को खोजने का प्रयास किया गया है. चंद्रयान कार्यक्रम की घोषणा वर्ष 2003 में 15 अगस्त को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने
की थी. यह भारत का पहला चंद्रमा मिशन बना. चंद्रयान-1 ने सॉफ्ट लैंडिंग न होने के
बाद भी 14 नवंबर 2008 को सफलतापूर्वक
चंद्रमा की सतह का स्पर्श किया. इसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह की खनिज संरचना,
ध्रुवीय क्षेत्र में बर्फ के पानी की उपलब्धता और चंद्रमा की सतह पर
हीलियम 3 और विकिरण प्रभावों का पता लगाना था. इसके बाद 22
जुलाई 2019 को चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान को स्वदेशी जीएसएलवी रॉकेट द्वारा सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया
गया था. जीएसएलवी की यह पहली परिचालन उड़ान थी. यह इसरो का पहला मिशन था जिसमें लैंडर
भी गया था. विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला था कि 7
सितंबर को चंद्रमा की सतह से उतरने के पूर्व लगभग दो किमी की दूरी
पर लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया. इसका आर्बिटर अभी भी चंद्रमा की कक्षा में
मौजूद है, इसलिए एक दृष्टि से चंद्रयान-2 को सफल भी कहा जा
सकता है.
पृथ्वी
से निर्मित होने और इसके सबसे निकट होने के कारण चंद्रमा के रहस्यों को समझने से पृथ्वी
और ब्रह्मांड की बेहतर समझ विकसित हो सकेगी. चंद्रयान-3 की सफलता से भारत को
दुनिया के सामने अपनी क्षमता दिखाने का मंच मिल जाएगा. रॉकेट लॉन्च, अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी, स्किल्ड मैनपावर की दिशा में
बेहतरीन काम किए जा सकेंगे. ऐसा माना जाता है कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था (स्पेस
इकॉनमी) सन 2020 तक 9.6 अरब डॉलर की थी,
इसके सन 2025 तक बढ़कर 13 अरब डॉलर हो
जाने के संकेत हैं. आज भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र निजी कंपनियों के लिए भी खुला है.
देश में डेढ़ सौ से अधिक स्पेस-टेक स्टार्टअप हैं, इनमें गूगल, स्कायरूट,
सैटश्योर, ध्रुव स्पेस और बेलाट्रिक्स जैसी
कंपनियाँ शामिल हैं. ये कंपनियाँ दैनिक जीवन में काम आने वाली तकनीक के लिए
सैटेलाइट आधारित फोन सिग्नल, ब्रॉडबैंड, ओटीटी से लेकर 5जी और सौर ऊर्जा क्षेत्र में अंतरिक्ष
तकनीक के उपयोग के अवसर खोज रही हैं. निजी निवेशकों की बढ़ती लालसा देखकर भारत
सरकार भी अंतरिक्ष उद्योग में निजी सहभागिता को अधिक से अधिक प्रोत्साहित कर रही
है. इसी उद्देश्य से भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 को मंजूरी दी
है जो निजी क्षेत्र के लिए भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश की संभावनाओं को
बढ़ाएगी. चंद्रयान-3 की सफलता से अंतरिक्ष क्षेत्र में तो भारत की धाक बढ़ेगी ही
साथ ही धरती पर जियो-पॉलिटिक्स के रूप में भी प्रभाव बढ़ेगा.
यद्यपि
चंद्रयान-1 ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब 14 नवंबर 2008 को जब चंद्रमा की सतह पर उतरा था तो भारत
चंद्रमा पर अपना झंडा लगाने वाला चौथा देश बन गया था तथापि चंद्रयान-2 लैंडर की
सॉफ्ट लैंडिंग हो जाने पर भारत ऐसा करने वाला चौथा देश होता. 2019 के सितंबर महीने में चंद्रयान-2 के वैज्ञानिकों की
आँखें आँसुओं से भर गई थीं जबकि ग्यारह वर्ष की मेहनत और लम्बा रास्ता तय करने के
बाद चंद्रमा की सतह के नजदीक ही लैंडर विक्रम क्रैश हो गया था. अब चार साल बाद उसी
पल की प्रतीक्षा है, जब वैगानिकों की आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भरी होंगी. यह सफलता
भारत को अमेरिका, रूस और चीन के साथ दुनिया के सबसे
शक्तिशाली देशों में खड़ा कर देगी.
बढ़िया आलेख।
जवाब देंहटाएंचंद्रयान 3 की सफलता निश्चित ही भारतीय मेधा को चंद्रमा तक ले गई है। यह मिशन अपने सभी लक्ष्यो को अवश्य प्राप्त करेगा।