ज़िन्दगी इक सफ़र है
सुहाना, यहाँ कल क्या हो
किसने जाना, इस गीत को कितनी ही बार सुना है, गुनगुनाया है. इस गाने-गुनगुनाने के क्रम में बहुत बार मन ही मन ज़िन्दगी
के बारे में विचार भी किया, उसके गुजरते चले जाने के बारे
में भी सोचा. इस सफ़र में अनेक बार ऐसे मौके आये जिसने हँसने के अवसर दिए और ऐसे भी
पल आये जिन्होंने आँसू भी दिए. सुख-दुःख, हँसना-रोना, मिलना-बिछड़ना आदि इस ज़िन्दगी के सफ़र के बहुत बड़ा सत्य है. इस सत्य को
जानते-समझते हुए भी बहुत बार मन उदास हो जाता है, विचलित हो
जाता है. बहुत सी बातें, बहुत सी घटनाएँ ऐसी हो जाती हैं जिनके कारण दिल न चाहते
हुए भी टूट सा जाता है, आत्मविश्वास डगमगा सा जाता है. ऐसी
स्थिति में ज़िन्दगी का ये सफ़र उदास, बेरंग सा, बेमकसद सा समझ आने लगता है. लगता है जैसे कि आसपास सबकुछ खाली-खाली है, लगता है जैसे चारों तरफ एक तरह का सन्नाटा है.
चारों तरफ के चीखते
सन्नाटों में, दिल के बिना
आवाज़ टूटते जाने के बीच जब ऐसा लगता है कि सबकुछ समाप्त होने वाला है, कुछ भी अपने मन का नहीं है तब दोस्त ही होते हैं जो दिल को संगीतमय बनाते
हैं, मन को गुलज़ार करते हैं. यदि व्यक्तिगत रूप से अपनी बात
करें तो ज़िन्दगी में बहुत से पल ऐसे आये जबकि लगा कि सबकुछ समाप्त हो गया है, लगा कि मुठ्ठी खाली की खाली रह गई है उन नाजुक से क्षणों में दोस्तों ने
कंधे पर अपने साथ की मजबूती भरा हाथ रखा. हमारे खाली होते जा रहे, काँपते हाथों को अपनी हथेली में थामकर उनमें शक्ति का संचार किया है. हम
साथ हैं की भाव-भंगिमा के सहारे दिल में, मन में विश्वास का
भाव जगाया है. इधर कई दिनों से किसी काम में मन नहीं लग रहा था. किसी भी तरह का
नैराश्य न होने के बाद भी एक निराशा जैसी स्थिति बनी हुई थी. सबकुछ ठीक-ठाक होने
के बाद भी लगता था जैसे कुछ सही नहीं हो रहा. खुद के कार्यों से असंतुष्टि का भाव
न होने के बाद भी खुद से अजब सी नाराजगी जैसी बनी हुई थी. सारे काम नियमित रूप से
करने के बाद भी लगता था जैसे कोई काम पूरा नहीं हो रहा.
ऐसे अनकहे से, अनसुलझे से माहौल में एक वाक्य ‘आजकल
बहुत निगेटिव हो रहे हो’ से भीतर ही भीतर ही लगा कि क्या
वाकई ऐसा हो रहा है? नकारात्मकता जैसी कोई बात न होने के बाद
भी यदि बातों-बातों में कोई दोस्त मानसिक स्थिति को, मनोदशा को
इस रूप में देख रहा हो तो लगा कि अब खुद के सजग होने की स्थिति है. एक काम बचपन से
करते आ रहे हैं, रोज रात को सोने के पहले दिन भर के कामों का
आकलन, खुद अपना विश्लेषण. वही काम दिन में किया, खुद के कामों को लेकर, खुद की सक्रियता को लेकर, खुद के आसपास की स्थिति को लेकर, खुद की मनःस्थिति
को लेकर. लगा कि भले ही नकारात्मकता हावी न हो रही हो मगर काम में वैसी
सकारात्मकता भी नहीं है. ऐसा भी महसूस हुआ कि निष्क्रियता भी नहीं मगर पहले जैसी
सक्रियता भी नहीं दिखी. सारे काम हो रहे हैं, फोटोग्राफी भी
हो रही, पेंटिंग, स्केचिंग भी हो रही, नियमित लेखन भी हो रहा, पत्र-पत्रिकाओं के लिए भी
नियमित लिखा जा रहा फिर भी ऐसा लगता कि कुछ न किया जाये. सबकुछ करने के बाद भी
करने का मन नहीं होता.
दोस्त के एक शब्द निगेटिव
होने ने जैसे सोते से
उठा दिया. लगा कि वाकई यदि सारे काम करने के साथ-साथ यही एहसास साथ चलता रहा कि
कुछ भी नहीं हो रहा है, यदि काम करने के दौरान भी मन में यही
भाव बना रहा कि कुछ भी करने का मन नहीं है तो आज नहीं तो कल नकारात्मकता हावी हो
ही जाएगी, निगेटिव हो ही जाएँगे. वैसे अपने बहुत सारे
मित्रों से, परिचितों से कहा भी है कि हमें अपनी काउंसलिंग
करवानी है मगर वे सब इस बात को हँस कर टाल जाते हैं. हमें लगता है कि वाकई हमें
अपनी काउंसलिंग करवाने की आवश्यकता है. न होगा तो हम खुद ही अपनी काउंसलिंग
करेंगे. अपने उसी दोस्त के कहने के हिसाब से कि सबको कूल कर लेते हो तो खुद को भी
कूल कर लो. बहरहाल, ज़िन्दगी इक सफ़र है सुहाना, बस उसमें
दोस्तों की उपस्थिति का भी रहे होना.
सही लिखा है आपने कभी कभी मन अजीब सा हो जाता है,दोस्त ही है जो किसी भी बात को बेहिचक कह लेते है ,और दोस्तो के साथ मन की भावनाओं को बांटना आसान होता है।आप खुद एक बहुत अच्छे मित्र हैं ,कुछ भी कहना सहज है आपके सामने।
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