जापान का हिरोशिमा
शहर एक बार फिर चर्चा में बना हुआ है. इस बार उसके चर्चा का कारण वहाँ आयोजित जी-7
शिखर सम्मलेन में भारत का आमंत्रित सदस्य के रूप में सम्मिलित होना है. यद्यपि जी-7
समूह का सदस्य न होने के बाद भी भारत इसके शिखर सम्मलेन में पहले भी अपनी सहभागिता
कर चुका है तथापि इस बार उसकी उपस्थिति कई दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण रही है.
जी-20 शिखर सम्मलेन की अध्यक्षता भारत के पास होने के कारण भी उसकी सहभागिता प्रासंगिक
रही. जी-7 शिखर सम्मेलन
में गैर-सदस्य देशों को आमंत्रित किया जाना सन 2003 में आरम्भ
हुआ था, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने फ्रांस में जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग लिया था. वर्तमान में शिखर सम्मेलन में भारत की दसवीं
भागीदारी है. जापानी प्रधानमंत्री किशिदा की आमंत्रित सदस्यों की सूची को ग्लोबल
साउथ कहे जाने वाले देशों को प्रभावित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.
ग्लोबल साउथ का उपयोग एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के
विकासशील देशों के लिए किया जाता है.
जी-7 शिखर सम्मलेन में भारत के अलावा दक्षिण
कोरिया, ऑस्ट्रेलिया,
ब्राजील, वियतनाम, इंडोनेशिया,
कोमोरोस और कुक आइलैंड्स को आमंत्रित सदस्य के रूप में बुलाने का एक
उद्देश्य यह भी है कि जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा पर व्यापक चर्चा के साथ-साथ
चीन और रूस को भी सन्देश दिया जा सके. भारत की न केवल दक्षिण एशिया में मजबूत साख
है वरन ग्लोबल साउथ देशों में भी उसकी प्रभावशाली भूमिका है. जी-7 समूह के देश इस
बात को समझते हैं कि चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को नियंत्रित करने के साथ ही
रूस-यूक्रेन युद्ध के सन्दर्भ में ग्लोबल साउथ के देशों का साथ आवश्यक है. चीन फिलीपींस
सहित कई अन्य देशों के क्षेत्रों में अपना दावा प्रस्तुत करता रहता है. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने चीन के फिलीपींस पर दावे को खारिज
कर दिया. इसके बाद भी चीन निर्णय को नजरअंदाज करते हुए फिलीपींस के आसपास कृत्रिम द्वीपों
का निर्माण कर रहा है. चीन का यह रवैया वर्तमान अंतरराष्ट्रीय कानून को चुनौती है.
भारत का भी चीन के साथ सीमा विवाद चल रहा है. ऐसे में जी-7 देश भारत को अपने साथ लाकर
चीन के बढ़ते हस्तक्षेप को रोकना चाहते हैं.
रूस-यूक्रेन युद्ध
के सन्दर्भ में भी भारत की उपस्थिति को जी-7 समूह अपने पक्ष में करवाना चाहता है. भारत
में जापान के राजदूत ने कहा कि पुतिन को संदेश यह होना चाहिए कि रूस को यूक्रेन पर
हमले के लिए भुगतान करना होगा. जहाँ एक तरफ जी-7 के सभी सदस्य देश रूस पर और अधिक प्रतिबंध लगाने पर एकमत हैं,
वहीं दूसरी तरफ भारत अभी तक संतुलन बनाये हुए है. इसी संतुलन की
अपेक्षा भारत से इसलिए भी थी क्योंकि जी-7 शिखर सम्मलेन में रूस और चीन को
आमंत्रित नहीं किया गया था, जबकि यूक्रेन के राष्ट्रपति
ज़ेलेंस्की को सम्मलेन में आमंत्रित किया गया था. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न
केवल यूक्रेन राष्ट्रपति से मुलाक़ात की बल्कि युद्ध को राजनीति या आर्थिक मुद्दा न
मानते हुए उसे मानवीय मुद्दा, मानवीय मूल्यों का मुद्दा बताते हुए यूक्रेन को
यथासंभव सहायता का आश्वासन भी दिया. चूँकि रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान जी-7 देशों
द्वारा रूस पर लगाये गए प्रतिबंधों का सर्वाधिक प्रभाव विकासशील देशों पर ही पड़ा
है, ऐसे में खाद्य, उर्वरक और ऊर्जा सुरक्षा सहित विकासशील
देशों पर पड़ने वाले असर के बारे में भारत का रुख ज्यादा महत्वपूर्ण है.
भारत की उपस्थिति चीन
और रूस के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण रहने के साथ-साथ जलवायु संकट और क्वाड देशों
के बीच वार्ता के सन्दर्भ में भी प्रभावशाली रही. क्वाड चार लोकतंत्रों- भारत,
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के बीच एक अनौपचारिक रणनीतिक संवाद
समूह है, जो भारत-प्रशांत क्षेत्र में समान हितों और मूल्यों को साझा करता है. प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने जी-7 शिखर सम्मेलन में अपने उद्घाटन भाषण में जलवायु परिवर्तन,
पर्यावरण सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा को
वर्तमान दौर की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक मानते हुए जलवायु परिवर्तन को केवल ऊर्जा
के परिप्रेक्ष्य में न देखते हुए उसको व्यापक दृष्टिकोण से देखने की बात कही. सम्मलेन
में इसी क्रम में सन 2035 तक कार्बन मुक्त बिजली के उत्पादन का लक्ष्य रखने एवं कोयले
को चरणबद्ध तरीके से हटाने की प्रक्रिया को तीव्र करने का संकल्प लिया गया. कोयले के
स्थान पर ऊर्जा की कमी को दूर करने के लिए अस्थायी समाधान के रूप में गैस में निवेश की संभावना
के साथ-साथ सौर तथा पवन ऊर्जा में निवेश को गति देने के लिए प्रतिबद्धता प्रदर्शित
की गई. जी-7 देशों ने माना कि इन लक्ष्यों को प्राप्त करना जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी
पैनल (इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज-आईपीसीसी) की हालिया रिपोर्टों के अनुरूप करना होगा. इसके
अलावा सन 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना भी निर्धारित किया गया.
जी-7 शिखर सम्मलेन
के अवसर पर क्वाड देशों भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के प्रधानमंत्री तथा अमेरिका के राष्ट्रपति
के बीच वार्ता हुई. एक संयुक्त बयान में पेरिस समझौते और इसके पूर्ण कार्यान्वयन के
प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शायी गई. उनके बीच जहाँ स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन, नवाचार, अनुकूलन और लचीलापन पर सहयोग बढ़ाने की बात हुई वहीं
तकनीकी सहायता, क्षमता निर्माण
और वित्तपोषण तंत्र के माध्यम से हिंद-प्रशांत देशों में स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों
के परिनियोजन का समर्थन करने के लिये क्वाड क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप की स्थापना करने
पर सहमति बनी. क्वाड देशों के बीच संयुक्त अभ्यास, प्रशिक्षण और सूचना साझा करने के माध्यम से आपदा जोखिम
में कमी तथा प्रबंधन पर सहयोग का विस्तार करना भी बातचीत का मुख्य बिन्दु रहा. वनों,
आर्द्रभूमियों तथा मैंग्रोव जैसे पारिस्थितिक
तंत्रों के संरक्षण के माध्यम से जलवायु शमन एवं अनुकूलन के लिये प्रकृति-आधारित समाधानों
के समर्थन पर भी सहमति बनी.
भारत लम्बे समय से
वैश्विक स्तर पर विभिन्न वैश्विक संस्थानों और समूहों में सुधार करने की बात करता रहा
है. वह संयुक्त राष्ट्र संघ में भी सुधार का पक्षधर रहा है. जलवायु संरक्षण, पर्यावरण,
परमाणु अप्रसार आदि मामलों में भारत लगातार सकारात्मक पहल करता रहा है. उसके
सुधारात्मक उपायों, कदमों की वैश्विक स्तर पर सराहना भी होती
रही है. इन्हीं तमाम प्रयासों, कार्यों, प्रतिबद्धताओं के कारण वर्तमान में जी-7 में उसकी भूमिका को महत्त्वपूर्ण
समझा गया. इस सन्दर्भ में वर्ष 2020 में अमेरिका में आयोजित होने वाले शिखर
सम्मलेन को कोरोना के कारण स्थगित करने के दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा जी-7 को एक पुराना समूह बताते हुए इसमें
भारत को भी शामिल करने की बात कहना अब प्रासंगिक नजर आता है. यदि भारत जी-7 समूह
का सदस्य बनता है तो यह वैश्विक स्तर पर एक नई भूमिका का प्रादुर्भाव होगा.
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