23 अप्रैल 2023

टैटू की हानिकारक दीवानगी

आजकल युवाओं की पहली पसंद टैटू है. किसी का नाम, कोई डिज़ाइन बनवाना युवाओं की पहली पसंद बनता जा रहा है. लड़कियों के बीच अत्यधिक प्रचलित रहा यह शौक अब लड़कों में भी बहुतायत में देखा जा रहा है. इसे अपनी गर्दन, कलाई, पेट, पीठ आदि सहित शरीर के विभिन्न अंगों पर टैटू बनवाना आम होता जा रहा है. टैटू बनाने में त्वचा के नीचे रंग डालकर उस डिजाइन को शरीर पर उभारा जाता है, इससे शरीर पर न मिटने वाली आकृति बन जाती है. शरीर पर बनाई जाने वाली खूबसूरत आकृतियाँ कई तरह से लोगों की सुन्दरता को बढ़ाती हैं. 


इस कला का भी अपना इतिहास है. यद्यपि किसी तरह के प्रमाणिक तथ्य ऐसे नहीं मिलते हैं जिनसे इसकी उचित समयावधि ज्ञात हो सके तथापि ऐसा माना जाता है कि टैटू कला का सबसे पहला सबूत 5000 ईसा पूर्व से है. ऐसी मान्यता है कि टैटू कला वास्तव में एक प्राचीन कला है जो 3370 ईसा पूर्व से 3100 ईसा पूर्व के बीच विकसित हुई होगी. भारत में टैटू का इतिहास बहुत पुराना है. देश में यह कला गोदना या गुदना के रूप में प्रचलित रही. आदिवासी समुदायों ने अपने शरीर पर गोदना रूप में आभूषण इस सोच के साथ बनवाए कि इस तरह के आभूषण को उनसे दूर नहीं किया जा सकता. टैटू का सर्वाधिक प्रचलन जनजातियों के माध्यम से हुआ, इसमें अपतानी टैटू सबसे ज्यादा प्रचलित था. इसे बनवाने के लिए काँटों का उपयोग किया जाता था और गहरे नीले रंग में भरने के लिए जानवरों की चर्बी में मिश्रित कालिख का उपयोग किया जाता था. कालांतर में भारत सरकार ने सत्तर के दशक में इस प्रक्रिया को प्रतिबंधित कर दिया.




अस्सी के दशक से पहले टैटू तमिलनाडु में बहुत आम थे और ये विभिन्न जनजातियों से सम्बंधित लोगों की निशानी होते थे. छत्तीसगढ़ में भगवान राम के प्रति भक्ति भावना दर्शाने के उद्देश्य से लगभग एक सदी पहले चेहरे और शरीर को राम शब्द के साथ गोद लिया था जो अत्याचार के खिलाफ एक ताबीज के रूप में भक्ति का प्रदर्शन भी बना. दक्षिण भारत में गोदना को पचकुठारथु कहा जाता है. घुमंतू जाति कोरथी व कोल्लम जाति खुद को दुष्ट प्राणियों से सुरक्षित रखने के लिए स्याही से शरीर पर भूलभुलैया डिजाइन बनवाया करते थे, वहीं टोडा जाति में व्यक्ति के शरीर को लुभावना बनाने के लिए ज्यामिट्रिक आकृतियों को गोदा जाता था. बिहार के धनुको जाति का मानना है कि गोदना से महिलाएँ सुरक्षित रहती हैं. वहीं दूसरी ओर झारखंड में मुंडा जाति के लिए गोदना साहस और मुगलों पर विजय का प्रतीक है. गोंड जनजाति शरीर के खुले हिस्सों को गोदना से ढंक कर स्वयं को सभ्य बनाती है. झारखंड की संथाल जाति में पुरुष अपनी बाँह और कलाई पर सिक्कों नामक आकृति को अंकित करते थे. संथाल महिलाओं के शरीर पर पुष्प पैटर्न बेहद खूबसूरती से अंकित किया जाता था. 


वर्तमान दौर में बदलाव के शौक़ीन युवाओं ने दशकों पुरानी परम्परा को नए स्वरूप में अपनाकर एक नये ट्रेंड का आविष्कार कर लिया. दशकों पहले जिसे आम बोलचाल में गोदना कहा जाता था, वो आज टैटू के रूप में फैशन और स्टेटस सिम्बल बना हुआ है. आज की युवा पीढ़ी अपनी अलग पहचान बनाने के लिए अपने शरीर के विभिन्न हिस्सों पर अनोखे प्रकार के टैटू बनवाने में दिलचस्पी लेने लगी है. अनेक तरह की डिजाइन, नाम, कलाकृति, जीव-जन्तु, फूलों आदि के टैटू बनवाना आज फैशन बन गया है. टैटू बनवाने की दीवानगी में इसके शौक़ीन इससे होने वाले नुकसान की ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं. टैटू बनवाने के शौक में लोगों की त्वचा माँसपेशियों को नुकसान पहुँच सकता है. टैटू बनवाने की प्रक्रिया में काम आने वाली सुई शरीर में त्वचा में चुभोई जाती है. बहुत सी डिजाइन ऐसी होती हैं जिसे बनाने में सुई को शरीर में गहराई तक चुभोना पड़ता है. इससे माँसपेशियों को नुकसान पहुँचने की आशंका रहती है. इस बारे में विशेषज्ञों की राय है कि शरीर के उस स्थान पर टैटू नहीं बनवाने चाहिए जहाँ पर तिल हों. 




टैटू को रंगीन और आकर्षक बनाने के लिए अनेक प्रकार की स्याही का प्रयोग किया जाता है. कुछ स्याही और उसके रंग त्वचा के लिए हानिकारक होते हैं क्योंकि उनको बनाने में विषैले तत्त्वों का उपयोग किया गया होता है. नीले रंग की स्याही में कोबाल्ट और ऐल्युमिनियम मिला होता है जबकि लाल रंग की स्याही में मरक्यूरियल सल्फाइड की उपस्थिति रहती है. इसी तरह से बहुत से दूसरे रंगों की स्याही में शीशा, कैडियम, क्रोमियम, निकिल, टाइटेनियम, कार्सिनोजेनिक आदि सहित अनेक रासायनिक तत्त्वों और दूसरी धातुओं के होने के प्रमाण मिले हैं. ये सारे रासायनिक तत्त्व और धातु त्वचा में एलर्जी का कारण बनते हैं. इससे चर्म रोग होने की आशंका होती है. चिकित्सकों का कहना है कि टैटू की स्याही के कारण होने वाली एलर्जी से सोराइसिस जैसी बीमारी होने का खतरा रहता है. इसी तरह टैटू बनवाने की प्रक्रिया में इस्तेमाल की जाने वाली सुई से असावधानी होने पर चर्म रोग के साथ-साथ त्वचा कैंसर, हेपेटाइटिस, एचआईवी आदि जैसी संक्रमित बीमारियाँ होने का खतरा रहता है.


त्वचा रोग चिकित्सकों का कहना है कि टैटू बनवाने के बाद शरीर पर होने वाली समस्याओं में टैटू रिऐक्शन सबसे आम है. जब तक शरीर में टैटू की स्याही रहेगी तब तक शरीर में एलर्जी जैसी समस्या होती रहेगी. इससे त्वचा के कैंसर का खतरा बहुत कम है मगर संक्रामक बीमरियाँ होने की संभावना बहुत अधिक है. ऐसे में टैटू बनवाने में सावधानी रखनी चाहिए. इसे बनवाने से पहले हेपेटाइटिस बी का टीका लगवा लें तो इस संक्रामक बीमारी से बहुत हद तक बचा जा सकता है. इसके अलावा टैटू बनवाने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि बनाने वाला इसका अच्छा जानकार हो. उसके पास आधुनिक उपकरण और साफ-सफाई का पूरा ध्यान दिया जाता हो. टैटू बनाने वाली जगह पर नियमित रूप से ऐंटीबायॉटिक क्रीम लगाते रहें. वर्तमान दौर में टैटू के प्रति दीवानगी चरम पर है. यदि कुछ सावधानियों को अपना लिया जाये तो संभव है कि ये शौक कम समस्याओं वाला रहे.

 






 

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