अप्रैल का आना और
हॉस्टल मीट का याद आना स्वाभाविक है. इधर लम्बे समय से प्लानिंग बनती जा रही है
मगर क्रियान्वित नहीं हो पा रही है. हालाँकि ग्रुप के माध्यम से, सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से
लगभग सभी के साथ जुड़ाव बना हुआ है मगर इसके बाद भी एक बार दिल-दिमाग में सबसे
मिलने की उत्कंठा जागती है. बहरहाल, इस बार भी एकसाथ सबसे
मिलना नहीं हो सकेगा. इधर आपसी बातचीत में हॉस्टल समय की,
कॉलेज की कुछ चुहलबाजी याद की गई, उसी में याद आई एक आंटी
जी. चूँकि ये घटना हमारे समय की है, वर्ष 1992-93 की, इसलिए हो सकता है कि उसके बाद वाले बैच के भाइयों के सामने इसका जिक्र न
हुआ हो या हुआ हो तो उस घटना के साक्षी न होने के कारण याद न हो.
बातचीत के दौरान
इसका जिक्र जब हमने किया तो उस घटना को फिर से बताने का आग्रह जहाँ छोटे भाइयों का
रहा वहीं हमारे साथियों ने अपनी याददाश्त का हवाला देते हुए इसे फिर से बताने को
कहा. घटना कोई बहुत विशेष नहीं है मगर इस कारण से विशेष बन जाती है कि वर्ष
1992-93 का समय था, हम
स्नातक अंतिम वर्ष में थे. रोज की तरह कॉलेज में खाली समय में प्राचार्य कक्ष की
तरफ बने बगीचे में तमाम साथियों के साथ बैठे हुए थे. उसी बगीचे के किनारे पर लगा
सूचना पट उन दिनों हम दो मित्रों, हमारे और सुनील के लिए
रचनात्मकता का केन्द्र बना हुआ था. सुनील दुबे अपनी दो-चार काव्यात्मक पंक्तियों
को रोज बताते और हम उसका लेखन उस पर किया करते. उन दिनों अपनी तरह का यह नया
प्रयोग था और सबको पसंद भी आ रहा था.
हम सभी मित्रगण
बगिया के किनारे पर उसी जगह पर बैठे हँसी-ठहाके में मगन थे उसी समय हम में से किसी
मित्र ने चिल्लाकर ‘आंटी जी’ की पुकार लगाई. एकबारगी तो हम सभी को समझ नहीं आया,
इससे पहले कुछ समझ पाते, आंटी जी की आवाज़ दोबारा गूँजी और
उसी आवाज़ के साथ हम लोगों के सामने एक लड़की खड़ी दिखी. साड़ी पहले वह लड़की उस समय का
आश्चर्य का केन्द्र बनती उससे पहले उसने हम सबकी बोलती सी बंद कर दी. तेज आवाज़ में
उसने गुस्से भरे शब्दों में कई बातें कहीं. उसके और ज्यादा उग्र होने के पहले ही
हमने खड़े होकर उसके सवाल के जवाब में कहा कि हमने कहा तुमको आंटी जी, अब बताओ क्या करोगी तुम?
अपनी क्रिया की
इतनी तीव्र और स्पष्ट प्रतिक्रिया देखकर वह एक पल को खामोश हुई और फिर बोली कि
शर्म नहीं आती आप सीनियर्स को, इस तरह से मजाक उड़ाते हुए. उसको समझाते हुए कहा कि इतना गुस्सा करने की
जरूरत नहीं है. कॉलेज में आपस में ऐसी बातें होती रहती हैं. इसे सामान्य हँसी-मजाक
समझना चाहिए. और यदि न समझ आ रहा हो तो बुलाएं सीनियर्स लड़कियों को? उसके जाने के बाद इस आंटी जी संबोधन पर अलग-अलग राय बनती-बिगड़ती रही.
अगले दिन कॉलेज का
एक लड़का हमारे पास आया और बोला कि भाईसाहब, बस आप इतना बता दो कि कल उस आंटी जी किसने कहा था. हमें लगा
कि ये फसाद करने के मूड में है तो उसको बोला कि हमने ही कहा था. इस पर उसने कहा कि
न, हम आपको बहुत अच्छे से जानते हैं,
आप ऐसा नहीं कह सकते. हॉस्टल के कारण से वह लड़का हमसे बहुत अच्छे से परिचित था.
बहुत लम्बी-चौड़ी हील-हुज्जत के बाद भी वह मानने को तैयार नहीं था. बातचीत के दौरान
उसने बताया कि वह लड़की उसकी भाभी है. जल्दी शादी हो जाने के कारण पढ़ाई नहीं सो सकी
थी. अब पढ़ना चाह रही हैं. यद्यपि उस लड़की की उम्र हमसे कम ही थी मगर उसके बाद पूरे
साल भर हम उसे फिर आंटी जी कहकर ही बुलाते रहे. समय के साथ उसके मन से भी आंटी जी
वाला गुस्सा जाता रहा. और तो और बाद में उसके घर पर दो-तीन पारिवारिक कार्यक्रमों
में भी हमारा जाना होता रहा.
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