राजनीति गन्दी है; संसद डाकुओं, लुटेरों से भर गई है; संविधान में हमारा
विश्वास नहीं जैसे जुमले आये दिन सुनने को मिल जाते हैं. कविता का मंच हो, साहित्य-विमर्श हो या धारावाहिक-फ़िल्मी कार्यक्रम हो
सभी में राजनीति को बेकार बताया जाता है. आज राजनीति को गाली देना अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता माना जाता है; खुद को जागरूक बुद्धिजीवी समझना
होता है. सांसदों, मंत्रियों, विधायकों
सहित तमाम राजनैतिक व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा देना कहीं न कहीं भविष्य के लिए
संकटसूचक है. राजनीति के प्रति इस तरह की बनती अवधारणा नई पीढ़ी के मन-मष्तिष्क को
नकारात्मक रूप में प्रभावित कर रही है. उनको लगने लगा है कि देश की वर्तमान दशा की
जिम्मेवार एकमात्र रूप से राजनीति है. आने वाली पीढ़ी, जिसके
कन्धों पर देश का राजनैतिक अस्तित्व टिका हुआ है, उसको ये
समझाया ही नहीं जा रहा है कि कोई भी लोकतान्त्रिक प्रणाली बिना राजनीति के आगे
नहीं बढ़ सकती है.
एक पल को इस बात
पर विचार किया जाये कि यदि एक नियत समय बाद निर्वाचन प्रणाली द्वारा निर्वाचित
करने का अधिकार जनता से छीन लिया जाये तो क्या स्थिति बनेगी? सोचकर ही एक तरह का भय पूरे शरीर
में तैर जाता है. ये तो भला हो निर्वाचन प्रणाली का कि जिसके माध्यम से एक निश्चित
समयावधि पश्चात् जनता अपने प्रतिनिधि का निर्वाचन करके भ्रष्ट प्रतिनिधि को हटा
सकती है, उसके स्थान पर किसी दूसरे प्रतिनिधि को निर्वाचित
कर सकती है. इसी के साथ इस बात पर भी विचार किया जाये कि वर्तमान में आम जनमानस
में जिस तरह से राजनीति के प्रति नफरत का, नकारात्मकता का
भाव पैदा किया जा रहा है; देश की किसी भी समस्या के लिए
सिर्फ और सिर्फ राजनीति को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है, उससे विधायिका को कमजोर
किया जा रहा है या सशक्त बनाया जा रहा है?
इस बात से इंकार
नहीं किया जा सकता है कि वर्तमान में जनप्रतिनिधि अपने दायित्वों से मुकरते जा रहे
हैं. राजनीति में पदार्पण करने वाला अत्यंत अल्प समय में ही बलशाली होकर सामने आ
जाता है. कई-कई अपराधों में लिप्त लोग भी माननीय की श्रेणी में शामिल होकर जनता के
समक्ष रोब झाड़ते दिखाई देते हैं. इसके बाद भी सुखद पहलू ये है कि इन लोगों को
नकारने का एक अधिकार अभी भी जनता के पास है. यहाँ समझना होगा कि निर्वाचन एक नियत
समय पर होना ही है. ऐसे में स्पष्ट है कि जो भी निर्वाचन के लिए सामने आएगा, उसमें से ही किसी एक को निर्वाचित
किया जायेगा. आने वाली पीढ़ी के सामने राजनीति के सकारात्मक पक्षों को रखते हुए
बताना होगा कि ख़राब राजनीति नहीं है बल्कि अच्छे लोगों के राजनीति से दूर होने के
कारण उसमें कतिपय बुरे लोग शामिल हो गए हैं.
राजनीति की वर्तमान
व्यवस्था को दोष देने के पूर्व यदि हम अपने क्रियाकलापों, अपनी जागरूकता पर निगाह डालें तो हम ही स्वयं
में सबसे बड़े दोषी नजर आयेंगे. हमारे देश की संसद और तमाम विधानसभाओं में एक
निश्चित समयान्तराल के बाद चुनाव होता है. चुनाव का निर्धारित समय किसी लिहाज से
टाला नहीं जा सकता है और सदन की निर्धारित सीटों को अपने निश्चित समय पर भरा ही
जाना है. ऐसे में यदि अच्छे लोग उन्हें भरने को आगे नहीं आयेंगे तो जो भी सामने आयेगा
वही आने वाले निर्धारित समय के लिए सदन का निर्वाचित सदस्य होगा. ऐसी स्थिति में
दोष हमारा ही है कि हमने स्वयं अपने को अच्छा माना भी है और राजनीति से पीछे खींचा
भी है.
इसके साथ ही हम सब
अपने पारिवारिक क्रियाकलापों पर विचार करें और बतायें कि जिनका सीधे तौर पर
राजनीतिक क्षेत्र से सम्बन्ध नहीं है क्या उन्होंने अपने बेटे-बेटी को राजनीति में
कैरियर बनाने को प्रोत्साहित किया? अपने बच्चों को राजनीति के क्षेत्र में कभी आदर्श रहे लोगों के बारे में जानकारी
दी? क्या कभी अपने बच्चों के
मन में राजनीति के अच्छे लोगों के प्रति सकारात्मक बीज बोने का काम किया? नहीं न, असल में हमारे देश की बिडम्बना है
कि एक क्लर्क, एक चपरासी, एक मजदूर अपनी संतान को आईएएस बनाने के सपने
देखता है जबकि उसका दूर-दूर तक आईएएस से कोई सम्बन्ध नहीं होता है किन्तु
अच्छे-अच्छे बुद्धिजीवियों को, जिनका देश के विकास के प्रति कोई दायित्व है, उन्हें भी अपने बच्चों को राजनीति से दूर करते हुए
देखा है. ऐसे में हम गाली किसे और क्यों दे रहे हैं?
हमारा प्रयास हो
कि हम अपने बच्चों में राजनीति के प्रति जागरूकता पैदा करें. उन्हें समझायें कि इस क्षेत्र को भी कैरियर
के रूप में अपनाया जा सकता है. आज की पीढ़ी को समझाने की आवश्यकता है कि सिर्फ
मल्टीनेशनल कम्पनियों के लुभावने पैकेज को प्राप्त कर लेना ही शिक्षा का उद्देश्य
नहीं होना चाहिए, राजनैतिक
क्षेत्र में भी शिक्षा का लाभ लिया जा सकता है. यदि हम आने वाले समय में देशहित को
ध्यान में रखकर युवाओं को सक्रिय राजनीति में उतार सके तो यकीन मानिये कि आपराधिक
तत्वों को जेलों में जगह मिलेगी और देश के समस्त सदन सकारात्मक, सक्रियतापूर्ण, उत्साही, जागरूक, कर्मठ, चिन्तशील राजनेताओं से सुशोभित दिखेंगे.
इन बिन्दुओं के
आलोक में न केवल जनता को बल्कि समस्त राजनैतिक दलों को एकजुट होने की आवश्यकता है.
देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था कि और मजबूत करने के लिए आवश्यक है कि सभी अंग समवेत
रूप में कार्य करें. राजनीति की गंदगी को दूर करने का प्रयत्न करें न कि भावी पीढ़ी
के मन में राजनीति के प्रति नकारात्मक भाव उत्पन्न करें. हम सभी को इस बात को बहुत
भली-भांति गाँठ बांधनी होगी कि यदि आज हम खुले मंच से, सार्वजनिक रूप से मंत्रियों,
सांसदों, विधायकों आदि को, राजनीति को गरियाने का काम कर लेते हैं तो इसके पीछे हमारी लोकतान्त्रिक
शक्ति ही है. राजनीतिज्ञों के भीतर निश्चित समयावधि के बाद जनता के मध्य जाने का
डर होता है. सोच कर देखिये कि जिस तरह से हम सब राजनीति को, राजनीतिज्ञों
को गरियाने का काम करते हैं यदि कल को जिम्मेवार युवा पीढ़ी इस दिशा में आगे न बढ़ी, देश की राजनीति को संभालने के लिए आगे न आई तो हमारी अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता कहाँ होगी? हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था कहाँ
होगी? राजनीति को नहीं उसमें चले आये दागी लोगों को गरियाने
का, उनको बाहर निकालने का काम किया जाये.
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