08 जनवरी 2023

पेन की दीवानगी और बचपन के मँहगे पेन

फेसबुक पर अतिसक्रियता दिखाने वाले राम द्विवेदी, जो अक्सर हलकी-फुलकी पोस्ट के बीच गंभीर पोस्ट लगाकर पाठकों का ध्यान आकृष्ट करते रहते हैं. आज भी उनके द्वारा कुछ ऐसा ही किया गया. Luxor Pilot पेन से सम्बंधित एक पोस्ट लगाई और उसमें हमें भी टैग कर दिया. चूँकि पेन का जबरदस्त शौक हमें हैं, ये बात न केवल राम जानते हैं बल्कि हमारे सभी परिचित भी जानते हैं, इसी कारण से उस पोस्ट में हमें टैग किया गया था. पोस्ट देखी तो वो Luxor Pilot Pen से सम्बंधित थी. आज की पोस्ट के द्वारा बीते दिनों की सैर करवाई जा रही थी. जिस पेन की फोटो राम ने लगाईं थी, अस्सी-नब्बे के दौर में किसी भी साधारण विद्यार्थी के लिए उसे खरीदना संभव नहीं था. उसी साधारण विद्यार्थी वाली स्थिति में हम भी थे. 




पेन का शौक आज से नहीं बल्कि बचपन से रहा है. अपनी कक्षा के कुछ धनवीर मित्रों के हाथों में इस तरह के पेन देखकर मन ललचाता तो था किन्तु परिवार में जिस तरह का माहौल था, उसके द्वारा संतोषम परम सुखम वाली भावना सर्वोपरि थी. जब खुद कमाना, तब शौक करना वाली घुट्टी तो बचपन से ही पिलाई जाने लगी थी. खुद कमाओगे तब पैसे का मोल समझ में आएगा की धमकी भी समय-समय पर मिलती रहती थी. बहुत अच्छे से याद है कि कक्षा छह में आने के बाद ही अकेले में बाजार घूमने का अवसर मिला था. इसी कक्षा में आने के बाद ही अपने घर से लगभग डेढ़-दो किमी दूर स्थित राजकीय इंटर कॉलेज में जाने का मौका मिला. जैसा कि आज का दौर है बच्चों को रेशम में लपेट कर पालने की, वैसा माहौल उस समय हमें नहीं मिला. ऐसा नहीं था कि हम बच्चों की देख-रेख नहीं होती थी किन्तु उस समय बहुत छोटे-छोटे कदमों के द्वारा हमें आत्मनिर्भर होने के, परिस्थितियों से खुद लड़ने के अवसर भी परिवार की तरफ से दिए जा रहे थे.


बाजार से गुजरते समय कुछ दुकानें मिलती थीं स्टेशनरी की, उनमें लटके पेन देखकर मन ललचाता मगर एक दिन के जेबखर्च के रूप में मिलती चवन्नी उस लालच की तरफ उतावला न होने देती. हो सकता है कि आज के बच्चे चवन्नी का अर्थ भी न समझें. इसे हमारे पाठक समझायेंगे. उसी दौरान राम द्विवेदी द्वारा दर्शाए गए इस पेन के साथ-साथ इसी कंपनी का एक और पेन नजर के सामने से गुजरा. इन दोनों पेन में इनकी टिप का अंतर था. जो पेन राम ने दिखाया उसकी टिप स्टील की हुआ करती थी और दूसरे पेन की टिप फाइबर की. बहुत हिम्मत करके एक दिन पिताजी के सामने फाइबर टिप वाला पेन लेने की फरमाइश रख दी. स्केच की जगह पर उसके इस्तेमाल का कारण बताते ही पेन के लिए पैसे तो न मिले बल्कि जबरदस्त डांट मिली. कुछ दिनों के लिए किसी भी तरह के नए पेन की तरफ से ध्यान ही हट गया.




एक बात यहाँ बताएँ कि उस समय हमें फाउंटेन पेन से लिखने के लिए प्रेरित भी किया जाता था और धमकाया भी जाता था. बस इसी कारण से बॉल पेन के रूप में यदि कोई पेन कभी-कभार हाथ में आया तो शार्प का पारदर्शी नीला पेन और कभी-कभी चवन्नी वाली रिफिल वाला कोई सस्ता सा बॉल पेन. ऐसे में किसी दूसरे पेन की बात सोचना भी बड़ी हिम्मत का काम हुआ करता था. यद्यपि उसी समय में एक-दो रुपये तक के कुछ पेन कई-कई दिन की दस-पाँच पैसे की बचत करके भी लिए गए. शायद आप लोगों को याद हो एक स्टील का पेन आया करता था बिना कैप का.


बहरहाल, Luxor के ये दोनों पेन भी लिए गए मगर बहुत दिनों की बचत के बाद. धारे-धीरे कक्षा आगे बढती गई, घर से सख्ती भी कुछ कम होती रही. कभी ड्राइंग के लिए, कभी चार्ट के लिए, कभी परीक्षाओं के लिए पेन की जरूरत पड़ती रही तो ये पेन भी हमारी जेब की शोभा बनते रहे. उन्हीं दिनों इसी कंपनी के एक और बड़े हाई-फाई टाइप पेन से मुलाकात हुई. Pilot V5 के नाम से बाजार में आये इस पेन ने एक बार में ही अपनी तरफ ध्यान खींचा, ऐसा लगा जैसे पहली नजर का प्यार उसी से हो गया हो. उसके बाद जैसे ही दुकान पर जाकर उसका मूल्य पता किया, सारा प्यार हवा में उड़ गया. उस पेन की कीमत के आसपास का पैसा तो महीने भर में हमारे हाथ नहीं आया करता था. पेन से अपने प्यार को खाली हाथ कुछ धन्नासेठों के बच्चों के हाथ में सजा देखते रहे.




शायद आज के बच्चों को आश्चर्य हो कि उस पेन (Pilot V5) को हमने अपनी स्नातक की पढ़ाई के दौरान पैसे जोड़कर ही खरीदा. स्नातक की पढ़ाई के लिए ग्वालियर जाना हूं वहाँ हॉस्टल में रहने का कारण महीने का जेबखर्च चार सौ रुपये मिला करता था. इसी में खाना, दूध और बाकी सामान लिए जाते थे. ऐसे में कुछ महीनों की बचत के बाद V5 पेन ले लिए गया. समय के साथ बहुत कुछ बदला. बाजार ने पेन पर पेन उतार दिए, सस्ते से सस्ता पेन और मंहगे से मंहगा पेन. अब पेन की इतनी वैरायटी मौजूद है कि लेने वाला ही पागल हो जाये कि किसे ले और किसे छोड़े.


दूसरों के पागलपन की क्या बात करें, हम खुद ही पागल रहते हैं बाजार में इतने अधिक पेन देखकर. ये एक आश्चर्य हो सकता है कि पिछले लगभग पच्चीस-तीस साल से हमने किसी पेन के लिए रिफिल नहीं खरीदी है. इससे बड़ा आश्चर्य तो ये होगा कि इतने सालों में किसी पेन की रिफिल ही ख़त्म नहीं हुई है. हर महीने दो-चार नए पेन खरीद लिए जाते हैं, इस कारण रिफिल सुरक्षित बनी रहती है. हाँ, Pilot का V5 पेन जरूर नियमित रूप से पिछले बीच-पच्चीस साल से हमारे लेखन का, हमारी आर्ट का, स्केचिंग का, कैलीग्राफी का हिस्सा बना हुआ है. 






 

1 टिप्पणी:

  1. सन 2000 के आसपास ही write o meter पैन आया था उसने हमें भी बहुत आकर्षित किया और बीच बीच में रेनोल्ड zetter भी इस्तेमाल करते थे,,, और क्लास में ये दोनों ही पैन चोरी भी बहुत होते थे, जिसकी वजह से घर पर डांट पड़ती थी कि अब नहीं देंगे पैसे

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