अकादमिक रूप से अनिवार्य चार सप्ताह के फैकल्टी इंडक्शन प्रोग्राम में दिसम्बर 2021 के आखिरी सप्ताह से जुड़ना हुआ. यह कार्यक्रम 22 जनवरी 2022 तक चला. इस अवधि में प्रतिदिन चार सेशन होते थे, जिनमें देश के अलग-अलग हिस्सों से, अलग-अलग विद्वानों के व्याख्यान से परिचय हुआ. इस प्रोग्राम में देश भर के तीस प्रतिभागी ऑनलाइन ही जुड़े हुए थे. कोरोना के कारण से विगत दो वर्षों में बहुतायत गतिविधियाँ ऑनलाइन ही सम्पन्न हो रहीं हैं. इनके यदि अपने फायदे हैं तो इनके नुकसान भी हैं. ऑनलाइन रहने से लोगों को आवागमन की समस्या नहीं रही, सम्बंधित संस्थान को तमाम व्यवस्थाएँ नहीं करनी पड़ीं मगर इसी ऑनलाइन का नुकसान यह हुआ कि देश के विभिन्न प्रदेशों से, विभिन्न फैकल्टी के आये लोगों से मिलने का अवसर न मिला. दिन भर के व्याख्यान सत्रों के बीच के समय में सभी प्रतिभागी एक-दूसरे से संपर्क बना कर आपस में वैचारिक आदान-प्रदान करते.
कार्यक्रम समाप्ति तक विभिन्न विद्वानों के
विचारों से, उनके ज्ञान से परिचित होने का अवसर
मिला. अपने विषय के साथ-साथ अन्य विषयों के बारे में भी जानकारी हुई. बहुत से ऐसे
बिन्दुओं के बारे में भी गहराई से जानने-समझने का अवसर मिला, जिनके बारे में पढ़ रखा था मगर ऊपरी स्तर पर. इस
अवधि में खुद अपने ज्ञान को जाँचने-परखने का भी मौका मिला. लगा कि कितना कुछ ऐसा
है जो अभी तक जाना ही न था, कितना कुछ ऐसा है जिसके बारे में जानते
हुए भी लगा कि कुछ नहीं जानते हैं. ज्ञान के अपार, अथाह सागर में हम जैसे किनारे पर भी बैठे हुए से नहीं हैं. महसूस हुआ कि
जैसे बहुत दूर बैठे इस ज्ञान-सागर की छवि को निहार रहे हैं.
इस फैकल्टी इंडक्शन प्रोग्राम का क्या और कितना
लाभ मिलेगा ये तो भविष्य की बात है मगर इसका लाभ हुआ कि विगत काफी लम्बे समय से
तमाम अकादमिक कार्यों में अवरोध जैसा या कहें कि रुकावट ही आ गई थी, उसे पुनः आरम्भ करने का मन बन गया है. मन फिर से
भटक पर अपनी पुरानी अवस्था में न चला जाये, इससे पहले खुद को और मन को तत्परता से अकादमिक कार्यों की तरफ ले जाना है.
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