आए दिन हम लोग देखते हैं कि बहुत से लोग निराशा में, अवसाद में अपना जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं। ऐसा लगता है जैसे उनके सामने जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है। यह स्वाभाविक सी बात है कि कई बार मन के काम न होने पर, लक्ष्य की पूर्ति न होने पर अथवा लगातार असफलता मिलने से मन में निराशा के भाव उत्पन्न होने लगते हैं। निराशा के इस दौर से बाहर निकलने का काम भी मनुष्य के हाथ में है। दरअसल तमाम सारी भौतिकतावादी स्थितियों के पीछे भागने के कारण से इंसान ने खुश रहना, छोटी छोटी बात में खुशियां तलाशना बंद कर दिया। उसके लिए जीवन का उद्देश्य धनोपार्जन, परिवार का भरण पोषण, नौकरी करना आदि रह गया है। यदि देखा जाए तो जीवन में यह उद्देश्य बहुत छोटे हैं।
व्यक्तियों को चाहिए कि वे जीवन के इन बने बनाए कारणों से अलग प्रकृति के साथ अपना तारतम्य और सामंजस्य स्थापित करके देखें। प्रकृति बहुत सी बातों की शिक्षा देती है और परेशानी में भी आगे बढ़ने का रास्ता दिखाती है। वर्तमान में व्यक्ति की परेशानी का बहुत बड़ा कारण उसका प्रकृति से दूर हो जाना है। जरा-जरा से फ़्लैट हों या फिर बड़े-बड़े मकान, अब बहुत सी जगहों पर प्राकृतिक पौधों का होना कम दिखाई देता है। इसके पीछे मुख्य कारण प्रकृति के इस अंग की देखभाल करना, उसी सेवा करना है। अब व्यक्ति अपने घर में आये हुए किसी बाहरी व्यक्ति को पानी पिलाने से बचना चाहता है, ऐसे में वह पेड़-पौधों को कैसे पानी दे सकता है? इस तरह की स्वार्थपरक सोच के कारण ही व्यक्ति पल-पल प्रकृति से दूर होता जा रहा है।
प्रकृति से दूरी व्यक्तियों में तनाव पैदा कर रही है। प्रकृति से दूर होने के कारण इंसान उसके विविध रूपों से परिचय प्राप्त नहीं कर पा रहा है। उसे प्रकृति के साथ तालमेल बिठाना खुद को कमतर समझने जैसा लगने लगा है। इंसान को प्रकृति के साथ अपने सम्बन्ध को, रिश्ते को समझना होगा। उसके विविध रूपों के साथ खुद को जोड़ना होगा। उसके मनोरम दृश्यों को आत्मसात करते हुए खुद को खुशहाली के रास्ते पर ले जाना होगा।
बिल्कुल सही बात। हमें स्वयं को प्रकृति का अंग ही मानना चाहिए।
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