कौन कहता है कि आसमान में छेद नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो. ये पंक्ति कार्य करने को प्रेरित करती है. यह बात केवल व्यक्तियों पर लागू नहीं होती बल्कि शासन, प्रशासन, संस्थाओं आदि पर भी लागू होती है. किसी भी काम को करने के प्रति यदि सकारात्मकता है, पारदर्शिता है, ईमानदारी है तो ऐसा संभव नहीं कि वह कार्य सफल न हो. कुछ ऐसा ही इस बार भारत सरकार के प्रयासों से देखने को मिला.
वाराणसी से लगभग 100-150 वर्ष पहले माँ अन्नपूर्णा की पवित्र प्रतिमा को असामाजिक तत्वों द्वारा
चोरी करके कनाडा पहुँचा दिया गया था. कालांतर में इस प्रतिमा की पहचान भारतीय मूल
के किसी लेखक द्वारा की गई. यह प्रतिमा भारत की आस्था से जुड़ी है. इस संबंध में
जैसे ही भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जानकारी मिली उन्होंने कनाडा सरकार
से संवाद स्थापित किया. उनके प्रयासों से भारत और कनाडा सरकार के बीच परस्पर संवाद
बना रहा. इसका सुफल यह रहा कि माँ अन्नपूर्णा की इस प्रतिमा को ससम्मान भारत मँगवाया
गया.
माँ अन्नपूर्णा की इस प्रतिमा में माँ के एक हाथ
में खीर की कटोरी और दूसरे हाथ में चम्मच है. यह प्रतीक है समाज को भूखे पेट न
रहने देने का, सभी के लिए भोजन उपलब्धता है. 15 नवम्बर को इस प्रतिमा की प्राण स्थापना काशी में की जाएगी. इससे पूर्व यह
प्रतिमा दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा
काशी विश्वनाथ विशिष्ट क्षेत्र विकास परिषद को सौंपी गई है. जिसके बाद
पुनर्स्थापना यात्रा के माध्यम से माँ अन्नपूर्णा 18 जिलों
में भक्तों को दर्शन देते हुए 14 नवम्बर को काशी पहुँचेगी.
इसके बाद अगले दिन (15 नवम्बर) देवोत्थान एकादशी के पावन
अवसर पर श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के नवीन परिसर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ विधि-विधान से प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करेंगे.
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