21 जून 2020

कैमरों ने की चश्मा लगाकर फोटोग्राफी - 1800वीं पोस्ट

वर्ष 2019 का अंतिम सूर्यग्रहण घने बादलों की चपेट में चला गया था. ठण्ड भरी सुबह में आधा घंटे टहलने के बाद भी जब समझ आ गया कि बादल अपना रास्ता छोड़ने के मूड में नहीं हैं तो हमने ही अपना रास्ता बदल लिया. छत से उतर कमरे में आ गए और फिर टीवी के सहारे देश में अलग-अलग जगहों के सूर्यग्रहण के दर्शन किये. अबकी मौसम साफ़ समझ आ रहा था मगर कहीं-कहीं बादलों के कारण होने वाले व्यवधान की आशंका के चलते मन में संशय बना हुआ था. सुबह आँख खुली तो दिन भी खिला-खिला दिखाई दिया. अपनी नियमित व्यायाम और योगाभ्यास की दिनचर्या से निपट कर छत पर पहुँच गए.



याद आ गया वर्ष 1995 का खग्रास. उस दिन भी पिताजी, चाचा जी लोगों का आदेश पारित हो चुका था छत पर नहीं जाने का. छोटे भाई-बहिनों के चेहरे उतर गए थे, खुद हम भी पशोपेश में थे कि क्या किया जाए. बाद में निर्णय लिया कि क्या होगा ज्यादा से ज्यादा डांट पड़ेगी, सुन लेंगे मगर इस डायमंड रिंग बनने की घटना के साक्षी अवश्य बनेंगे. सुरक्षा के तमाम तामझाम गोपनीय ढंग से करके यथासमय न केवल हम भाई-बहिनों ने बल्कि समूचे परिवार ने उस दृश्य का आनंद लिया था. बाद में बजाय डांट पड़ने के सबने हमारे कदम की दबे-छिपे तारीफ की ही कि इस बहाने सबको वह अलौकिक दृश्य देखने को मिल गया.


आज भी सूर्यग्रहण संयोग के साथ दिखाई पड़ना था, ऐसे में कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते थे. 21 जून का दिन जो सबसे बड़ा दिन होता है तथा इधर कुछ सालों से अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में भी मनाया जाने लगा है. इसके अलावा ऐसा बताया जा रहा था कि इस समय पाँच ग्रह एक सीधी रेखा में है. ऐसा संयोग नौ सौ वर्षों के बाद बन रहा है. ऐसे संयोग का गवाह बनने के लिए हम सारे साजोसामान के साथ छत पर जम गए. दो-दो कैमरे (Nikon का DSLR और Cannon का Power Shot), मोबाइल के साथ जब छत पर आये तो सूर्य भगवान अपनी क्षमता के साथ प्रकाशित थे. कैमरे के लेंस के नफा-नुकसान का दिमाग में न लाते हुए सूर्य को कैद करने की कोशिश की. यद्यपि ग्रहण आरम्भ हो चुका था मगर आरंभिक दशा में होने के कारण सूर्य का तेज अपनी चरम पर ही था. कैमरे क्लिक करते रहे मगर तेज रौशनी में वे लगभग निरर्थक प्रयास ही करते लगे. चकाचौंध से भरी फोटो सामने आती रहीं.

ऐसा पहले भी कई बार हुआ कि फोटोग्राफी से सम्बंधित बहुत सी चीजों की कमी खली मगर आज कैमरे फ़िल्टर का न होना बहुत खला. ट्राईपोड की कमी उतनी नहीं खलती है क्योंकि फोटो खींचने का इतना अभ्यास हो चुका है कि बहुत ज्यादा ज़ूम करने के बाद भी कैमरा हिलता नहीं है या फिर न के बराबर कम्पन होता है. बहरहाल, आज कमी फ़िल्टर की महसूस हुई. अब दिमाग लगाया कि क्या किया जाये? उसी समय प्रकृति को भी शायद हमारी सहायता करने का मन हो आया और आसमान पर बादल दिखाई देने लगे. बादलों की ओट में जाने के बाद सूर्य की रौशनी में कमी तो आती मगर कैमरों के लिहाज से फिर भी ज्यादा ही लगी.

चश्मा लगाये कैमरों ने खींचीं सूर्यग्रहण की तस्वीरें 

समय गुजरता जा रहा था, फोटो बहुत कायदे की नहीं आ रहीं थीं. इसलिए अब देशी जुगाड़ लगाने का विचार किया. हम लोग तो चश्मा लगाये हुए थे, मन में आया कि कैमरों को भी चश्मा लगाकर देखा जाये. बस जुगाड़ के साथ कैमरों पर भी चश्मे लगाये गए. रौशनी में बहुत अंतर आया. इधर बादलों में छिपने के कारण भी रौशनी में कमी आती, उस पर काले-लाल चश्मों ने भी रौशनी को रोकने में अपनी भूमिका निभाई. अब हम भी चश्मा लगाये थे और हमारे कैमरे भी चश्मा लगाये थे. हालाँकि फोटो खींचने में कुछ समस्या आ रही थी मगर कभी बिटिया रानी की सहायता से, कभी श्रीमती की सहायता से इस समस्या को दूर करते रहे. 



बस फोटो निकालते रहे और बादलों का भी इंतजार करते रहे. बादल आते, सूर्य को अपने आँचल में छिपाते और हम फ़टाफ़ट क्लिक करते जाते. इसमें भी बहुत से फोटो साफ़ न आये मगर इतने फोटो निकल आये जिनके साथ इस दिन को धरोहर के रूप में सुरक्षित कर लिया. उरई में और जगहों की तरह से छल्ला नहीं बना मगर इस अलौकिक खगोलीय घटना के साक्षी अवश्य बन गए. आप भी चश्मा चढ़ाए कैमरों से खींची गई तस्वीरों का आनंद लीजिये. 






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(यह इस ब्लॉग की 1800वीं पोस्ट है)
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

6 टिप्‍पणियां:

  1. भाईसाहब एक और विकल्प था,जैसे मैं सूर्यग्रहण देखता हूँ, दो xrey की मदद से, बहुत सुन्दर दिखाई देता है

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  2. 1995 में वाकई अँधेरा हो गया था , उसी की उम्मीद से इस बार इंतजार था लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ । मैं कोई भी ग्रहण देखती नहीं हूँ ।

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  3. सब कहते है ग्रहण के समय बाहर नहीं जाना चाहिए ,नही उसे देखना चाहिए ,इसलिए उसे आपकी पोस्ट पर देखकर अच्छा लगा ,और सचित्र जानकारी भी मिली ,धन्यवाद

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  4. बहुत सुन्दर चित्रावली।
    1800वीं पोस्ट की बधाई हो।

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  5. बढ़िया आइडिया, कैमरे को चश्मा। हम तो हमेशा एक्स रे फ़िल्म के साथ देखते हैं। ठीक 12 बजे देखे, दूज का चाँद-सा दिख रहा था। मोबाइल से फ़ोटो लिया लेकिन कुछ भी न आया। आपकी ली हुई तस्वीर देखकर अच्छा लगा।

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