किसी
विज्ञापन के द्वारा अपना उत्पाद बेचने के लिए डर के आगे जीत है कह देना लोगों को
बहुत पसंद आया है. आये दिन लोगों के मुख से इसे निकलते देखा जा सकता है. विज्ञापन
की या कहें कि चमकते परदे की ज़िन्दगी की अपेक्षा वास्तविक ज़िन्दगी बहुत अलग है. विज्ञापन
की दुनिया में डर के आगे जीत हो सकती है मगर वास्तविक दुनिया में डर सिर्फ डर है
और इस डर के आगे मौत ही होती है. यह कोई मजाक नहीं, कोई कल्पना नहीं बल्कि एक कड़वा
सत्य है. इस सत्य को अभी तक लोगों ने अपने जीवन में किताबों में पढ़ा था, फिल्मों में
देखा था किन्तु विगत कुछ दिनों से इसे अपने जीवन में देख रहा है. कोरोना के
वैश्विक आँकड़े व्यक्ति के अन्दर डर का वातावरण बना ही रहे हैं. इस डर को वे लोग और
भी गहराई से महसूस कर रहे हैं जिनके शहर में, मोहल्ले में या तो कोई कोरोना
संक्रमित निकला या फिर वहाँ किसी व्यक्ति का निधन इस वायरस के संक्रमण से हो गया
है.
अब
इस डर की असलियत क्या और कितनी है, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है किन्तु जिस
तरह से मीडिया में कोरोना वायरस के बारे में बताया जा रहा है वह सिर्फ डर पैदा
करने वाला है. इसके अलावा सोशल मीडिया पर आम नागरिकों द्वारा स्वयं को एकमात्र
विद्वान समझने, जानकारी का एकमात्र स्त्रोत समझने के चक्कर में भी अनावश्यक डर का
माहौल बना दिया गया है. यह सत्य हो सकता है कि इस वायरस का इलाज न मिल पाने के
कारण आज यह खतरनाक स्थिति में समझ आ रहा है. आज इस बीमारी से बचने का एकमात्र उपाय
लोगों से दूरी बनाये रखना ही नजर आ रहा है. ऐसे में अनर्गल तरीके से वीडियो, फोटो
और तमाम पोस्ट के माध्यम से सिर्फ डर का वातावरण बनाया जा रहा है. मीडिया तो ऐसा
करने में लगी है साथ ही ऐसा वे लोग भी करने में लगे हैं जो मीडिया क्षेत्र में न
होते हुए भी खुद को मीडिया समझने की भूल करते हैं. किसी नगर में, किसी शहर में
कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या, उसके कार्य को लेकर जिस तरह से शंकाएं पैदा की
जाती हैं वे कदापि सुखद नहीं हैं.
समझना
होगा कि किसी शहर में कोरोना संक्रमितों की असल संख्या की जानकारी पाकर एक आम
नागरिक उसका क्या लाभ ले सकता है? समझना चाहिए कि कोरोना संक्रमितों की संख्या,
मौतों की पल-पल की जानकारी को सोशल मीडिया के द्वारा शेयर करने से लोग जनता का,
समाज का क्या भला कर रहे हैं. इसके द्वारा सिवाय यह दर्शाने के कि समाज में, सोशल
मीडिया में इस जानकारी के पहले स्त्रोत वो स्वयं है, किसी भी व्यक्ति का कोई और
उद्देश्य नहीं होता है. अपनी पीठ थपथपाने की मानसिकता के कारण, लोगों से अपने बारे
में प्रशंसा के दो बोल सुनने की तृष्णा के कारण ऐसे कदम उठाकर समाज में अनावश्यक
भय का माहौल बनाया जाने लगता है. यहाँ इन लोगों को जानकारी होनी चाहिए कि किसी खबर
को पाने के लिए और उसके प्रसारण के लिए वे जिस माध्यम का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसी
को दूसरे भी इस्तेमाल कर रहे हैं. लोगों तक ये खबर पहुँचाने के लिए वे जिस स्मार्ट
फोन का, जिस इंटरनेट सेवा का, जिस वैश्विक अथवा राष्ट्रीय चैनल का इस्तेमाल कर रहे
हैं, उसी के द्वारा दूसरा भी जानकारी ले रहा होता है. ऐसे में अकारण ये विद्वता
दिखाने की मानसिकता क्या है? भले ही उनका उद्देश्य समाज में, लोगों में भय का
माहौल बनाना न रहा हो मगर जाने-अनजाने वे भय का माहौल ही बना रहे हैं. लोगों को
डराने का काम कर रहे हैं. यह दिमाग में रखना चाहिए कि डर के आगे जीत है का वाक्य सभी
के लिए नहीं है और जिनके लिए है वे जानते हैं कि उन्हें जीतना कैसे है, उनको जीत
कैसे मिलना है.
.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बिल्कुल सही ।
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंसहमत...इससे ना चाहते हुए भी डर का माहौल बन रहा है।
जवाब देंहटाएंडर का वायरस चपेट रहा सबको
हटाएंबहुत आवश्यक मुद्दे की ओर इशारा किया आपने राजा साहब | किन्तु यहाँ मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक जितनी संवेदनहीनता और अपरिपक्वता का परिचय हमेशा से दिया जाता रहा है उसमें इनसे इससे ज्यादा अलग की उम्मीद करना बेमानी है | अगले कुछ दिनों में स्थति भयावह होने की पूरी गुंजाईश है |
जवाब देंहटाएंइस पर मीडिया और सरकार को विचार करना चाहिए
हटाएंउनसे पूछो जिनके घर वाले कहने को रक्षा कवच पहने योद्धा बने खड़े हैं । अपने विवेक को मत खोइए । सावधानी और सकारात्मकता को हटने न दे ।
जवाब देंहटाएंजी, सावधानी और धैर्य का परिचय देना इस समय बहुत जरूरी है।
हटाएं