19 अप्रैल 2020

विभिन्न आयाम हैं विचारने को इस लॉकडाउन में

लॉकडाउन के इस खाली समय ने इन्सान को सोचने वाली स्थिति में खड़ा कर दिया है बशर्ते कि इन्सान कुछ सोचना चाहे. सोचने के आयाम भिन्न-भिन्न हो सकते हैं. यही इस समय को प्रकृति संतुलन, पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से देखा-सोचा जाये तो साफ समझ आ रहा है कि लॉकडाउन के समाप्त होने के बाद हमारा पर्यावरण नवीन रूप में हम सबका स्वागत कर रहा होगा. अपने कुछ मित्रों से बातचीत होती है, यह वह समय है जबकि हम अपने संबंधों को पुनर्जीवन दे सकते हैं. सोशल मीडिया के, माइक्रोब्लॉगिंग के ज़माने में अब सन्देश भेजकर ही सारे दायित्वों की पूर्ति कर ली जा रही है. ऐसे में हम सभी अपने मित्रों, रिश्तेदारों, परिचितों, सहयोगियों को फोन करके उनके हालचाल तो ले ही सकते हैं. बहरहाल, अपने बहुत से मित्रों से, ऐसे मित्रों से जो दिल्ली, नॉएडा, गुरुग्राम, मुंबई आदि जैसी जगहों पर रह रहे हैं. उनका कहना है कि उन्हें याद नहीं कि इन जगहों को इतना स्वच्छ, खूबसूरत अंतिम बार कब देखा था. कुछेक मित्रों ने तो बहुत ही अद्भुत जानकारी दी. उन्होंने बताया कि उनके चौदह, पन्द्रह वर्ष के बच्चों ने अपने जीवन में पहली बार गौरैया देखी, उसकी आवाज़ सुनी. सोचिये एक पल ठहर कर कि हम सबने भौतिकतावाद में दौड़ते-दौड़ते किस तरह की दुनिया का निर्माण कर लिया था अपने बीच.



प्रकृति, पर्यावरण की इस सकारात्मक स्थिति के बीच ये समय इन्सान के लिए खुद के बारे में भी सोचने का है. सोचने वाली बात ये है कि जिस दिन लॉकडाउन होने की घोषण प्रधानमंत्री जी द्वारा की गई, उस समय किसी ने भी बाज़ार से टीवी, कार, फ्रिज, मोबाइल, कंप्यूटर आदि लेने के लिए दौड़ नहीं लगाई थी. जो भी बाज़ार की तरफ दौड़ा वह खाद्य सामग्री के लिए दौड़ा, दवाइयों के लिए दौड़ा. क्यों किसी ने ये विचार नहीं किया कि लॉकडाउन में घर पर ही रहना पड़ेगा, सभी कमरों के लिए अलग-अलग टीवी ले ली जाये? क्यों किसी ने सभी सदस्यों के लिए अलग-अलग म्यूजिक सिस्टम नहीं खरीदा? क्यों सभी ने अपनी-अपनी पसंद के कपड़े खरीद कर रख लिए? ऐसी क्या मानसिकता रही कि सभी लोग खाने-पीने की वस्तुओं को लेने के लिए ही आतुर दिखे? समय यही विचार करने का है कि इन भौतिक चीजों के बिना हमारा काम चल सकता है मगर खाद्य-पदार्थों के बिना गुजारा नहीं है.


इस लॉकडाउन में व्यक्तियों को अपनी जीवन-शैली के बारे में भी विचार करना चाहिए. इस लॉकडाउन में कहीं से भी ऐसी कोई खबर नहीं आई कि किसी जगह पर व्यक्तियों ने, उनके परिजनों ने मॉल जाने की, फिल्म देखने की, सड़कों पर देर रात घूमने की जिद की हो. बिना मॉल जाए, बिना फिल्म देखे, बिना जंक फ़ूड खाए भी सबका जीवन चल रहा है. किसी को भी इन चीजों के न मिलने से किसी तरह का कोई शारीरिक कष्ट नहीं हुआ. यदि किसी को किसी भी तरह का मानसिक कष्ट देखने को मिला भी है तो वह इन सामानों की कमी के कारण नहीं बल्कि इतने लम्बे समय से घर में रहने के कारण. उसके भी अपने अलग कारण हैं. असल में व्यक्ति ने अपने जीवन में अपनी आजीविका, अपने उसी काम के अलावा किसी और चीज को महत्त्व ही देना बंद कर दिया है. बहुतों ने तो अपने कैरियर के लिए अपने परिवार को भी महत्त्व देना बंद कर दिया है. ऐसे में अब जबकि वह निपट फुर्सत में है तब उसके पास कोई शौक या कोई दूसरी रुचि, कोई दूसरा काम भी नहीं दिखाई दे रहा है. जो लोग वर्क फ्रॉम होम में हैं वे और भी ज्यादा अवसाद की स्थिति में नजर आने लगे हैं. असल में अब वे काम भी कर रहे हैं मगर तन्हा हैं. अब उनके साथ ऑफिस वाला माहौल नहीं है, उनके सहयोगी नहीं हैं. घर-परिवार के लोग तो वैसे भी उनकी आदतों के चलते अलग-थलग हैं.


यही वह स्थिति है जबकि लोगों को लॉकडाउन के दौरान ही या फिर उसके समाप्त होने के बाद सोचना होगा. सोचना होगा अपनी प्रकृति के बारे में, सोचना होगा अपने पर्यावरण के बारे में, सोचना होगा अपने शौक के बारे में, सोचना होगा अपनी जीवन-शैली के बारे में, सोचना होगा अपने अपव्यय के बारे में, सोचना होगा अपने परिवार के बारे में, सोचना होगा खुद अपने बारे में. सोचे आज के दौर में कि उसकी अंधाधुंध रफ़्तार का क्या हुआ? दिन-रात काम-काम-काम की रट लगाने वाला वह अब क्यों खामोश है? क्यों जो दाल-रोटी उसे मध्यगुगीन भोजन की याद दिलाती थी उसी को आज वह स्वाद से अपने भोजन में शामिल किये है? क्यों जिस जंक फ़ूड के बिना उसका एक दिन गुजरता नहीं था, आज उनके बिना कई हफ्ते गुजार चुका है? क्यों जिस परिवार के साथ उसे एक पल बिताना अपनी गुलामी लगती थी, उसी के साथ आज वह दिन-रात सुख से बिता रहा है? ये वह स्थिति है जहाँ प्रकृति ने हम सभी को घर में रह कर, आराम से बैठ कर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है. यद्यपि इससे पहले भी लगातार होती आ रही विभीषिकाओं, प्राकृतिक आपदाओं के बाद भी इन्सान कुछ सोचने-विचारने को तैयार नहीं था तथापि प्रकृति को स्वयं ही उतरना पड़ा उसे सुधारने. और हुआ भी यही. आज यह विभीषका, महामारी किसी एक-दो देश में नहीं, किसी एक-दो प्रायद्वीप में नहीं वरन समूचे विश्व में फैली हुई है. लगभग सभी देशों के नागरिक एक जैसी अवस्था में घर पर हैं. सब मिलकर सोचें अपनी प्रकृति, पर्यावरण, समाज, परिवार और खुद के बारे में. शायद इसके बाद आने वाला समय सभी के लिए हितकारी हो, मानव के लिए सुखद हो, मानवता के लिए लाभदायक हो.


.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग 

3 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सच कहा आपने । इंसान अक्सर ऐसी घटनाओं , आपदाओं से बिना सबक लिए सब भूल कर भागता चला जाता है । जबकि ये हमें बहुत बड़ी सीख नसीहत और चेतावनी देकर जाते हैं ।

    भौतिकवाद की अंधी दौड़ ने इंसान को , सिर्फ इंसान को ही इस प्रकृति से दूर कर दिया है । आपने सारी हकीकत जस की तस रख दी । सार्थक पोस्ट ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सार्थक पोस्ट। काश हम लॉक डाउन के इस समय से कुछ सीख सकें तो इसके बाद का जीवन और संसार ही ज्यादा सुंदर बन पाएगा।

    जवाब देंहटाएं
  3. सार्थक पोस्ट । मै भी आजकल भोजपूरी सीखने की कोशिश कर रही हूं । रसोई में भी हाथ आजमायें कुछ सालों बाद । दुनिया को नये तरीके से देखने का समुचित अवसर है ये ।

    जवाब देंहटाएं