17 अप्रैल 2020

मुश्किल वक्त का साथी है अनाज बैंक

लॉकडाउन के कारण दैनिक आजीविका वालों को संकट का सामना करना पड़ रहा है. इनके साथ-साथ वे लोग भी परेशानी में होंगे जिनके पास आजीविका के अल्प-साधन थे. छोटे दुकानदार, छोटे कामगार आदि भी इस समय आर्थिक समस्या से जूझ रहे होंगे. इस विकट समय में बहुत सी जगहों पर बहुत से समाजसेवी सामने निकल कर आये हैं. इनमें से बहुत से सामाजिक कार्यकर्ता वाकई सामाजिक सद्भाव, संवेदना के साथ काम कर रहे हैं जबकि इन्हीं में से बहुत से ऐसे हैं जो अपनी फोटो खिंचाने में, उसे सोशल मीडिया पर अपलोड करने में ज्यादा विश्वास रखते हैं. सामाजिक क्षेत्र में कार्य का अनुभव रखने वाले, ईमानदारी और जिम्मेवारी के साथ संवेदनशीलता के साथ बहुत से लोग सूचीबद्ध तरीके से राशन का, भोजन का वितरण कर रहे हैं. ऐसे लोगों द्वारा वितरण होने के कारण खाद्य-सामग्री का उचित तरीके से वितरण हो पा रहा है, उसकी बर्बादी नहीं हो रही है. लॉकडाउन के चलते एकाएक समाजसेवा का भाव जागने वाले लोग बिना किसी योजना के काम करने में लगे हैं. जिसके कारण न केवल यथोचित जगह तक वितरण हो पा रहा है बल्कि खाद्य-सामग्री का भी बहुत नुकसान हो रहा है. सोशल मीडिया पर ही अनेकानेक वीडियो, फोटो देखने को मिल रहे हैं जहाँ अनावश्यक भोजन पैकेट एकत्र करके, जमाखोरी करके रखे गए हैं.


इसके बीच इन्हीं नवोन्मेषी समाजसेवियों द्वारा एक समस्या सोशल मीडिया पर फोटो अपलोड करने की भी आ रही है. एक जरूरतमंद को राशन सामग्री, भोजन सामग्री देते हुए हुए कई-कई लोग एकसाथ फोटो खिंचवाते नजर आ रहे हैं. अनेक जगहों से ऐसी भी खबरें समाचार-पत्रों में प्रकाशित हुई हैं जिसमें जरूरतमंद लोगों ने ऐसे लोगों से राहत सामग्री लेने से इंकार कर दिया जो फोटो खींचने, खिंचवाने के प्रति ज्यादा लालायित दिखे. स्थिति यहाँ तक असहनीय या अशोभनीय हुई कि सरकारी स्तर पर ऐसे कार्य को रोकने के लिए दिशा-निर्देश देने पड़े. इसी में यदाकदा चर्चा उठी अनाज बैंक द्वारा मदद करने, फोटो खींचने, सोशल मीडिया पर अपलोड करने की. असल में ऐसी चर्चाएँ उठना स्वाभाविक भी है क्योंकि बहुत से लोग उत्साह में, संवेदना के साथ सामाजिक कार्य करने निकल पड़ते हैं. उत्साह में किया जाने वाले सामाजिक कार्य बहुत लम्बे समय तक नहीं चल पाते, विशेष रूप से वे जिनमें बहुत बड़ा क्षेत्र शामिल हो जाये, बहुत ज्यादा जनसँख्या शामिल हो जाये. ऐसी स्थिति के सुचारू रूप से नियमित सञ्चालन के लिए एक कार्ययोजना, एक टीम की, ईमानदारी की, समर्पण की आवश्यकता होती है. ऐसी चर्चा करने वाले अनाज बैंक को गंभीरता से समझने का काम संभवतः कर नहीं सके हैं.



ऐसा इसलिए क्योंकि जैसे ही लॉकडाउन की घोषणा हुई उसके दो-तीन दिन बाद ही शहर के अनेक लोगों ने फोन से संपर्क करके अनाज बैंक के कदमों को जानना चाहा. उसके द्वारा भोजन, राशन वितरण के बारे में जानना चाहा. स्पष्ट है कि उन सभी लोगों की मंशा मदद करने की रही होगी मगर जिस तरह का माहौल उरई में, जनपद में दिखाई दे रहा था वैसे में उस भागदौड़ का हिस्सा अनाज बैंक नहीं बनना चाहता था. ख़ुशी की बात यह रही कि प्रशासन स्वतः ही बराबर अनाज बैंक के संपर्क में बना रहा. आखिर उसने न केवल उरई का बल्कि मुख्यालय वाराणसी का काम बहुत ही नजदीक से देखा-सुना था. ऐसे में अनाज बैंक ने शहर में चल रही भगदड़ का हिस्सा बनने के बजाय प्रशासन की सुविधा, निर्देशानुसार सहायता उपलब्ध करवाई.

बैंक की औपचारिक कार्यवाही सभी निकासी खाताधारक महिलाओं को करनी होती है 

बहरहाल, अनाज बैंक प्रतिमाह मजबूर, गरीब, विधवा, लाचार महिलाओं को पाँच किलो अनाज उपलब्ध कराता है. खाद्य-सामग्री में उपलब्धता के आधार पर परिवर्तन भी होता रहता है मगर मात्रा कम से कम पाँच किलो ही रहती है. प्रतिमाह होने वाले इस वितरण कार्यक्रम का बाकायदा रिकॉर्ड बनाया जाता है. इसी के अंतर्गत वितरण कार्य की फोटो, वीडियो बनाया जाता है, उन्हें जनमानस के संज्ञान में लाने के लिए इंटरनेट पर अपलोड भी किया जाता है. वर्तमान समय में चल रही मदद और उसकी फोटो लेने तथा अनाज बैंक द्वारा ली जाने वाली फोटो-वीडियो का एक मूलभूत अंतर है. वह यह कि अनाज बैंक से जुड़ी महिलाएँ किसी तरह का दान, मदद नहीं लेती वरन उनका बाकायदा अनाज बैंक में एक खाता खोला जाता है. वे यहाँ की नियमित निकासी खाताधारक होती हैं. उनको बैंक से जोड़ने के पहले भौतिक सत्यापन किया जाता है. उनके पास उपलब्ध किसी भी पहचान-पत्र, किसी भी दस्तावेज की फोटोप्रति अनाज बैंक में जमा करवाई जाती है. प्रतिमाह वितरण में शामिल होने वाली निकासी खाताधारक महिलाओं की संख्या, पहचान निश्चित है. कुछ इसी तरह की प्रक्रिया अनाज बैंक की सहायता करने वालों के साथ अपनाई जाती है. उनका जमा खाता खोला जाता है. वे बैंक के जमा खाताधारक कहलाते हैं. उनके द्वारा किया गया सहयोग किसी भी तरह की दान शब्दावली के अंतर्गत नहीं आता है बल्कि उनके खाते में उनकी जमाराशि होता है. इसे भी अनाज बैंक धनराशि के रूप में नहीं वरन खाद्य-सामग्री के रूप में स्वीकारता है.

प्रत्येक निकासी खाताधारक का होता है रिकॉर्ड

इसके बाद भी यदि आलोचनात्मक दृष्टि से भी इसका विश्लेषण करते हुए मान लें कि निकासी खाताधारक, जमा खाताधारक अनाज बैंक की अपनी शब्दावली है. लोगों के बीच अपनी तुष्टिकरण की नीति के लिए बनाये गए शब्द हैं तो भी एक बात स्पष्ट यह होती है कि अनाज बैंक द्वारा प्रतिमाह किये जाने वाला वितरण का यथोचित रिकॉर्ड होता है. उसके द्वारा महज मदद करने के नाम पर मदद करने का काम नहीं किया जाता है. वर्तमान परिदृश्य में यदि अनाज बैंक से जुड़ी महिलाओं को लाभार्थी माना भी जाये तो नियमानुसार लाभार्थियों की संख्या, पहचान निश्चित होती है. उनका एक रिकॉर्ड होता है. यह एक तरह की वैसी ही सरकारी प्रक्रिया है जो कि सरकार द्वारा अपनी विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों की फोटो वीडियो, रिकॉर्ड, पहचान आदि के सम्बन्ध में पूरी करनी होती है. यहाँ एक बात स्पष्ट कर दें कि लॉकडाउन के समय में प्रशासन द्वारा अनाज बैंक की खाताधारक महिलाओं की मदद की गई. उनके लिए उपलब्ध राशन सामग्री को अनाज बैंक द्वारा ही वितरित करवाया गया. अप्रैल माह में हुए इस वितरण को किसी भी रूप में सार्वजनिक नहीं किया गया. अनाज बैंक द्वारा सदैव इसका ध्यान रखा जाता है कि किसी भी महिला के सम्मान को ठेस न पहुँचे. समस्त निकासी खाताधारक महिलाओं को अनाज बैंक पारिवारिक सदस्य के रूप में सम्मान भी देता है. किसी भी पावन पर्व पर उसके साथ परिजनों की भांति ही व्यवहार किया जाता है. फिलहाल, अनाज बैंक मुख्यालय वाराणसी में चौबीस घंटे रसोई का सञ्चालन कर रहा है. उरई स्थिति बुन्देलखण्ड अनाज बैंक लॉकडाउन में भी प्रशासन की मंशा के अनुसार काम कर रहा है. लॉकडाउन के बाद वह अपने मूल रूप में कार्य करता रहेगा. गरीब, मजबूर, बेबस, विधवा महिलाओं की सहायता करता रहेगा.


महिला दिवस के अवसर पर सभी निकासी खाताधारक महिलाओं का सम्मान भी 

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