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13 मई 2020

संकट में मध्यम वर्ग भी है

वैश्विक महामारी कोरोना के चलते लागू किया गया लॉकडाउन अब मध्यम वर्ग के लिए भी भारी पड़ने लगा है. यह संकट लॉकडाउन खुलने के बाद और अधिक गहराएगा. इस पर चर्चा से पहले इसकी पीठिका पर विचार कर लिया जाये. लगभग दो माह पूर्व लॉकडाउन के लागू होने के तुरंत बाद से ही दिहाड़ी मजदूरों के लिए आय के सारे स्त्रोत बंद हो गए थे. उनकी रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न हुआ. ये वे लोग हैं जिनके पास रोज कुआँ खोद कर रोज पानी पीने वाली स्थिति होती है. ऐसी स्थिति से जूझने वाले केवल दिहाड़ी मजदूर अथवा कामगार ही नहीं हैं बल्कि इसमें पटरी, रेहड़ी वाले अत्यंत निम्न श्रेणी के दुकानदार भी शामिल माने जा सकते हैं. इनकी व्यापारिक गतिविधि भी लॉकडाउन के कारण ठप्प हो गई.


लॉकडाउन में सम्पूर्ण बाजार बंद करवाए जाने से सभी प्रकार के व्यापारिक प्रतिष्ठानों के आय के स्त्रोत प्रभावित हुए. सभी तरह के उद्योग बंद करवा दिए गए. सभी तरह की व्यापारिक क्रियाओं को प्रतिबंधित करवा दिया गया. सभी तरह का व्यावसायिक परिवहन रोक दिया गया. अत्यावश्यक सेवाओं को छोड़कर सभी तरह की व्यापारिक गतिविधियों के ठप्प हो जाने से सारा जनजीवन रुक सा गया था. लॉकडाउन के आरंभिक दौर दिहाड़ी मजदूरों, कामगारों, रेहड़ी, पटरी वाले दुकानदारों की आजीविका की समस्या को मुख्य रूप से हल करने की कोशिश की गई. प्रथम दृष्टया यह सही भी था क्योंकि इन लोगों के सामने राशन-भोजन-पानी का संकट उत्पन्न होना स्वाभाविक था. इस गंभीर स्थिति को समझते हुए न केवल शासन-प्रशासन ने बल्कि समाजसेवियों ने इनकी सहायता करना आरम्भ कर दिया. सहायता के लिए उठे हाथों ने न केवल अपने शहर के ऐसे मजबूर लोगों का साथ दिया वरन दूसरे जनपदों, राज्यों से आये मजदूरों को भी सहायता उपलब्ध करवाई.




अब जबकि लॉकडाउन तीन दौर पार करने की स्थिति में आ गया है, शासन-प्रशासन को और सामाजिक संगठनों को दिहाड़ी मजदूरों, कामगारों के साथ-साथ ऐसे परिवारों, ऐसे वर्ग की तरफ भी ध्यान देने की आवश्यकता है जो दिहाड़ी मजदूर, कामगार अथवा दिहाड़ी कमाई जैसा भले ही न हो मगर उसकी स्थिति लगभग इसी के जैसी है. रेहड़ी, पटरी वाले दुकानदारों के अलावा समाज में ऐसे हजारों दुकानदार हैं जिनकी पारिवारिक आजीविका उनके व्यापार पर ही केन्द्रित है. इन्हीं दुकानदारों के सहायकों के रूप में हजारों की संख्या में ऐसे कर्मचारी भी हैं जो इसी व्यापारिक संरचना में अपना भरण-पोषण कर रहे थे. लॉकडाउन के आरंभिक दौर में ऐसा महसूस हो रहा था कि कुछ दिन की इस असामान्य स्थिति से निकलने का उपाय खोज लिया जायेगा अथवा स्थिति स्वतः ही सामने आकर कोई न कोई रास्ता बनाएगी. दुर्भाग्य से ऐसा कुछ न हो सका. समय के साथ कोरोना संक्रमण का आतंक बढ़ता ही रहा और उसी के साथ लॉकडाउन की अवधि को दो बार और बढ़ाना पड़ा. इससे इस वर्ग के सामने भी आर्थिक संकट, भरण-पोषण का संकट आकर खड़ा हो रहा है.

इस सन्दर्भ में विचारणीय होना चाहिए कि छोटे और मंझोले दर्जे के दुकानदार, उनके कर्मचारी और ऐसे मध्यम वर्गीय परिवार जिनकी आय सीमित है, जिनकी बचतें अल्प हैं, जिनके पास अपनी आजीविका को चलाने के लिए, अपने व्यापार को संचालित करने के लिए बैंक सहित अन्य वित्तीय संस्थाओं के ऋण हैं, वे भी दिहाड़ी मजदूरों, कामगारों की तरह अब संकट में हैं. विगत लगभग दो माह की अवधि में व्यापारिक गतिविधि का ठप्प रहना, वित्तीय संस्थाओं के ऋणों के ब्याज का चुकाया जाना, अल्प बचतों का पारिवारिक खर्चों में समाप्त हो जाना आदि ऐसे परिवारों के लिए भी संकट का कारण बन रहा है. सामाजिक रूप से अथवा शासन स्तर पर अभी सहायता उन लोगों तक पहुँच रही है जो फुटपाथ पर जीवन गुजार रहे हैं, झुग्गी-झोपड़ी में गुजर-बसर कर रहे हैं या फिर बेसहारा हैं. देखा जाये तो अब उन बहुत से परिवारों को भी सहायता की आवश्यकता है, जो अपने रोजगार के, व्यापार के, कार्य के बंद होने के कारण आर्थिक अभाव की स्थिति में आ गए हैं. छोटे-मंझोले दर्जे के दुकानदारों का, उनके कर्मचारियों का, ऐसे वेतनभोगियों का जो किसी दूसरे संस्थान की आय पर निर्भर हैं, समय अब वाकई कठिनता से गुजर रहा है.

ऐसे परिवार, व्यक्ति अपने छोटे से व्यापारिक प्रतिष्ठान के चलते सामाजिक स्थिति प्राप्त किये हुए हैं जिसके चलते सहज रूप में समाज इनकी आर्थिक तंगहाली को समझ नहीं पा रहा है. ये वर्ग ऐसा भी है जो अपनी आर्थिक समस्या को समाज के सामने प्रस्तुत भी नहीं कर पा रहा है. सामाजिकता, प्रतिष्ठा आदि के चलते वह उस कतार में भी नहीं लग पा रहा है जहाँ गरीबों के लिए भोजन वितरण किया जा रहा है. ऐसे में न केवल समाज को बल्कि शासन-प्रशासन को ऐसे परिवारों की मदद के लिए आगे आना चाहिए. इसके अलावा इस वर्ग को लॉकडाउन खुलने के बाद भी अनेक तरह की नकारात्मक गतिविधियों का सामना करना पड़ेगा. ऐसे छोटे और मंझोले दुकानदारों, जिनका कपड़ों का, गारमेंट्स का, इलेक्ट्रॉनिक्स का, खाद्य सामग्री का व्यापार है, उनको लॉकडाउन के बाद बाजार खुलने पर एक अनिश्चित नुकसान का सामना करना पड़ेगा. लम्बे समय से दुकानों के न खुलने की स्थिति के कारण सीलन, चूहों आदि के चलते सामानों के ख़राब होने की आशंका अधिक है. इस अप्रत्याशित नुकसान की भरपाई इन्हीं दुकानदारों के हिस्से आएगी. ऐसे में भले ही देश का शीर्ष नेतृत्व सभी कर्मियों को इस बंदी के समय का वेतन देने की बात कह रहा हो मगर छोटे और मंझोले दुकानदारों को ऐसा कर पाना संभव ही न होगा.

इसके साथ-साथ जैसी कि लगातार बात की जा रही है लम्बे समय तक कोरोना के साथ जीवन यापन करने की तो संभव है कि लॉकडाउन हटने के बाद भी लम्बे समय तक व्यापारिक गतिविधियाँ सुचारू रूप से संचालित न हो सकें. इससे भी छोटे और मंझोले दुकानदारों की आय प्रभावित रहेगी. भले ही लॉकडाउन को शर्तों के साथ खोल दिया जाये मगर छोटे, मंझोले दुकानदारों और सीमित आय वाले मध्यमवर्गीय परिवारों के भरण-पोषण के प्रति शासन-प्रशासन को, समाजसेवियों को ध्यान देने की आवश्यकता है.

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6 टिप्‍पणियां:

  1. उच्च वर्ग और सरकारी कर्मचारी को छोड़कर सभी की स्थिति डाँवाडोल है. दिहाड़ी मजदूरों की स्थिति तो ऐसी है कि देखकर और सोचकर रोंगटे खड़े हो जा रहे. अब भी प्रवासी कामगारों को सुरक्षित तरीके से अपने अपने प्रांत भेजने में सरकार विफल है. कितनी जानें चली गईं सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर. बहुत दुखद स्थिति है.

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  2. This situation is not related to middle or lower class.this is unprecedented event which is hurting economically everybody across the globe.But as an optimist we wish to overcome the covid19 crises under visionary leadership of PM.
    Good article covering current situation in all respect.

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  3. इस वर्ग की स्थिति हमेशा दो पाटों के बीचवाली बनी रहती है जिसे कहना भी मुश्किल ,पर सहना और भी मुश्किल

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  4. ये सत्य है ,जिस वर्ग का जिक्र है वो और त्रासदी झेल रहा ,वो लाइन लग कर पैकेट भी नही ले सकता
    विडंबना है समाज की ,पहले दिन ही मदिरापान वालों की भीड़ और हर तबके।के लोग शामिल
    हम लोग रोटी बैंक संस्था के माध्यम से ऐसे ही परिवार के लिए तुच्छ प्रयास कर रहे
    खाने के पैकेट के बजाय ,एक सप्ताह का राशन चाय पत्ती ,चीनी ,साबुन आदि का पैकेट सबके सहयोग से तैयार कर पहुँचा रहे
    इस समय की कल्पना नही की थी

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