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10 अगस्त 2010

प्राकृतिक कहर के बाद कुछ सोचा है या नहीं? --- एक माइक्रो पोस्ट




पिछले तीन-चार दिनों की विश्वव्यापी घटनाओं पर नजर दौड़ायें तो आसानी से दिख रहा है कि प्राकृतिक प्रकोप लगभग समूचे विश्व पर छाया है। इस जगह पर घटनाओं का विस्तार और विश्लेषण मायने नहीं रखता क्योंकि सभी कुछ मीडिया के द्वारा दिखाया जा रहा है।

(चित्र गूगल छवियों से साभार)

सवाल है कि क्या मानव इस तरह के विश्वव्यापी प्राकृतिक कहर के बाद भी सँभलेगा अथवा नहीं?
क्या वह प्रकृति का इसी तरह अँधाधुंध दोहन करता रहेगा?
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पोस्ट लिखना मकसद नहीं बस थोड़ा सा जगाना चाहते हैं।

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