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03 अगस्त 2010

इनका सीधापन फिर भी बरकरार है, आवारा तो लड़के ही हैं




मीडिया के द्वारा फ्रेंडशिप डे पर संस्कृति के कथित ठेकेदार घोषित हो चुके बजरंगियों की हरकतों और उनको पकड़ने की घटनाओं को बड़े जोर-शोर से प्रचार सा किया गया। यह भी प्रचारित किया गया कि समाज के ऐसे लोग प्रेम को, दोस्ती को कमजोर कर रहे हैं।

(चित्र गूगल छवियों से साभार)


असलियत क्या है, क्या नहीं ये बाद की बात है पर मामला अब ये है कि समाज में हो रही किसी भी गतिविधि को अब रोका न जाये। फ्रेंडशिप डे, वेलेंटाइन डे के नाम पर हो रही ड्रामेबाजी गलत है अथवा सही इसे तो अभिभावकों को तय करना चाहिए पर वे तो अपने बच्चों की अति आधुनिकता और उनके दोस्तों के नये चालचलन से ही प्रसन्न हैं। उन्हें यह देखने की जरूरत ही नहीं कि ये जो भी ड्रामा उनके नौनिहाल खेल रहे हैं वो उनके स्वयं के लिए कितना सार्थक और सुरक्षित है।

बहरहाल इस बात की चर्चा आज के उस दौर में जहाँ यौन सम्बन्धों की मुखरता अनिवार्य हो चुकी है, अवैध सम्बन्धों को अपनी दलीलों से वैध करार दिया जाता हो, अनब्याही माँओं और उनके कथित पतियों को संरक्षण दिया जाता हो, एक से अधिक लोगों के साथ यौन सम्बन्धों को स्टेटस सिम्बल माना जाता हो वहाँ संस्कृति की, सभ्यता की, परिवार की, सार्थकता की दुहाई देना स्वयं को गँवारू, पिछड़ा घोषित करवाना ही होगा।

अपने इसी पिछड़ेपन के बीच हमने एक-दो दिन पहले मीडिया के कर कमलों से ही एक समाचार देखा और सुना कि पुणे में बिना आज्ञा के एक पार्टी में शराब परोसने की घटना में 400 छात्र-छात्राओं को गिरफ्तार किया गया। इसमें 200 छात्र थे और 200 ही छात्राएँ थीं।

पकड़े गये लड़कों को तो हिरासत में भेज दिया गया और लड़कियों को छोड़ दिया गया। कहना कुछ भी नहीं है क्योंकि कुछ भी कहना सवाल खड़ा करता है। इधर देखने में आया है कि सवालों से अब लोगों ने बचना शुरू कर दिया है। सीधी, सरल, मासूम सी लड़कियों और तेज-तर्रार, लम्पट, आवारा लड़कों की इस पार्टी की चर्चा किसी ने भी नहीं की।

बात-बात पर महिलाओं के दुखों, उनके कष्टों, पुरुष की प्रताड़ना की चर्चा कर पुरुष समाज को कोसने वाली महिलाएँ भी इधर शान्त दिखीं। (ये महिलाओं के चरित्र पर कोई टिप्पणी नहीं है। एक राय साहब फँसे हैं अभी तक बोल कर।)

समाज के विकास की चर्चा होती है तो एकपक्षीय सोच काम करने लगती है। इस एकपक्षीय सोच का नतीजा यह होता है कि समग्र विकास का रास्ता रुक जाता है। पार्टी से, शराब से, शबाब से विकास का रास्ता अब बन्द करना होगा। दोस्ती के नाम पर सिर्फ स्त्री-पुरुष की दोस्ती को समझने की गलती बन्द करनी होगी। बुरे का मतलब पुरुष से लगाना बन्द करना होगा। सरल, सीधे का नाम सिर्फ महिला नहीं होता इसे भी समझना होगा।

समझेंगे? या एक पल को रुकने के बाद कल से फिर पुरुषों को कोसना शुरू किया जायेगा और किसी भी गलती का ठीकरा उन्हीं के सिर पर फोड़ा जायेगा?


8 टिप्‍पणियां:

  1. अपनी energy यहाँ बर्बाद मत करो. कुछ सार्थक काम करो अब. कल बात हुई तो तुम कुछ अलग करने की कह रहे थे, ये तो अलग नहीं है.
    महिला-पुरुष विवाद तो आज के समाज की देन है, तुम क्या कर लोगे?
    अच्छा लिखो.

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  2. अपनी energy यहाँ बर्बाद मत करो. कुछ सार्थक काम करो अब. कल बात हुई तो तुम कुछ अलग करने की कह रहे थे, ये तो अलग नहीं है.
    महिला-पुरुष विवाद तो आज के समाज की देन है, तुम क्या कर लोगे?
    अच्छा लिखो.

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  3. कहना क्या चाहते हो तुम यार! लड़कियों से समाज की इज्जत है इस कारण छोड़ दिया, पर लड़कियां माने तो इस बात को की वे समाज की इज्जत हैं.

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  4. सही लिखा है आपने सर, फिर भी समाज में सही गलत की परिभाषा को दोवारा देखना होगा.
    राकेश कुमार

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  5. बड़ी दर्दनाक अवस्था है समाज की ,हम अपने बच्चों की निगरानी नहीं कर पा रहें हैं या हम उन्हें इस राह पर अपने भ्रष्टाचार के धन से निकली बीमारी की वजह से नहीं रोक पा रहे हैं ?

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  6. सहमत हूं आपसे अभिभावकों को ध्यान देनक चाहिए।

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