विजयादशमी का
पावन पर्व उसी तरह से गुजर गया जैसे कि प्रतिवर्ष गुजरता है. एक दिन पहले से
शुभकामनाओं का आदान-प्रदान चलना शुरू हुआ. सोशल मीडिया के तमाम मंचों के द्वारा
नीलकंठ के दर्शन करवा दिए गए, पान खिलवा दिए गए. इधर कई वर्षों से ऐसा होने लगा है
कि अब किसी भी पर्व-त्यौहार पर मिलने-जुलने का काम मोबाइल के द्वारा होने लगा है. चित्रों
के, शब्दों के माध्यम से शुभकामनाओं का आना-जाना हो जाता है, उसी को मिलना-जुलना,
लोगों का आना-जाना मान लिया जाता है. जितना उत्साह मोबाइल पर, सोशल मीडिया के
मंचों पर दिखाई देता है, उससे अधिक उदासीनता एक-दूसरे से प्रत्यक्ष मिलने में
दिखती है.
इस उदासीन सी
स्थिति के साथ-साथ विगत कुछ वर्षों से एक चलन और देखने को मिलने लगा है कि दशहरा
आते ही रावण को महान बताये जाने के प्रयास होने लगते हैं. उसे एक भावुक इंसान,
अत्यंत विद्वान, सजग भाई, जिम्मेवार पति, मानवीय दृष्टिकोण रखने वाला बताया जाने
लगता है. राम के सापेक्ष उसके व्यक्तित्व को इस तरह से खड़ा किया जाने लगता है कि
राम को मानने वाले खुद में शर्म महसूस करने लगें. रावण को इतना महान बताया जाने
लगता है कि समाज के बहुत से लोग उसी की तरह के भाई, पति, इंसान मिलने की कल्पना
करने लगते हैं. दरअसल ये जहाँ एक तरफ सनातन संस्कृति को धूमिल करने का, उसे बदनाम
करने का षड्यंत्र है वहीं दूसरी तरफ सनातन संस्कृति वालों के द्वारा अपनी ही
संस्कृति से विमुख होने का दुष्परिणाम है.
इक्कीसवीं सदी
में आने के बाद से लोगों में आधुनिक होने का ऐसा नशा चढ़ा है कि अपनी ही संस्कृति
को नकारना उनके लिए गर्व की बात होने लगी है. जिस तरह से किसी अत्याधुनिक अथवा
आधुनिक माने लाने वाले परिवार के लिए यह बड़े गर्व की बात होने लगी है कि उसकी बेटी
रसोई का काम नहीं जानती, ठीक इसी तरह से यह भी गौरवान्वित करने वाली बात होने लगी
है कि किसी व्यक्ति को हिन्दू धर्म के बारे में जानकारी नहीं, सनातन संस्कृति की
समझ नहीं, अपने ही धर्म ग्रंथों, धार्मिक व्यक्तित्वों के बारे में कोई जानकारी
नहीं. ऐसे में केवल उन लोगों को ही दोष नहीं दिया जा सकता जो सनातन संस्कृति के
खिलाफ काम कर रहे हैं. वे तो अपने काम को पूर्ण मनोयोग से करने में लगे हैं. उनको
इस काम के लिए उचित मानदेय, पारिश्रमिक भी मिल रहा है. समय-समय पर ऐसे लोग
सम्मानित भी किये जाते हैं. इसके उलट सनातन संस्कृति के लोग क्या कर रहे हैं?
हिन्दू धर्म के रक्षक होने का दावा करने वाले क्या कर रहे हैं?
ये लोग भी ऐसी
बातों का विरोध इसलिए भी नहीं कर पाते क्योंकि अपने ही धर्म के बारे में इनको
ज्ञान नहीं. रावण के बारे में बताई जा रही अनर्गल बातों की काट के सम्बन्ध में
असली ज्ञान इनको है ही नहीं. रावण ने सीता जी का स्पर्श क्यों नहीं किया; रावण और
उसकी बहिन के आपसी सम्बन्ध क्या थे; रावण के पतिरूप, पितारूप, भाईरूप की असलियत
क्या थी आदि बातों को तब समझा जाता जबकि अपने धर्मग्रंथों का अध्ययन किया होता. इंटरनेट
पर बिखरी बड़ी काल्पनिक, असत्य, तथ्यहीन बातों को पढ़कर हिन्दू धर्म को, सनातन
संस्कृति को समझने का दंभ भरने वालों ने ही ऐसी बातों को बढ़ा-चढ़ा कर समाज में फैला
रखा है. वर्तमान दौर में सनातन संस्कृति के विरुद्ध काम करने वालों को सबक सिखाने
से कहीं ज्यादा आवश्यक है कि सनातन संस्कृति, हिन्दू धर्म, इनके व्यक्तित्वों,
धार्मिक ग्रंथों के बारे में प्रचारित तथ्यहीन, असत्य बातों को फैलने से रोका
जाये.
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