फिलिस्तीन के इस्लामी आतंकी संगठन हमास ने इजरायल पर जबरदस्त
तरीके से हमला किया था. इस हमले में आतंकियों ने इजरायल के आम नागरिकों, सैनिकों
को मारने के साथ-साथ वहाँ की अनेक महिलाओं, बच्चों को बंधक बना लिया था. आतंकियों
द्वारा अल्लाह-हू-अकबर के नारों के बीच महिलाओं को प्रताड़ित करने के वीडियो भी
सामने आये. बंधक महिलाओं को नग्न कर उनके साथ घिनौनी हरकतें की जा रही. हमास के
आतंकी इस्लामी नारों के साथ जश्न मनाते हुए बंधक महिलाओं, बच्चों के साथ वहशियाना
हरकतें तक कर रहे. हमास आंतकियों के ऐसे कृत्यों की एक तरफ समूचे विश्व ने निंदा की,
वहीं दूसरी तरफ भारत के कट्टरपंथी मुस्लिमों ने ऐसी कबीलाई हरकतों, मानसिकता का
समर्थन किया है. ये कट्टरपंथी मुस्लिम खुलकर हमास के हमले का समर्थन करते हुए उसे जायज
बता रहे हैं.
आश्चर्य की बात ये है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में,
जामिया में हमास के समर्थन में सैकड़ों विद्यार्थियों द्वारा जुलूस निकाला गया. यद्यपि
पुलिस द्वारा इस मामले में प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है तथापि ये घटना बताने को
पर्याप्त है कि देश का बहुसंख्यक शिक्षित मुस्लिम क्या सोच रखता है. इसी तरह ऑल
इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि वास्तविकता यह है कि हमास-इजराइल युद्ध
का असली कारण खुद इजराइल है. फिलिस्तीन सिर्फ अपने ऊपर हुए उत्पीड़न का बचाव कर
रहा है. पर्सनल
लॉ बोर्ड ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की परंपरा को
नजरअंदाज करते हुए शोषितों के बजाय उत्पीड़कों का समर्थन किया. यह पूरे देश के लिए
शर्मनाक और दुखद है. यहीं आकर भारतीय राजनीतिज्ञों को, भारतीय मुसलमानों को, इस्लामिक आतंकवाद को छद्म बताने वालों को, तुष्टिकरण
के नाम पर मुस्लिम आतंकियों की पैरवी करने वालों को जागने की जरूरत है. एक बात
सामाजिक सन्दर्भों में कभी समझ नहीं आई कि ऐसी स्थिति के बाद भी जब कभी भारतीय
मुसलमानों को अवसर मिला तो वे अपनी प्रतिबद्धता आतंकवाद के विरोध में दिखाने से
चूक गए. मुस्लिम पक्षधर बनने के लोभ में, मजहबी दिखने की कट्टरता में वे
जाने-अनजाने दूसरे पाले में खड़े दिखाई दिए.
आखिर ऐसी मुस्लिम कट्टरता, पक्षधरता समाज को कहाँ ले जाएगी? कितनी जगह आतंकी वारदातें करने के
बाद, कितने मासूमों की, निर्दोषों की जान लेने के बाद ये मानसिकता
बदलेगी? इजरायल और फिलिस्तीन के सन्दर्भ में किसी एक का
पक्षधर होना तो समझ आता है मगर फिलिस्तीन के सन्दर्भ में हमास जैसे आतंकी का पक्ष
लेना समझ से परे है. इस बिंदु पर आकर भारत के मुसलमानों को समझना चाहिए कि आखिर
यूएई और सऊदी अरब के मुसलमान क्यों हमास के पक्ष में नहीं हैं? क्यों अरब देश
फिलिस्तीनी नागरिकों को अपने यहाँ शरण देने को तैयार नहीं हैं? मिस्र ने एक भी
फिलिस्तीनी नागरिक को अपनी सीमा में दाखिल नहीं होने दिया है. इसका कारण इन
फिलिस्तीनी नागरिकों का मूलरूप से हमास को समर्थन देना है. इसके साथ ही आतंकी
समर्थित फिलिस्तीनी नागरिकों के कारण इन देशों को अपनी व्यवस्था में गड़बड़ी की
आशंका बनी रहती है. असल में किसी भी देश के नागरिकों के लिए उनका राष्ट्रहित सर्वोपरि है. जबकि यही बात भारतीय मुसलमानों के सन्दर्भ
में उपयुक्त नहीं लगती है.
आज जबकि वैश्विक सन्दर्भ में इस्लामिक आतंकवाद का विरोध होने
लगा है, तब देश के मुस्लिम संगठनों को, मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करते
राजनीतिज्ञों को, मुस्लिम नेताओं को एकसुर में हमास के इस हमले
का पुरजोर विरोध करने की आवश्यकता है. इस हमले के बाद भी हमास का साथ देना आतंकवाद
को पोषित करना ही है. ऐसे नाजुक पल में मुस्लिम कट्टर होने की बजाय इस देश के
समस्त मुस्लिमों को जागने की जरूरत है. यदि इस घटना के बाद भी इस्लामिक आतंकवाद का
विरोध मुस्लिम नेताओं, मुस्लिम मजहबी संगठनों, मुस्लिम बुद्धिजीवियों द्वारा नहीं किया गया तो न केवल आतंकी मजबूत होंगे
वरन भारतीय धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करने वाले भी मजबूत होंगे.
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