साइंस
कॉलेज, ग्वालियर में बी.एस-सी. में प्रवेश लेने के लिए जाने का दिन निश्चित हो गया
था. जाने के कोई पाँच-छह दिन पहले अचानक से मन में आया कि गाँव जाकर बाबा-अइया से
मिल आया जाये. घर पर पिताजी से गाँव जाने की अनुमति लेकर अगले दिन गाँव के लिए
निकल पड़े. इससे पहले भी बहुत बार गाँव जाना हुआ था मगर निपट अकेले गाँव जाने का यह
पहला मौका था. उस समय फोन, मोबाइल की व्यवस्था आज के जैसी नहीं थी कि अपने आने की
जानकारी बाबा तक पहुँचा पाते, सो अचानक से हमें देखकर बाबा और अइया का चौंकना
स्वाभाविक था. जमींदार परिवार से होने के बाद भी बाबा जी ने अपने छात्र जीवन में
बहुत संघर्ष किया था, खुद को अपने बलबूते स्थापित किया था, सो वे हम भाइयों को आत्मनिर्भर
होने के लिए प्रेरित करते रहते थे. बाबा जी को बहुत ख़ुशी हुई कि हम ग्वालियर जाने
के पहले उनके पास गाँव आये, वो भी अकेले.
तीन
दिन बड़े ही ख़ुशी से गुजर गए. कहते हैं न कि ब्याज मूलधन से ज्यादा प्यारा होता है,
बस कुछ यही स्थिति हमारी भी थी. अइया ने तमाम सारे पकवान, व्यंजन बनाये, बाबा जी से
खूब सारी बातें हुईं. जिस दिन हमारा गाँव से उरई आने का तय हुआ, उस दिन चलने से
कुछ देर पहले बाबा जी ने कहा कि चलते-चलते जरा पैर की उँगलियाँ चटका दो. बाबा जी
जब उरई में हम लोगों के साथ होते तो दिन में कई-कई बार पैर की उँगलियाँ हम भाइयों
से चटकवाया करते थे. पैर के पंजे को हलके हाथों से कुछ देर दबाने के बाद उँगलियों
के चटकाने का नंबर आता था, उतनी देर में बाबा जी खूब सारी बातें बताया करते, कभी
अपनी नौकरी की, कभी अपने बचपन की, कभी अपनी पढ़ाई की. हम लोगों को भी खूब मजा आता
था सो दिन में कई-कई बार खुद ही बाबा जी से उँगलियों को चटकाने के लिए पूछ लिया
करते थे.
पैर
के पंजे दबाने के समय बाबा जी ने हमेशा की तरह बहुत सी बातें बताईं. उसी में
उन्होंने कहा कि अब तुम उच्च शिक्षा के लिए बाहर जा रहे हो. अच्छा लगा कि बाहर
जाते समय तुमको अपना गाँव याद रहा, यहाँ आने का मन बनाया. बाबा जी बोले कि हमारी
एक बात हमेशा याद रखना कि अपने जीवन को बनाने के लिए ही तुम घर से बाहर जा रहे हो,
जीवन को बर्बाद करने के लिए वापस आने की जरूरत नहीं. पहले तो हमारी समझ में नहीं
आया कि बाबा जी आखिर किस बात के लिए कह रहे हैं. जब हमने अपनी शंका सामने रखी तो
उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए कहा क्योंकि संपत्ति का मोह बहुत बुरा होता है. गाँव के
ये मकान, खेत-खलिहान आदि न तुम्हारे पिताजी लेकर आये, न हम लेकर आये, न हमारे
बाप-दादा लेकर आये थे. ये पुश्तैनी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को अपने आप मिलते रहे
हैं. इनके लिए गाँव आकर फौजदारी करने की जरूरत नहीं. तुम्हारे पिताजी, चाचा लोगों
को पढ़ा-लिखाकर बाहर इसीलिए निकाला कि अपना जीवन सुधार सकें. तुम लोग भी ऐसा करना.
दुर्भाग्य से कभी कोई ऐसा करे कि वो गाँव की संपत्ति पर कब्ज़ा कर ले तो स्वाभिमान
के साथ उससे कानूनी लड़ाई लड़ना, खून-खच्चर करने की जरूरत नहीं. अच्छी शिक्षा, ज्ञान
की जो संपत्ति तुम लोग बनाओगे उसे कोई नहीं कब्ज़ा सकेगा और उसके बल पर तुम लोग
कहीं भी इससे ज्यादा संपत्ति हासिल कर लोगे. चूँकि बाबा जी ने स्वयं लम्बी कानूनी
लड़ाई लड़ने के बाद गाँव में अपने हिस्से की संपत्ति को हासिल किया था. उन्होंने
गाँव में और अपनी पुलिस की नौकरी के दौरान उन्होंने संपत्ति के विवादों,
लड़ाई-झगड़ों के दुष्परिणामों को करीब से देखा था, इस कारण वे अपने अनुभवों को हमसे
बताते हुए भविष्य के लिए हमें जागरूक कर रहे थे.
उस दिन तो बहुत सी बातें समझ
में भी नहीं आईं मगर उनको दिल-दिमाग में गहरे से बैठा लिया था. समय का चक्र ऐसा
घूमा कि उसके बाद बाबा जी से बहुत ज्यादा मिलना नहीं हो सका. जितना भी मिलना हुआ,
बाबा जी ने उसमें इस तरह की कोई बात नहीं की. ये घटना जुलाई-अगस्त 1990 की थी और
एक साल बीतते-बीतते 1991 की आज की तारीख में बाबा जी हम सबसे बहुत दूर चले गए. बाबा
जी के बाद भी गाँव की पैतृक संपत्ति से सम्बंधित किसी भी मामले में हमारा सीधा
हस्तक्षेप नहीं रहा किन्तु हमारे पिताजी के वर्ष 2005 में चले जाने के बाद गाँव की
इस छिपी हुई वास्तविकता से सामना हुआ. एक-एक इंच जमीन को कब्जाने का लालच देखा,
खेतों पर गिद्ध दृष्टि लगाये लोगों को देखा. ये तो बाबा जी की शिक्षाओं का, उनके
आशीर्वाद का सुफल कहा जायेगा कि बहुत सी विषम स्थितियों से आराम से निकल आये.
आज बाबा जी हम सबसे दूर हुए
32 वर्ष हो गए हैं, दो दिन बाद हम भी 50 का आँकड़ा छू लेंगे किन्तु अभी भी गाँव की
पैतृक संपत्ति को बिना किसी विवाद के, बिना किसी लड़ाई-झगड़े के सुरक्षित रखे हुए
हैं. यही कामना करते हैं कि ज़िन्दगी भर बाबा जी की, अइया की शिक्षाओं का पालन कर
सकें, उनके दिखाए रास्ते पर चल सकें.
आज बाबा जी की पुण्यतिथि पर
उनको सादर नमन.
💐🙏🙏
जवाब देंहटाएंबढ़िया संस्मरण।
जवाब देंहटाएं