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09 सितंबर 2023

जिम्मेवारियों संग काम करने की स्वतंत्रता की ख़ुशी

देश इस समय जी-20 की अध्यक्षता करते हुए दो दिवसीय शिखर सम्मलेन के आयोजन में व्यस्त है. विश्व भर की महाशक्तियाँ, शक्तियाँ, उनके प्रमुख व्यक्तित्व इस समय देश में हैं. आयोजन की तैयारियाँ, तमाम प्रबन्ध, साज-सज्जा, व्यवस्थाएँ आदि दिव्यता-भव्यता से भरपूर नजर आ रही हैं. इस आयोजन से जुड़े जितने भी लोग दिखाई दे रहे हैं, चाहे वे बहुत बड़ी जिम्मेवारी के साथ हो अथवा बहुत छोटे से काम का निर्वहन कर रहे हैं, सबके चेहरे पर एक अलग सी ख़ुशी देखने को मिल रही है. जी-20 शिखर सम्मलेन की तैयारियों, व्यवस्थाओं से जुड़े लोगों की ख़ुशी-मिश्रित सक्रियता को देखकर दिल-दिमाग बहुत पीछे चला गया या कहें कि खो गया. वर्ष 2004 में और वर्ष 2008 में हुए दो सेमीनार इस अवसर पर बहुत गहराई के साथ याद आये. वर्ष 2004 में आयोजन था नेशनल सेमीनार का, जिसे रक्षा अध्ययन विभाग, डी.वी. कॉलेज, उरई द्वारा आयोजित किया गया था. दूसरा सेमीनार जो वर्ष 2008 में आयोजित हुआ. यह पूरी तरह व्यक्तिगत संसाधनों पर आधारित था, जिसे हमारे द्वारा कुछ साथियों के सहयोग से गठित पी-एच.डी. होल्डर्स एसोशिएशन द्वारा आयोजित करवाया गया था. इन दोनों सेमीनार की चर्चा होगी मगर अभी वर्ष 2004 में आयोजित हुए सेमीनार के बारे में. 


एडमिरल राजा मेनन 


एक दिन हमारे मोबाइल पर अभय अंकल का फोन आया, तुरंत विभाग में आकर मिलो. अभय अंकल माने डॉ. अभय करन सक्सेना, जो रक्षा अध्ययन विभाग, डी.वी. कॉलेज, उरई के अध्यक्ष थे और हमें अपने बेटे समान मानते थे. महीना कायदे से याद नहीं, जून का अंतिम सप्ताह था या जुलाई का पहला, समझ नहीं आया कि ऐसा कौन सा काम आ गया जिसके लिए अभय अंकल ने हमें फोन किया? बिना किसी सवाल-जवाब के (इतनी तो हिम्मत ही नहीं होती थी) जी अंकल, के जवाब के बाद तुरंत विभाग में उपस्थित हुए. पहुँचते ही अंकल ने एक पत्र हमारे सामने रखते हुए कहा कि तुमको बधाई हो, विभाग को एक सेमीनार मिला है यूजीसी की तरफ से, इसमें तुम क्या सहयोग कर सकते हो? अंकल आप आदेश करें, जिस भी काम का, हो जायेगा. हमारे इतना कहते ही अंकल ने कहा कि सारा काम वैसे भी तुमको देखना है मगर प्राथमिकता में तुमको स्मारिका का सम्पादन करना है. एडिटर रहेंगे निगम साहब मगर पूरा काम तुमको ही करना है.


विंग कमांडर डॉ. एम.एल. बाला 

हमारी असहमति का सवाल ही नहीं उठता था. इसके बाद एक आदेश पारित हुआ अभय अंकल, निगम साहब, शर्मा जी और हमारे मित्र डी.के. सिंह की तरफ से कि हमें रोज विभाग में आना होगा. उस समय निपट सरकारी रोजगार से रहित व्यक्ति थे, सो रोज हाजिरी लगाना भी संभव था. खैर, बाकी बातें फिर कभी क्योंकि अभी करना शुरू की तो ये पोस्ट कई-कई खण्डों में लगानी पड़ेगी. और बातें करने के पहले बस इतना बताते चलें कि स्मारिका के अंतिम रूप तक आने तक किसी के द्वारा कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया. हमारे काम की स्वतंत्रता की स्थिति ये थी कि हमने अभय अंकल के वैचारिक तक पर अपनी एडिटिंग कर दी थी. हमें साठ पेज की स्मारिका तैयार करने के लिए कहा गया था. उसका अंतिम प्रिंट निकालने के पहले एक कॉपी अभय अंकल को, निगम अंकल, शर्मा अंकल को दिखाई. उनका आशीर्वाद मिला और स्मारिका अपने मूल रूप में आ गई. (इस पर भी लिखेंगे किसी दिन. स्मारिका की कई-कई कहानी हैं और मजेदार भी. यहाँ सीखा कि स्वतंत्रता मिलने के बाद भी कैसे अनुशासन में रहकर काम किया जा सकता है, लिया जा सकता है.) 


बांये से - कैप्टन एस.के. जौहरी, डॉ. आर. एच. स्वरूप, लेफ्टिनेट जर्नल तेज पॉल 


होते-करते आखिरकार सेमीनार का दिन आ ही गया. 29-31 अक्टूबर 2004 में होने वाले इस सेमीनार की सारी तैयारियाँ, व्यवस्थाएँ बहुत से लोगों के द्वारा संपन्न होनी थीं मगर उनका निर्देशन कुछ हाथों में ही था. ये हमारा सौभाग्य था कि बहुत सी गम्भीर जिम्मेवारियाँ, व्यवस्थाएँ हमारे सिर पर थीं. भारतीय सेना से जुड़े वे सम्मानित व्यक्ति जो सेवानिवृत्त हो चुके थे या फिर उस समय सेवा में थे, उनके आवागमन का, रुकने का, खाने-पीने का, सेमीनार स्थल तक आने-जाने का जिम्मा हमारे कन्धों पर था. काम की गंभीरता अन्दर ही अन्दर डराती भी थी मगर अभय अंकल का विश्वास इस कदर था कि सारा डर गायब हो जाता. कुछ लोगों को लाने की जिम्मेवारी हमने स्वयं ली. अभय अंकल की कार बराबर हमारे पास रहती थी, सो आवागमन के काम में भी कोई अड़चन नहीं आई.


हमने भी पढ़ा अपना रिसर्च पेपर 


तीन दिवसीय उस सेमीनार की तमाम व्यवस्थाओं को पूरा करने में, अतिथियों की समस्याओं का समाधान करने में, भारतीय सेना के अधिकारियों संग कुछ समय बिता लेने में, अन्य प्रतिभाग करने वाले महानुभावों, शोधार्थियों के लिए अनुकूलन की स्थिति निर्मित करने में किसी भी तरह से परेशानी का अनुभव नहीं हो रहा था. छोटी से छोटी बात हो या कोई बड़ी बात सबमें अभय अंकल और बाकी लोगों द्वारा हमारी राय ली जाना हमें खुद में विशिष्ट बना रहा था. उस समय तो अपने आपमें गर्व महसूस हो रहा था, चेहरे पर ख़ुशी झलक जाती थी, आज उस समय को, उस आयोजन को याद कर रहे तो चेहरे पर अनायास ही मुस्कान उभर आई. समझ सकते हैं कि जो लोग जी-20 के महान, गर्वित करने वाले आयोजन में सहभागी हैं, साझीदार हैं, जिम्मेवार हैं वे किस कदर ख़ुशी का, गर्व का अनुभव कर रहे होंगे.

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(इस पोस्ट को लिखते समय उस सेमीनार के चार विशेष स्तंभों अभय अंकल, राजेंद्र कुमार निगम अंकल, अरविन्द कुमार शर्मा अंकल और दुर्गेश कुमार सिंह जी में से अभय अंकल और निगम अंकल अब हमारे बीच नहीं हैं. उनको इस पोस्ट के द्वारा पुनः स्मरण करते हुए सादर नमन.) 






 

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