सम्पूर्ण विश्व में
एक तरफ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन होने जा रहा है, दूसरी तरफ ईरान में महिलाओं
के साथ दरिंदगी दिखाई जा रही है. महिलाओं द्वारा हिजाब के खिलाफ चल रहे आंदोलन के
बीच सैकड़ों लड़कियों को स्कूल जाने से रोकने की कोशिश की जा रही है. इनको जहर
देकर मारने का हथकंडा अपनाया जा रहा है.
ईरान में हिजाब का
विरोध उस समय शुरू हुआ जबकि सितम्बर 2022 में एक लड़की महसा अमीनी की मौत पुलिस
हिरासत में हो गई. उसे ठीक तरह से हिजाब नहीं पहनने के कारण गिरफ्तार किया गया था.
पुलिस हिरासत में उसकी रहस्यमय तरीके से मौत के बाद पूरे ईरान में महिलाओं का
गुस्सा फूट पड़ा. सड़कों पर प्रदर्शन शुरू हुए और देखते ही देखते ही यह बड़े
आंदोलन में बदल गया. इस
आन्दोलन में महिलाओं की व्यापक भागीदारी हुई. सभी उम्र और पृष्ठभूमि से आने वाली
महिलाएँ न्याय, सुधार और अपने अधिकारों की माँग के लिए
सड़कों पर उतरीं. ईरानी महिलाओं पर शासन के सख़्त नियंत्रण की खुली अवहेलना के रूप
में कई महिलाओं ने अपने स्कार्फ जला दिए, अनेक ने अपने बाल काट लिए. प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए
सरकार घातक बल का उपयोग करने से हिचक नहीं रही है. ईरान की मानवाधिकार संस्थाओं के
अनुसार इस आंदोलन में अब तक मरने वालों की संख्या लगभग 200 तक पहुँच चुकी है.
महिलाओं के
सन्दर्भ में ईरान की स्थिति सुखद नहीं कही जा सकती है. यहाँ के एक कानून के अनुसार
ईरान में कानून है कि एक पिता अपनी ही गोद ली हुई बेटी से निकाह कर सकता है. महिलाओं
को देश से बाहर जाने के लिए अपने पति से अनुमति लेनी पड़ती है. महिलाओं को ढीले-ढाले
कपड़े पहनने को कहा जाता है. अगर कोई महिला इसका उल्लंघन करती है तो ईरान पुलिस को
उस महिला को पीटने और उसे छह महीने तक जेल में रखने का अधिकार है. महिलाओं पर नजर
रखने के लिए सन 2005 में
गश्त-ए-इरशाद का गठन किया गया. यह एक तरह की पुलिस टुकड़ी है जो शहरों में महिलाओं
पर नजर रखती है कि वे कानून के अनुसार कपड़े पहन रही हैं या नहीं. वे लगाये गए
प्रतिबंधों का पालन कर रही हैं या नहीं. अगर कोई इनका पालन नहीं करता तो यह पुलिस
उन्हें सजा देती है.
ईरानी महिलाओं ऐसी
स्थिति सदैव से नहीं रही है. सन 1979 से पहले ईरान में मोहम्मद रेजा पहलवी का शासन था जो एक पढ़े-लिखे, धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक विचारों वाले व्यक्ति थे. उनकी आधुनिक नीतियों ने
महिलाओं को स्वतंत्रता दे रखी थी. उनके पास हिजाब पहनने का विकल्प था. सन 1963
में वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ. परिवार संरक्षण अधिनियम ने
महिलाओं के लिए विवाह की आयु बढ़ा दी, बहुविवाह को कम कर
दिया, अस्थायी विवाहों पर प्रतिबंध लगा दिया और इसमें
धर्मगुरुओं की भूमिका को कम कर दिया. तब यहाँ का समाज बहुत खुले विचारों वाला था.
लोग धार्मिक पाबंदियों से दूर थे. वहाँ की महिलाएँ पुरुषों की तरह ही स्वतंत्र
थीं. वे अपनी मर्जी से हर तरह के कपड़े पहन सकती थीं.
सन 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति ने
राजशाही का अंत कर दिया गया. देश में अयातुल्ला खुमैनी ने सर्वोच्च नेता के रूप
में एक इस्लामिक शासन स्थापित किया. महिलाओं की चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार
द्वारा तत्काल कोई कदम नहीं उठाया गया. इसके उलट उनकी आज़ादी पर नियंत्रण करने के लिए सख़्त कानून बना दिए गए. इससे महिलाएँ सार्वजनिक
जीवन से बाहर हो गईं. सन 1979 तक महिला अधिकारों को लेकर जो प्रगति हुई थी वो एक
झटके में रुक गयी. परिवार संरक्षण कानून को निरस्त कर
हिजाब पहनने को अनिवार्य कर दिया गया. महिलाओं की आज़ादी पर भले ही व्यवस्थित
तरीक़े से कुठाराघात किया गया था लेकिन उन्होंने इन प्रतिबंधों को चुपचाप स्वीकार
नहीं किया. उन्हें हिंसा के द्वारा इन कानूनों को मानने पर बाध्य किया गया. हिंसात्मक
दौर के बीच भी नब्बे के दशक में महिला कार्यकर्ताओं ने पारिवारिक कानूनों के द्वारा
अपने कुछ खोए हुए अधिकारों को प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित किया. इससे उन्हें
तलाक शुरू करने और बच्चों की संरक्षा सम्बन्धी अधिकारों को पुनः प्राप्त करने में
सफलता मिली.
एक तरफ शासन
द्वारा महिलाओं का हिंसात्मक दमन होता रहा दूसरी तरफ अपने अधिकारों, स्वतंत्रता के लिए महिलाओं का विरोध
चलता रहा. हिजाब के विरोध में भी महिलाएँ सालों से प्रदर्शन करती आ रही थीं. उनके 'नो टू हिजाब', 'माई स्टेल्थी फ्रीडम', ‘माई कैमरा इज़ माई वेपन’ और 'व्हाइट वेडनेस्डे'
जैसे अभियान लगातार चलते रहे. महसा अमीनी की मौत ने इन अभियानों के
लिए उत्प्रेरक का काम किया. जिसके चलते आज हिजाब और उस पर नज़र रखने वाली पुलिस के
विरोध में महिलाएँ आन्दोलनरत हैं. अब वे सडकों पर 'डेथ टू द
डिक्टेटर' और 'वूमेन लाइफ फ्रीडम'
के नारे लगाकर अपनी आज़ादी की माँग कर रही हैं. देखा जाये तो ईरान
में हिजाब विवाद से उत्पन्न स्थिति अचानक पैदा नहीं हुई है बल्कि यह वहाँ के लोगों
के गहरे असंतोष की अभिव्यक्ति है. वर्तमान तकनीकी दौर ने महिलाओं को जुड़ने और
संगठित होने का अवसर प्रदान किया. आज ईरान में महिलाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय
समर्थन व्यापक नजर आ रहा है. ईरान को महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र आयोग से निष्कासित कर दिया गया है.
ईरान के अन्दर
महिलाओं द्वारा जबरदस्त हिजाब विरोधी आन्दोलन, सोशल मीडिया पर मिलते व्यापक समर्थन, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को
नियंत्रित करने सम्बन्धी कानूनों पर ईरान का विरोध होने के बाद ईरान सरकार ने भले
ही हिजाब सम्बन्धी कानून की समीक्षा करने को तैयार हो गई हो किन्तु इसके बाद भी महिलाओं
के विरुद्ध दमनकारी नीति में कोई कमी नहीं दिखाई पड़ी है. इसी क्रम में अब लड़कियों को
ज़हर देकर मारने, स्कूल, कॉलेजों पर सुनियोजित हमलों की खबरें सामने
आ रही हैं. इसके पीछे उद्देश्य यही है कि लड़कियाँ शिक्षा से वंचित होकर घरों में कैद
हो जाएँ.
ईरान खाड़ी का सबसे
ताकतवर मुस्लिम देश है जो शीघ्र ही परमाणु शक्ति संपन्न भी हो जाएगा. महिलाओं के लिए
जिस तरह संकुचित सोच का वाहक बना है वह उसे तालिबानी आतंकियों की श्रेणी में लाकर खड़ा
करता है. महिलाओं के अधिकारों के समर्थन में पिछले कुछ समय में बड़े आंदोलन देखने को
मिले, जिसमें हिजाब को इस्लामी कट्टरवादी सोच का प्रतीक मानकर विरोध शुरू हुआ. सरकार
और महिलाओं के वर्तमान संघर्ष के चलते महिलाओं को नियंत्रित करने वाले क़ानूनों को
और सख़्त बना दिया जाएगा या फिर ईरान सुधार के नए युग में प्रवेश करेगा. अब देखना
यह है कि महिलाओं के क्रांतिकारी आन्दोलन में क्या ईरान के सत्तासीन किसी बदलाव के
लिए तैयार हैं? क्या यह आन्दोलन ईरान की तालिबानी सोच वाले शासन को उखाड़ सकेगा?
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