मनुष्य की बौद्धिक
क्षमता के बारे में कभी माना जाता था कि व्यक्ति अपनी बुद्धि के अनुसार शतरंज में
उलट-पलट कर सकता है किन्तु मशीन ऐसा नहीं कर सकती है. इस सोच को सन 1996 में आईबीएम के कम्प्यूटर डीप ब्लू ने शतरंज
चैंपियन गैरी कास्परोव को हराकर झूठ साबित कर दिया था. उस दौर में यह घटना
आश्चर्यजनक थी किन्तु वर्तमान में कृत्रिम बुद्धिमत्ता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
के द्वारा इससे भी अधिक आश्चर्यजनक घटनाएँ लोगों को चौंका रही हैं. पिछले दिनों
चर्चा में आई ऐसी घटनाओं में कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रणाली जीपीटी-3 द्वारा इंसानों की तरह खुद ट्वीट, ईमेल
करना, कहानी, कविता लिखना, भाषा अनुवाद कर लेना; जेसन एलेन
नामक व्यक्ति द्वारा मिडजर्नी नामक कृत्रिम बुद्धिमत्ता सॉफ्टवेयर से चित्र बनाकर फाइन
आर्ट प्रतियोगिता में पहला पुरस्कार जीत जाना रहा है. इनके अलावा ब्रिटेन की संसद में
AI-DA नामक इंसानों जैसी दिखने वाली रोबोट द्वारा आर्टिफिशियल
इंटेलिजेंस पर संबोधन, सोफिया नामक रोबोट को वर्ष 2017
में सऊदी अरब द्वारा पूर्ण नागरिकता देना
भी चर्चा का विषय बना. किसी भी देश की नागरिकता हासिल करने वाली वह दुनिया की पहली
रोबोट है.
कृत्रिम
बुद्धिमत्ता का आरम्भ 1950 के
दशक में हुआ था. इसका अर्थ है, कृत्रिम तरीके से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता. इसे
सरल शब्दों में समझें तो एक मशीन में सोचने-समझने और निर्णय लेने की क्षमता का
विकास करना ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता है. यह कम्प्यूटर विज्ञान का सबसे उन्नत रूप
माना जाता है. यह कम्प्यूटर विज्ञान की ऐसी शाखा है, जिसका काम बुद्धिमान मशीन बनाना है. कहने का
तात्पर्य यह कि कम्प्यूटर का ऐसा दिमाग जो इंसानों की तरह सोच सके. हाल ही में नीति
आयोग और गूगल के बीच इस बात पर सहमति बनी है कि दोनों भारत की उदीयमान कृत्रिम
बुद्धिमत्ता के पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मिलकर एकसाथ काम
करेंगे. नीति आयोग को कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी प्रौद्योगिकी विकसित करने और अनुसंधान
के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. इस पर नीति
आयोग राष्ट्रीय डाटा और एनालिटिक्स पोर्टल के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर
राष्ट्रीय कार्यनीति विकसित कर रहा है, ताकि व्यापक रूप से इसका उपयोग किया जा सके.
कृत्रिम
बुद्धिमत्ता के द्वारा कम्प्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है,
जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने
का प्रयास किया जाता है, जिसके
आधार पर मानव मस्तिष्क काम करता है. इस प्रकार से तैयार सॉफ्टवेयर के द्वारा यह
अध्ययन होता है कि मानव मस्तिष्क कैसे सोचता है, किसी समस्या को हल करते समय कैसे
सीखता है, कैसे निर्णय लेता है
और कैसे काम करता है. आज शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र शेष रहा हो जहाँ कृत्रिम
बुद्धिमत्ता का उपयोग न हो रहा हो. ऐसी कार्यप्रणाली, जिसे संचालित करने में मनुष्य को
कठिनाई आती है, वहाँ यह सहजता से काम कर रही है. तात्पर्य यह
कि जिस काम को करने में मनुष्य को समय अधिक लगता है या जो काम जटिल तथा दुष्कर है,
वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता के द्वारा आसानी
से निपटाया जा सकता है. अंतरिक्ष के रहस्योद्घाटन, रॉकेट तकनीक के विकास, हवाई
जहाज के परिचालन, कम्प्यूटर गेम, सर्च इंजन, सोशल मीडिया साइट्स, ऑटोनोमस कारों,
तमाम दैनिक उपयोग के उपकरणों, बीमारियों का पता लगाने आदि में इसका उपयोग सहजता के
साथ किया जा रहा है.
इनके अलावा आर्टिफिशियल
इंटेलिजेंस की अनेक संभावनाएँ रोबोटिक्स, वर्चुअल रियल्टी, क्लाउड
टेक्नोलॉजी, बिग डेटा सहित अन्य प्रौद्योगिकी
क्षेत्र में तलाशी जा रही हैं. असल में मानव मष्तिष्क और कम्प्यूटर में एक सबसे
बड़ा अंतर है कार्य करने की त्वरित क्षमता. आज के उन्नत कम्प्यूटर जहाँ एक सेकेण्ड
में अरबों-खरबों बाइनरी प्रोग्राम को पूरा करने की क्षमता रखते हैं, वहीं इंसानी
मष्तिष्क मात्र सैकड़ों-हजारों की संख्या में ऐसे प्रोग्राम पूरे कर सकता है. कृत्रिम
बुद्धिमत्ता के द्वारा कम्प्यूटर जिस तरह से इंसानी मष्तिष्क पर हावी होता जा रहा
है, उसे देखकर लगता है
निकट भविष्य में वह इंसानों को पीछे छोड़ देगा. यह बुद्धिमत्ता ही है जो समस्त जीवों
में इंसानों को श्रेष्ठ साबित करती है. यदि यही बुद्धिमत्ता अथवा इससे उत्कृष्ट
बुद्धिमता मशीनों में विकसित हो गई तो यह समाज के लिए लाभदायक होने के साथ-साथ
घातक भी होगा.
सबसे बड़ा नुकसान
बहुत बड़ी संख्या में लोगों का बेरोजगार हो जाना होगा. वर्तमान में भी जटिल और
दुष्कर कार्य मशीनों से किये जाने के कारण बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने रोजगार
गँवाया है. चौबीस घंटे काम करने की क्षमता, सटीक और तेजी से काम करने की विशेषता के चलते निश्चित ही
भविष्य में बहुत सारे कार्यों में मशीनें इंसानों की जगह ले लेंगी. बेरोजगार होने
के अलावा एक संकट यह भी आएगा कि बहुत से कार्यों से इंसानों का हस्तक्षेप समाप्त
हो जायेगा. आज जिस तरह से लेखन, काला,
संगीत में मशीनों की उत्कृष्ट कार्यशैली देखने को मिलने लगी है वह कलाकारों के लिए
संकट का सूचक है. हो सकता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा पैदा कार्य
सम्बन्धी समस्याओं से निपटना संभव हो किन्तु यदि कृत्रिम बुद्धिमत्तायुक्त मशीनें
नकारात्मक रूप में कार्य करने लगीं तो इससे निपटने के उपाय क्या होंगे, ये आज बहुत बड़ा सवाल है. विशेषज्ञों का कहना है कि सोचने-समझने वाले रोबोट
या मशीनें यदि मनुष्य को अपना दुश्मन समझने लगें तो मानवता के लिये खतरा पैदा हो सकता
है. इस तरह की कल्पना हॉलीवुड की फिल्मों में की जा चुकी है.
ऐसे खतरों के
प्रति महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने कई बार सजग भी किया है. उनका स्पष्ट कहना
था कि अनेक अच्छाईयाँ होने के बाद भी मशीनों को बुद्धि देना मानव इतिहास की सबसे
बुरी घटना साबित हो सकती है. कृत्रिम बुद्धिमत्ता के द्वारा मशीनों को मनुष्य बनाने
की प्रक्रिया में लगे वैज्ञानिकों को स्टीफन हॉकिंग की इस बात को याद रखना चाहिए
कि जब हमने आग का आविष्कार किया तो कई बार हम इसमें घिरे, फिर हमने आग बुझाने का उपकरण बनाया.
ज्यादा शक्तिशाली तकनीकों जैसे परमाणु हथियार, सिंथेटिक
बायोलॉजी और मजबूत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के होते हुए हमें चाहिए कि हम अग्रिम
योजना बना लें और पहली बार में ही चीजें ठीक कर लें, क्योंकि यही अवसर हमारे पास
होगा. तेजी से बढ़ती तकनीकी शक्ति और उसे प्रयोग करने की हमारी बुद्धिमत्ता के बीच
होड़ ही हमारा भविष्य है. इसलिए यह सुनिश्चित करें कि जीत हमारी बुद्धिमत्ता की हो.
बौद्धिक मशीनें मानव सभ्यता के लिए लाभदायक ही बनी रहेंगी अथवा ये दुश्मन भी
बनेंगीं, ये तो आने वाला समय बताएगा. वर्तमान तो आर्टिफिशियल
इंटेलिजेंस से लाभान्वित हो रहा है.
बहुत सामयिक लेख ! आर्टीफि़शियल इन्टेलीजेन्स बहुत समय से और व्यापक रूप में प्रयोग किया जा रहा है लेकिन इससे कोई भय निराधार है मनुष्य की बुद्धिमत्ता का वर्चस्व तो बना रहने वाला है
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