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21 फ़रवरी 2022

विलुप्त हो चुके शब्दों से परिचय आवश्यक

आज, 21 फरवरी को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (International Mother Language Day) के रूप में मनाया जाता है. दुनिया में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा देने के साथ-साथ मातृभाषाओं से जुड़ी जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य कुछ अलग ही है. सन 1952 में ढाका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए एक विरोध प्रदर्शन किया. तत्कालीन पाकिस्तान सरकार की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ बरसा दीं. इससे 16 लोगों की जान चली गई. भाषा के इस बड़े आंदोलन में शहीद हुए लोगों की याद में सन 1999 में यूनेस्को ने पहली बार अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने की घोषणा की. कहा जा सकता है कि बांग्ला भाषा बोलने वालों के मातृभाषा के लिए प्यार की वजह से ही आज विश्व में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है.


बांग्लादेशी नागरिकों के अपनी मातृभाषा से प्रेम करने के कारण दिए गए बलिदान ने समूचे विश्व को अपनी-अपनी मातृभाषा के प्रति प्रेम-सम्मान दर्शाने का एक दिन सुनिश्चित किया. वैश्विक स्तर पर जबकि भाषाओं, बोलियों पर उनके अस्तित्व का संकट आया हुआ है उस समय में मातृभाषा दिवस के आयोजन का विशेष महत्त्व हो जाया करता है. आज इस दिवस को मनाने के साथ-साथ इस पर भी ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है कि हम सभी अपनी जिस मातृभाषा को बोल रहे हैं या फिर हमारी जो भी मातृभाषा है, उसके कौन-कौन से शब्द विलुप्त हो चुके हैं अथवा विलुप्त होने की स्थिति में हैं. भाषाओं, बोलियों के विलुप्त होने के पीछे सम्बंधित भाषा-बोली के समुदायों, नागरिकों का कम होते जाना है. इसी तरह किसी शब्द के विलुप्त होने की भी अपनी कहानी है. भाषा, बोली के विलुप्त होने को लेकर सम्बंधित संस्थाएँ सकारात्मक कार्य करने से ज्यादा आँकड़े एकत्र करने के पीछे लगी रहती हैं. उनको लेकर कुछ न कुछ काम भी होता रहता है मगर शब्दों के विलोपन को लेकर बहुत ज्यादा सकारात्मकता देखने को नहीं मिलती है. कोई भी शब्द बहुत ही सामान्य रूप से हमारे बीच से गायब हो जाता है और हमें इसकी भनक तक नहीं लग पाती है.




शब्दों के विलोपन पर जाने के पूर्व एक उदाहरण देना चाहेंगे कि कितनी सहजता से हिन्दी भाषा से या कहें कि देवनागरी लिपि से हिन्दी के गणितीय अंक (१,,, ४ आदि) चलन से गायब हो गए और किसी कोई कोई फर्क नहीं पड़ा. कुछ इसी तरह से हमारे बीच से हमारी भाषा, बोली के बहुत से शब्द धीरे-धीरे गायब होते चले गए और किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा. किसी शब्द के विलोपन में दो बातें प्रमुख समझ आती हैं. एक तो आधुनिक शब्दों के आ जाने से, आधुनिक जीवन-शैली के कारण नए-नए शब्दों के आ जाने से पुराने और अटपटे शब्द चलन से धीरे-धीरे बाहर होते चले गए. दूसरी बात ये समझ आती है कि जिस वस्तु, सामग्री आदि के लिए इन शब्दों का प्रयोग होता हो उनका ही चलन से बाहर हो जाना हो गया. सम्बंधित वस्तु, सामग्री ही चलन में नहीं रही तो उनके लिए प्रयोग किये जाने वाला शब्द स्वतः ही चलन से बाहर होकर विलुप्त हो गया.


उदाहरण के लिए यदि देखें तो किसी समय चलन में रहा शब्द फटफटिया समय के साथ गायब हो गया. अब इसके लिए बाइक शब्द ही पूरी तरह चलन में है. देखा जाये तो बाइक से पहले मोटरसाईकिल शब्द का भी खूब प्रयोग हुआ करता था. चूँकि आधुनिक शब्द बाइक के चलन में आ जाने के कारण फटफटिया और मोटरसाईकिल शब्द चलन से बाहर ही हो गए हैं. इसी तरह भिश्ती, मसक शब्द अब पूरी तरह चलन से बाहर हैं. आज की पीढ़ी शायद इन शब्दों के न तो अर्थ जानती होगी और न ही उसने इनको देखा होगा. इसके पीछे का कारण यही है कि इन दोनों शब्दों का प्रयोग जिस वस्तु के लिए हुआ करता था, वे ही चलन से बाहर हैं.


व्यक्तिगत तौर पर हमें लगता है कि ऐसे शब्द जो कभी चलन में रहे थे, उनके बारे में अपनी आने वाली पीढ़ी को बताया जाना चाहिए. आखिर यह भी भाषाई इतिहास का भाग हैं. वैश्विक इतिहास में, राष्ट्रीय इतिहास में हम वर्तमान पीढ़ी को उन सभ्यताओं, संस्कृतियों, वस्तुओं आदि के बारे में पढ़ा रहे हैं जिनका कहीं कोई लेना-देना नहीं, उनका वर्तमान के साथ कोई तारतम्य नहीं कुछ इसी तरह से भाषा में भी उन शब्दों से वर्तमान पीढ़ी का परिचय करवाया जाना चाहिए जो विलुप्त हो गए हैं अथवा विलुप्त होने की दशा में हैं. भाषाई संस्कृति, सभ्यता, गौरव भी मानवीय विकास, गौरव के लिए आवश्यक है.


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3 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक विश्लेषणात्मक चर्चा बहुत उपयोगी लेख ।

    ऐसे शब्द जो कभी चलन में रहे थे, उनके बारे में अपनी आने वाली पीढ़ी को बताया जाना चाहिए.
    बिल्कुल सही कहा आपने।
    उपयोगी सलाह।

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