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15 जुलाई 2020

प्रेम का शबनमी एहसास

पता नहीं लोगों की निगाह में इसे प्रेम माना भी जाता है या नहीं पर हमारे लिए तो प्रेम ही था, आज भी है. उसको जब भी देखा तो ऐसा नहीं हुआ कि देखते ही रह गए हों. ऐसा भी नहीं हुआ कि किसी विशेष आकर्षण भाव से उसे पसंद किया हो. कॉलेज समय की बात थी, देखा और एक-दो मुलाकातों के बाद दोनों लोग अपनी-अपनी जगह, अपने-अपने काम में लग गए. चूँकि किसी तरह का ऐसा भाव भी नहीं जगा कि कहा जाये कि आपस में प्रेम हो गया है. उस एक छोटी सी मुलाकात के कई साल बाद मिलना हुआ. अबकी हम दोनों ही किशोरावस्था से एक कदम आगे निकल कर युवावस्था के साथ टहलकदमी कर रहे थे. अब हम दोनों की अपनी ही दुनिया थी. अपने-अपने सपने थे और उन सपनों की अपनी-अपनी दुनिया थी.



वास्तविक दुनिया के इस मिलन ने अबकी सपनों की दुनिया में दस्तक दी. दोनों की ऑंखें मिलीं और अबकी लगा कि पिछली बार की तरह सिर्फ परिचय नहीं है, सिर्फ आपसी मुलाकात नहीं है वरन इससे भी आगे जाकर कुछ और भी है. मिलना लगातार भले न होता हो पर लगभग नियमित होता था. मिलने पर खूब हँसी-मजाक, खूब इधर-उधर की बातें, उसके कॉलेज के किस्से, हमारे भविष्य की कहानियाँ. नज़रों और दिल की भाषा को समझ रहे थे मगर सब कुछ कहने, बोलने, बतियाने के बाद बस वही न कहा गया जो कहना बाकी रह गया था. बंधनों में हम दोनों ही जकड़े हुए थे. उसके सामने परिवार, संस्कारों का बंधन था और हमारे सामने पारिवारिकता की, सामाजिकता की मजबूरी थी. प्यार तो एहसासों की धरती पर पल्लवित हो सकता है जो उचित वातावरण न मिलने पर यथार्थ के धरातल पर सूख भी सकता है. आकर्षण का शबनमी एहसास वास्तविकता की धूप में मर जाता है.


बड़े सपनों को पूरा करने की चाह छोटी हकीकत को अपनाने को तैयार नहीं थी. अंततः समाज की बनी-बनाई परम्परा, परिपाटी पर प्यार पिछड़ गया. आँखों में तमाम अनकहे सवाल लिए एक-दूसरे को बस देखते ही रहे, सिर्फ देखते ही रहे. प्यार की सपनों भरी दुनिया से निकल कर जब वास्तविकता से परिचय किया तो दिलों के बीच दूरी भले ही न बढ़ी हो पर बीच में इतनी दूरी हो चुकी थी कि मिलने पर आँखों की शांत मुस्कराहट ही आपस में सारा हाले-दिल बयान करने लगती.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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