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13 जून 2020

समय और यादों की साजिश है गलतियों का एहसास करवाना

आजकल निपट खाली बैठे हैं. जब लॉकडाउन लगा था तो सोचा था कि तमाम अधूरे काम निपटा लिए जायेंगे मगर आज तक सिर्फ सोचना ही हो रहा है. इस सिर्फ सोचने भर ने जीवन में बहुत नुकसान किया है हमारा. बहुत से बनते काम इसी सोचने के चक्कर में बिगड़ गए हैं. सोचने का काम इतनी तल्लीनता से होता है कि सम्बंधित विषय के ऐसे-ऐसे बिन्दुओं तक पर सोच लिया जाता है जिनका दूर-दूर तक कोई भविष्य, वर्तमान नहीं. बहरहाल, इसी खाली बैठे रहने में बहुत सी बातें याद आती हैं. बहुत सी यादें दिल-दिमाग में फिर से अंकुरित होकर खुद के आसपास उनका एहसास करवाने लगती हैं.


ये यादें भी बड़ी अजब सी स्थिति है. समझ नहीं आता कि ये दिल की स्थिति है या फिर दिमाग की? भूतकाल से जुड़े होने के बाद भी यादें वर्तमान को प्रभावित करती हैं साथ ही भविष्य की राह पर भी अपने निशान बनाने का दम रखती हैं. इन दिनों तमाम ऐसी यादों से दो-चार हो रहे हैं जो सुखद एहसास नहीं दे रहीं. बार-बार कोशिश होती है कि उन यादों को अपने आसपास फटकने न दें मगर ऐसा हो नहीं पा रहा है. हमारे अपने जीवन में बहुत कम ऐसा हुआ है जबकि हम परेशान रहे हों या फिर किसी स्थिति-परिस्थिति से हम खुद को बाहर न निकाल पाए हों. इस बार समझ नहीं आ रहा है कि हम कहाँ कमजोर पड़ रहे हैं? यह भी समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर इन यादों को हम अपने सामने खड़ा होने से क्यों नहीं रोक पा रहे हैं? कई बार लगता है कि ऐसा तो नहीं कि इनको हम खुद ही छूट दिए हों हमारे सामने खड़े होने की? कहीं ऐसा तो नहीं कि इन यादों के सहारे हम उन दिनों में फिर जाना चाहते हों जो हमारे हाथ से निकल गया है? कहीं ऐसा तो नहीं कि इन्हीं यादों के रूप में हम अपनी तमाम गलतियों का पश्चाताप करना चाह रहे हों?


बार-बार सोचने, विचार करने के बाद भी निर्धारित नहीं कर पा रहे हैं कि आखिर असल सत्य क्या है? ये नहीं कहते कि जो समय बीत चुका उसमें हमने कोई गलती नहीं की थी. ये भी नहीं कहते कि वे गलतियाँ हमने जानबूझ कर कीं या फिर किसी को परेशान करने के लिए कीं. इसके बाद भी यदि वही समय सामने खड़ा होकर सवाल-जवाब करे तो कष्ट होना स्वाभाविक है. यह जानते-समझते हुए कि हमारा कोई भी कदम किसी भी तरह से नियोजित नहीं था किसी को भी परेशान करने के लिए, उसके बाद भी आरोपी बनाया जाना, दोषी सिद्ध किया जाना उन्हीं यादों का खेल है. वे यादें अक्सर सामने आकर एहसास करवाती हैं कि हमने कहीं न कहीं गलती की हैं. वे इसका आभास करवाती हैं कि हम कहीं न कहीं दोषी हैं. वे यादें ये भी साबित करती हैं कि अब हमारे हाथ में कुछ नहीं, अब हमें सिर्फ उन्हीं यादों के हाथों परेशान होना है. अब हमें उन्हीं यादों के द्वारा निर्धारित दंड भुगतना है.

ऐसा लगता है कि ये समय की और यादों की मिलीभगत है जो हमें हमारी गलतियों का बार-बार आभास करवाते हुए हमें दण्डित करना चाहते हैं. हम मानते हैं, स्वीकारते हैं कि हम दोषी हैं, हमने गलती की है मगर हम ये भी जानते हैं, ये समय भी जानता है, यादें भी जानती हैं कि अब उन गलतियों का कोई पश्चाताप नहीं. या कहें कि पश्चाताप करने का कोई फायदा नहीं क्योंकि यदि फायदा होना होता तो उसी समय मिल गया होता जबकि पूर्व में कई-कई बार पश्चाताप किया, अपना दोष स्वीकारा.

आज फिर स्वीकारते हैं कि हम दोषी हैं, हमसे गलतियाँ हुईं हैं मगर इसका समाधान क्या है? क्या समय, यादें हमें ऐसे ही परेशान करती रहेंगी? क्या ये ऐसे ही हमें आभास करवाती रहेंगी हमारी गलतियों की? यदि ऐसा है तो क्या वाकई इतनी बड़ी गलतियाँ हुई हैं हमसे? क्या वाकई इतने बड़े दोषी हैं हम?

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

5 टिप्‍पणियां:


  1. ऐसा लगता है कि ये समय की और यादों की मिलीभगत है जो हमें हमारी गलतियों का बार-बार आभास करवाते हुए हमें दण्डित करना चाहते हैं. हम मानते हैं, स्वीकारते हैं कि हम दोषी हैं, हमने गलती की है मगर हम ये भी जानते हैं, ये समय भी जानता है, यादें भी जानती हैं कि अब उन गलतियों का कोई पश्चाताप नहीं. या कहें कि पश्चाताप करने का कोई फायदा नहीं क्योंकि यदि फायदा होना होता तो उसी समय मिल गया होता जबकि पूर्व में कई-कई बार पश्चाताप किया, अपना दोष स्वीकारा.

    अपनी अपनी समझ मे सब सही होते ,जैसे जैसे समय गुजरने लगता है हमे इस बात का अहसास होने लगता है कि कहाँ सही रहे कहाँ गलत ,इस तरह अपनी गलतियों को याद करने पर दुख ज्यादा होता है ,लेकिन जो हो गया सो हो गया ,कुछ किया भी जा नही सकता है ,सिर्फ उसे याद करने के सिवाय ,
    बहुत ही बढ़िया पोस्ट ,

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  2. समस्याओं और भ्रान्तियों का समाधान जरूरी है।

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  3. अभी के इस दौर में जब जीवन घरों में ठहर गया है, यादें बहुत तेज़ चल रही हैं। और इसके साथ ही बीते हर पहलुओं पर आत्ममंथन और आत्मविश्लेषण भी। अतीत से बस लबक ले सकते, और कुछ नहीं। विचारणीय पोस्ट।

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