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30 जून 2017

सैंपल सर्वे के जनक पीसी महालनोबिस

प्रतिवर्ष 29 जून को सांख्यिकी दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन देश के प्रसिद्द वैज्ञानिक और सांख्यिकीविद प्रशांत चंद्र महालनोबिस का जन्म 1893 को कोलकाता में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा उनके दादा गुरु चरन महालनोबिस द्वारा स्थापित ब्रह्मो ब्वायज स्कूल में हुई. प्रेसीडेंसी कालेज से भौतिकी में आनर्स करने के बाद वे उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए लंदन चले गए. वहां उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से भौतिकी और गणित विषयों से डिग्री प्राप्त की. ये एकमात्र छात्र थे जिनको भौतिकी में पहला स्थान प्राप्त हुआ था. उन्होंने अपने शिक्षक के कहने पर बायोमेट्रिका नामक किताब पढ़ी. इसे पढ़ने के बाद उनका रुझान सांख्यिकी की ओर हुआ. उन्होंने इस दिशा में सबसे पहला काम कालेज के परीक्षा परिणामों का साख्यिकीय माध्यम से विश्लेषण करने का किया. इसमें उन्हें सफलता भी मिली. इसके बाद महालनोबिस ने जुलोजिकल एंड एंथ्रोपोलोजिकल सर्वे आफ इंडिया के निदेशक नेल्सन अन्नाडेल के कहने पर कोलकाता के ऐंग्लो इंडियंस के बारे में एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया. इस विश्लेषण का जो परिणाम आया वह भारत में सांख्यिकी का पहला शोध-पत्र कहा जाता है.


प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस का सबसे बड़ा योगदान उनके द्वारा शुरु किया गया सैंपल सर्वे है. जिसके आधार पर आज बड़ी-बड़ी नीतियां और योजनाएं बनाई जा रही हैं. उनके द्वारा सुझाई गयी एक सांख्यिकीय माप को महालनोबिस दूरी के नाम से जाना जाता है. वे चाहते थे कि सांख्यिकी का उपयोग देशहित में हो. इसी कारण से उन्होंने पंचवर्षीय योजनाओं के निर्माण में अहम भूमिका निभाई. 17 दिसंबर 1931 को उनका सपना साकार हुआ जबकि कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान की स्थापना की गई. आज कोलकाता के अलावा इस संस्थान की शाखाएं दिल्ली, बैंगलोर, हैदराबाद, पुणे, कोयंबटूर, चेन्नई, गिरिडीह सहित देश के दस स्थानों में हैं. सन 1959 में भारतीय सांख्यिकी संस्थान को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया. प्रोफेसर महालनोबिस को 1957 में अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान का सम्मानित अध्यक्ष बनाया गया. भारत सरकार ने 1959 में प्रोफेसर प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस को पद्म विभूषण से सम्मानित किया. उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा 1944 में वेलडन मेडल पुरस्कार दिया गया था तथा 1945 में रॉयल सोसायटी ने उन्हें अपना फेलो नियुक्त किया गया था.


प्रोफेसर प्रशांत चंद्र महालनोबिस एक दूरद्रष्टा भी थे. उन्हें विज्ञान में ब्यूरोक्रेसी पसंद नहीं थी. उन्हें अपने संस्थान से काफ़ी लगाव था और वे इसे एक स्वतंत्र संस्था के रूप में देखना चाहते थे. जब 1971 में इस संस्थान से जुड़े अधिकांश लोगों ने सरकार के साथ जाने का फैसला किया तो उन्हें आंतरिक कष्ट हुआ. वे इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सके और 28 जून, 1972 को उनका देहांत हो गया. आर्थिक योजना और सांख्‍यि‍की विकास के क्षेत्र में प्रशांत चन्‍द्र महालनोबिस के उल्‍लेखनीय योगदान के सम्‍मान में भारत सरकार उनके जन्‍मदिन 29 जून को प्रतिवर्ष सांख्यिकी दिवस के रूप में मनाती है. इसका उद्देश्‍य सामाजिक-आर्थिक नियोजन और नीति निर्धारण में प्रो. महालनोबिस की भूमिका के बारे में जनता में, विशेषकर युवा पीढ़ी में जागरूकता लाना तथा उन्‍हें प्रेरित करना है.

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