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06 मई 2010

आइये स्वागत करें अपनी बहिन-बेटी के अविवाहित मातृत्व का..




शीर्षक देखकर चौंक गये होंगे पर चौंकिये नहीं, अब यही होने वाला है समाज में अगले कुछ वर्षों में। हाल के कुछ वर्षों में हमने समाज में जिस तरह से शारीरिक सम्बन्धों के स्वरूप को जिस प्रकार से मान्यता देने का काम किया है उसके अनुसार ऐसा होना आश्चर्य भरा नहीं लगता है।

शारीरिकता को, सेक्स को प्रमुखता देने वाले समाज में अभी अधिसंख्यक लोग नहीं हो सके हैं किन्तु प्रत्यक्ष रूप से सेक्स का, आपसी सम्बन्धों में खुलेपन का, शारीरिक सम्बन्धों के किसी भी स्वरूप का समर्थन करने वालों की संख्या पर्याप्त है। विद्रूपता यह है कि इस तरह के लोगों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करने वालों के कारण इनकी तादाद अधिसंख्यक के रूप में सामने आने लगेगी।


(चित्र गूगल छवियों से साभार)

बहरहाल, अब आप देखिये कि समलैंगिकता को, लिव इन रिलेशनशिप को, विवाहपूर्व सेक्स को, अविवाहित मातृत्व को कानूनन समाज में स्वीकृति दिलवाने के लिए संघर्ष किये जाते रहे हैं। सफलता कितनी मिली और कैसे मिली इस पर विचार करने से बेहतर है कि हम विचार करें कि समाज कैसा और किस प्रकार को हो जायेगा?

स्त्री-पुरुष के, स्त्री-स्त्री के, पुरुष-पुरुष के सम्बन्धों की आज जो हालत है वह समाज संचालन की दृष्टि सं अनुकूल नहीं है। इधर देखने में आ रहा है कि जो लोग सम्बन्धों में खुलेपन के समर्थक हैं वे सम्बन्धों में सकारात्मक सोच के समर्थक नहीं हैं। उनका समर्थन किसी न किसी रूप में आकर देह पर टिक जाता है।

यहाँ हमारा विचार पूरी तरह से दो विपरीत-लिंगी प्राणियों के सन्दर्भ में है। स्त्री-पुरुष आपस में मिले, सम्बन्ध बने और दोस्ती, मित्रता का भाव आकर देह पर सिमट गया। देश में पिछले कुछ वर्षों में देह के सम्बन्धों को लेकर, अविवाहित मातृत्व को लेकर घटनाएँ सामने आतीं रहीं हैं। इनका विरोध करने वालों का जमकर विरोध हुआ।

अकसर इस तरह की स्वतन्त्रता का समर्थन करने वालों के (कु)तर्क होते हैं कि बच्चों को निर्णय लेने की आजादी होनी चाहिए। हाँ, हम भी इसका समर्थन करते हैं पर सवाल वही कि कितनी आजादी और किस बात की आजादी?

क्या हम अपने बेटे को इस बात की आजादी दे दें कि वह अपनी मर्जी से हफ्ते-दस दिनों में लड़कियाँ बदलता रहे?

आजादी इस बात की कि वह कानूनन मान्यता मिल चुके लिव इन रिलेशनशिप के चलते अपने मन के मुताबिक लड़कियों से शारीरिक सम्बन्ध बनाता रहे?

क्या अपनी बेटी को इस बात की आजादी दे दें कि वह मन मर्जी के मुताबिक कितने भी लड़कों के साथ सेक्स कर सके?

अपनी लड़की को इस बात की आजादी दे दें कि वह आकर हमसे पूछ सके कि शारीरिक सम्बन्ध बनाते समय गर्भधारण से बचने से रोकने का सबसे अच्छा उपाय क्या है?

सवाल बहुत हैं पर.....................?

आजादी के मायने क्यों आकर देह पर, शारीरिक सम्बन्धों पर टिक जाते हैं? स्वतन्त्रता का मतलब क्यों यह नहीं होता है कि अपने मन का कैरियर और अपने मन की पढ़ाई? क्यों आजादी का तात्पर्य अपना जीवनसाथी चुनने से लगाया जाने लगता है? क्यों 20-25 सालों से बने रिश्ते दो-चार साल के रिश्ते के सामने फीके और दुश्मन से लगने लगते हैं? क्यों मर्यादा भरे रिश्ते के आगे हमें यौनाकर्षण वाले सम्बन्ध ज्यादा मायने भरे लगने लगते हैं?

स्थिति यह है कि कोई लड़का अथवा कोई लड़की अपने आपको पिछड़ा समझते हैं यदि उनके किसी विरीतलिंगी से सम्बन्ध नहीं हैं। वे लड़का-लड़की अपने आपको बड़ा ही गया गुजरा समझते हैं जिनके विवाह से पूर्व किसी से शारीरिक सम्बन्ध न बने हों। आज के जमाने में प्यार करना बहुत ही जरूरी हो गया है। हमारे आसपास का वातावरण, फिल्मों, सीरियलों में अधिकतर दिखाया जाता है कि कॉलेज से शुरू हुई फिल्म प्यार, देह पर आकर ही सिमटती है।

हमारे समाज में, रिश्तों में जिस तरह से स्वतन्त्रता के साथ-साथ उच्छृंखलता बढ़ती जा रही है वह एक न एक दिन हमें इस पोस्ट के शीर्षक के दर्शन अवश्य करवायेगी।

अन्त में एक सवाल जो हमारे एक मित्र से उसके सी0डी0एस0 के चयन के समय वर्ष 1993 में साक्षात्कार-बोर्ड ने पूछा था। सवाल अपने आपमें उस समय के बजाय आज की परिस्थितियों में बहुत ही महत्वपूर्ण है----

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‘‘आप कहीं बाहर से घर बापस लौटते हैं और घर के बाहर दरवाजे पर ही आपको आपकी बहिन बिना कपड़ों के, पूरी तरह निर्वस्त्र मिल जाती है तो आप क्या करोगे?’’

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इस सवाल का जवाब हमारे मित्र ने भी दिया था आप भी जरूर बतायें।



12 टिप्‍पणियां:

  1. Super Hit !!!


    आजादी के मायने क्यों आकर देह पर, शारीरिक सम्बन्धों पर टिक जाते हैं? स्वतन्त्रता का मतलब क्यों यह नहीं होता है कि अपने मन का कैरियर और अपने मन की पढ़ाई? क्यों आजादी का तात्पर्य अपना जीवनसाथी चुनने से लगाया जाने लगता है? क्यों 20-25 सालों से बने रिश्ते दो-चार साल के रिश्ते के सामने फीके और दुश्मन से लगने लगते हैं? क्यों मर्यादा भरे रिश्ते के आगे हमें यौनाकर्षण वाले सम्बन्ध ज्यादा मायने भरे लगने लगते हैं??????????????????

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  2. आपकी बात सटीक और एक कड़वा सच है ....पर इस सब के जिम्मेदार कई है .....कही माँ-बाप - ,,कहीं आजकल की अंधी आधुनिकता , अजीब भेष भूषा , नैतिक मूल्यों का होता पतन , घर में अनुशाशन का आभाव ,................... पर जो भी हो अब इसका घटाव नहीं वरन ...और बढेगा .........अपने विचार को हमारे साथ बांटने के लिए धन्यवाद

    http://athaah.blogspot.com/

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  3. बिल्कुल सटीक सवाल है……………हल तो हम सबको मिल कर खोजना है…………………वरना इस अन्धी दौड मे कुछ हाथ नही आयेगा।………………आधुनिकता विचारों मे होनी चाहिये ना कि उसका दुरुपयोग होना चाहिये।

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  4. वंदना जी का मैं तब से फैन हूँ जब मैं ब्लॉग जगत में नया नया था... उन्होंने अच्छी सलाह दी है कि "आधुनिकता विचारों मे होनी चाहिये ना कि उसका दुरुपयोग होना चाहिये"

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  5. ऐसा है हमलोग अगर ऐसे ही चुप-चाप बैठे रहें तो ऐसा ही होगा ,आज जरूरत है ऐसे मंत्रियों और कानून का मसौदा बनाने वालों को सरे आम जूते मारने की /

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  6. sawal ka jawab
    एक छोटी सी बच्ची को दुलार करने के अलावा कोई क्या करेगा?

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  7. ये जितना बड़ा सच है उतना ही कडुवा है.........आप ने प्रश्न जो उठाये हैं उम्नो वे महिलाएं उठतात दें जो देह की आज़ादी की समर्थक हैं............ब्लॉग पर भी जो महिलाएं अपने आपको बड़ा स्वतंत्र मानतीं हैं उनकी हालत अपनी बेटी के अविवाहित मातृत्व पर पतली हो जायेगी. आभार आपका ऎसी पोस्ट लिखने के लिए.

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    आप इस तरह का शीर्षक देकर क्या पाना चाह रहे हैं, मैं भी इसे देखकर चौंक गया था... खैर जाने दीजिये आपने यह किया है तो सोच-समझ कर सही ही किया होगा...

    "यहाँ हमारा विचार पूरी तरह से दो विपरीत-लिंगी प्राणियों के सन्दर्भ में है। स्त्री-पुरुष आपस में मिले, सम्बन्ध बने और दोस्ती, मित्रता का भाव आकर देह पर सिमट गया। देश में पिछले कुछ वर्षों में देह के सम्बन्धों को लेकर, अविवाहित मातृत्व को लेकर घटनाएँ सामने आतीं रहीं हैं।"

    मूल मुद्दा यही है, सम्बन्धों का देह पर आकर सिमट जाना... कारण जैविक-हारमोनल-जैव व्यवहारीय चाहे जो भी रहे हों... स्त्रियों के बारे में तो मैं नहीं जानता पर जब अपनी प्रोफेशनल डिग्री ले रहा था तो साथ के तकरीबन ५२ लड़कों में से महज ३-४ ही ऐसे थे जो सही अर्थों में कुंवारे थे...विवाहित कोई नहीं था... अब आप क्या सोचते हैं कि उनका पार्टनर कहाँ से आया होगा?... धार्मिक-सामाजिक वर्जनायें हैं फिर भी यह दैहिक संबंध बनते हैं, थे और रहेंगे... इनकी संख्या भी कमोबेश एक सी ही रहती है...नासमझ लड़कियां इन संबंधों के परिणामस्वरूप गर्भवती भी होती हैं... आप किसी भी वैद्म-अवैद्म गर्भपात केन्द्र, चाहे वह देश में कहीं भी हो जाकर पूछताछ करिये... २०-२५ प्रतिशत मामले विवाहपूर्व देहसंबंधों का परिणाम होते हैं... यह संख्या उन के अतिरिक्त है जो MTPill का सहारा लेकर गोली खाकर ही अनचाहे गर्भ से निजात पा लेते हैं...यह उल्लेख करना भी जरूरी होगा कि अनचाहा गर्भ धारित किये ये लड़कियां कहीं बहर से नहीं आतीं समाज के भीतर से ही हैं और इसीलिये किसी न किसी की बहन बेटी भी होती ही होंगी...

    अब समस्या तो है और आज से नहीं प्राचीन काल से... यौन चाहत पर बस नहीं चलता किसी का...समाधान है जागरूक करना-बतलाना कि इन संबंधों के लिये विवाह तक इंतजार करना अच्छा है...पर क्या ऐसा हो पायेगा ? कितने VIRGIN अविवाहित पुरूष हैं हमारे कालेजों या आफिसों में... ईमानदारी से सोचा जाये तो?

    बात फिर वही आती है व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर...मात्र दैहिक संबंधों के डर से किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन नहीं किया जा सकता... सबकुछ जानते बूझते हुऐ भी यदि कोई जोड़ा इस रास्ते पर आगे चलता है तो उसे परिणामों की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिये... हम और आप क्या कर सकते हैं इसमें...नीना गुप्ता ने यह फैसला लिया... और अपनी संतान को अच्छे तरीके से पाल कर भी दिखाया...क्या कर लिया नैतिकता के ठेकेदारों ने ?

    आभार!

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  9. शैफालिका - ओस की बूँद






    आप के ब्लॉग कि तस्वीर बदल गयी , कुछ समय पहले यहाँ एकनिर्वस्त्र दिखती थी क्यूँ भूल गयी क्या ?? प्रवचन देना कितना आसान होता हैं वो भी छदम वेश मे । सो हम भी वेश बदल कर अनाम बनगए आप को याद दिलाने के लिये

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  10. जब स्‍वतंत्रता विचारों में आएगी तो फिर देह मुक्ति के सवाल पर देहरी तक आकर क्‍यों रुकेगी या रुकना चाहिए उसे। बहन-बेटी का अविवाहित मातृत्‍व अलग से क्‍यों पहचाना जाए क्‍या ये भाई-बेटे के अविवाहित पितृत्‍व से भिन्‍न अवधारणा है जो आपको शीर्षक के लिए उपयुक्‍त लगी। आप बहन-बेटी चुनते हैं क्‍योंकि आप जानते हैं कि ये भाई-बेटे से ज्‍यादा आहम करता है... क्‍यों। इसलिए कि अभी तक बाप भाई अपनी बहन बेटियों के 'संरक्षक' की भूमिका जिसका मतलब कौमार्य की पहरेदारी और संपत्तिकरण का जारी रहना...बनाए रखना चाहते हैं।

    अनेक समाज अविवाहित मातृत्‍व पर इस तरह नहीं चिंहुकते जैसे भारत ( इससे पहले कि सांस्‍कृतिक श्रेष्‍ठता तथा पूर्व-पश्चिम के छिछले तर्क उबलें ..समझ लें कि ये सभी समाज पश्चिम के समाज नहीं अफ्रीकी व दक्षिण अमेरिकी समाज भी हैं) यही वजह है कि वहॉं बेटियों के पसंद जाहिर करने पर उन्‍हें मारकर लटका नहीं दिया जाता।

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  11. कुमरेन्द्र जी का आभार बढिया पोस्ट के लिये और मसिजीवी का आभर उनकी प्रगतिशीलता के लिये. २० साल बाद भी हम तो ब्लोग पर जिन्दा रहने वाले है मसिजीवी क्या आप जब आपके बच्चे बडे होन्गे तब तक अपने इतने ही सुलझे खयालो पर टिके रहेगे.

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