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04 मई 2010

गोरी चमड़ी वाले का हंटर और हाथरिक्शा खींचता काली चमड़ी वाला





इस चित्र को देखिये, कुछ ख़ास या अलग सा आपको दिखा?

दिख तो जरूर रहा है पर समझ नहीं रहा है, है देखिये, चित्र में दो जने हैं........... एक तो पत्रकार और अब देश का जायका बताने वाले विनोद दुआ हैं और उनके पीछे हाथ रिक्शा खींचता एक और आदमी है

ये चित्र कल टी वी पर आते जायका वाले कार्यक्रम के दौरान लियाइस कार्यक्रम में कोलकाता का जायका विनोद दुआ दिलवा रहे थे(ये हद है पत्रकारिता कि, किसी समय बहुत नाम कमाने वाले विनोद दुआ अब जायका.....???)

बहरहाल इस चित्र को देख कर लगभग 12-13 साल पहले की एक घटना याद गईतब हमसमाचार पत्रों के सम्पादक के नाम पत्र नियमित रूप से भेजा करते थेउसी में हमने एक पत्र कोलकाता के इन्हीं हाथ रिक्शा वालों के ऊपर लिखा था

उस पत्र की इतनी प्रतिक्रिया हुई थी कि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्या मंत्री ने उरई मे सक्रिय मापा को पत्र लिख कर सफाई दी थी कि इस तरह के रिक्शे जल्दी ही बंद कर दिए जायेंगे हमें उस पत्र को दिखा कर स्थानीय नेताओं ने अपनी सफाई दी थी

कल इसे देखा तो वही पुरानी घटना याद गईये तो ताज़ा तस्वीर है जो दर्शाती है कि लाल झंडे वालों के राज्य में क्या हाल है?

इस तरह के चित्रों को देख कर लगता है जैसे हम अंग्रेजों के शासन में हैं......कोई गोरी चमड़ी वाला हंटर लिए बैठा है और काली चमड़ी वाला पिट रहा है और रिक्शा खींच रहा है

अब फिर सफाई इंतज़ार रहेगा कि कब इस तरह के रिक्शों के बंद किये जाने का आश्वासन मिलता है



(चित्र कुमारेन्द्र द्वारा, NDTV पर आ रहे कार्यक्रम के दौरान लिया गया)

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत गम्भीर चिन्तन है, वैसे इस प्रकार के रिक्शे वाकई में बन्द होनें चाहिए... ना जाने क्यों इनको देखकर पीडा सी होती है...

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  2. यह रिक्शे अब बंद हो चुके हैं. यह चित्र जरूर ताज़ा है लेकिन विडियो लगभग एक साल पुराना.

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  3. इस कार्यक्रम को हमने भी कल देखा है......अब ये तो पता नहीं रिक्शा बंद हुए या नहीं...............वैसे आपको सफाई देने वाले ज्यादा अच्छे से बताएँगे...

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  4. इस कार्यक्रम को हमने भी कल देखा है......अब ये तो पता नहीं रिक्शा बंद हुए या नहीं...............वैसे आपको सफाई देने वाले ज्यादा अच्छे से बताएँगे...

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  5. लोगों को अभाव की ओर अगर सरकार ही धकेलेगी और पेट भरना एक दुष्कर कार्य हो जायेगा तो पत्रकारिता भी पेट भरने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाएगी ही /

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  6. ये रिक्शे हाल ही बंद हो गए हों तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन मैं दिसंबर २००९ में अपनी कोलकाता यात्रा के दौरान ये देख कर आ रही हूँ. और ये भी सोचती हूँ की उसपर बैठने वालों के मन में इन खींचने वालों के प्रति कोई दर्द नहीं होता. ये तो जमीदारों वाला दंड हो गया की हल को काँधें में जोतकर चलाया जाय.

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  7. कुमारेन्द्र जी, बेहतरीन मुद्दा उठाया आपने..साधुवाद !!

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  8. जिस प्रकार से नारायण किसी भी रूप में नज़र आ सकते हैं उसी तरह से आप अपनी समझ अनुसार कुछ भी समझ सकते हैं... इसमें विनोद दूआ जी की क्या गलती

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