यौन शिक्षा - चुनौतीपूर्ण  किन्तु  आवश्यक  प्रक्रिया
डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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(3) जिज्ञासा के साथ कौतूहल भी - दस वर्ष से ऊपर की अवस्था
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दस वर्ष के ऊपर की अवस्था में आने के बाद शारीरिक परिवर्तन,  शारीरिक  विकास  के साथ-साथ यौनिक विकास, यौनिक परिवर्तन भी होने लगता है। यह परिवर्तन लड़को की अपेक्षा लड़कियों में तीव्रता से एवं स्पष्ट रूप से परिलक्षित  होता  है।  लड़कियों  में  मासिक  धर्म  की  शुरूआत  उनमें  एक  प्रकार  की  जिज्ञासा  तथा  एक  प्रकार  का  भय  पैदा  करती  है।  यही वह स्थिति होती है जब भारतीय परिवारों में सम्भवतः पहली बार किसी लड़की को अपनी माँ, चाची, भाभी, बड़ी बहिन आदि से ‘सेक्स’ को लेकर किसी प्रकार की जानकारी मिलती है।  इस  ‘सेक्स  एजूकेशन’ में  जिज्ञासा की शान्ति, जानकारियों  की  प्राप्ति  कम,  भय,  डर,  सामाजिक  लोक-लाज का भूत अधिक  होता  है।  ऐसी  ‘यौन  शिक्षा’  लड़कियों  में  अपने  यौनिक-शारीरिक विकास के प्रति भय ही जाग्रत करती है, उनकी किसी जिज्ञासा को शान्त नहीं करती है।लड़कों में यह स्थिति और भी भयावह होती है; परिवार से किसी भी रूप से कोई जानकारी न दिए जाने के परिणामस्वरूप वे सभी अपने मित्रों, पुस्तकों, इंटरनेट आदि पर भटकते रहते हैं और थोड़ी सी सही जानकारी के साथ-साथ बहुत सी भ्रामक जानकारियों का पुलिंदा थामें भटकते रहते हैं। शारीरिक विकास, यौनिक अंगों में परिवर्तन, विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण, सेक्स सम्बन्धी जानकारी, शारीरिक संसर्ग के प्रति जिज्ञासा अब जिज्ञासा न रह कर प्रश्नों, परेशानियों का जाल बन जाता है। इसमें उलझ कर वे शारीरिक सम्बन्धों, टीनएज़ प्रेगनेन्सी, गर्भपात, यौनजनित रोग, आत्महत्या जैसी स्थितियों का शिकार हो जाते हैं।
इन सारी स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो क्या लगता नहीं है कि जिस यौनिक उत्तेजना, यौनिक जिज्ञासा, लैंगिक विभिन्नता, शारीरिक विभिन्नता, शारीरिक-यौनिक विकास, शारीरिक सम्बन्ध, विपरीत लिंगी आकर्षण के प्रति जिज्ञासुभाव बचपन से ही रहा हो उसका समाधान एक सर्वमान्य तरीके से हो, सकारात्मक तरीके से हो, न कि आधी-अधूरी, अधकचरी, भ्रामक जानकारी के रूप में हो? यहाँ ‘सेक्स एजूकेशन’ की वकालत करने, उसको लागू करने अथवा देने के पूर्व एक तथ्य विशेष को मन-मष्तिष्क में हमेशा रखना होगा कि यह शिक्षा उम्र के विविध पड़ावों को ध्यान में रखकर अलग-अलग रूप से अलग-अलग तरीके से दी जानी चाहिए। ऐसा नहीं कि जिस ‘यौन शिक्षा’ के स्वरूप को हम छोटे बच्चों को दें वही स्वरूप टीनएजर्स के सामने रख दें।
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चित्र गूगल छवियों से साभार लिए गए हैं......
लेखन कला का चरम कहा जा सकता है इस तरह के लेखों को.. जागरूकता लाने के लिए आभार चाचा जी..
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